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Thursday, February 6, 2014

भगवान श्रीकृष्ण लीला

Photo: सुप्रभात मित्रों...

कुछ "विधर्मी" और "वामपंथी" रासलीला को लेकर भगवान् श्री कृष्ण पर चरित्रहीनता का आरोप लगाते हैं और उसको सच मानकर कुछ हिन्दू भाई बहन भी बिना कृष्ण को जाने उनकी बातों में आकर अपने महान धर्म पर ही उंगली उठाते हैं,ये पोस्ट ऐसे ही मूर्ख लोगों को सही रास्ते पर लाने के लिये मैं प्रस्तुत कर रहा हूँ.....

भगवान श्रीकृष्ण लीला पुरुषोत्त्तम कहलाते हैं। क्योंकि पूरे जीवन की गई श्रीकृष्ण की लीलाओं में कोई लीला मोहित करती है तो कोई अचंभित करती है। लेकिन हर लीला जीवन से जुड़े कोई न कोई संदेश देती है। 

भगवान श्रीकृष्ण की सभी लीलाओं में से रासलीला हर किसी के मन में उत्सुकता और जिज्ञासा पैदा करती है। किंतु युग के अन्तर और धर्म की गहरी समझ के अभाव से पैदा हुई मानसिकता के कारण रासलीला शब्द को लंपटता या गलत अर्थ में उपयोग किया जाता है। खासतौर पर स्त्रियों से संबंध रखने और उनके साथ रखे जाने वाले व्यवहार के लिए रासलीला के आधार पर अनेक युवा भगवान कृष्ण को आदर्श बताने का अनुचित प्रयास करते हैं। 

इसलिए यहां खासतौर पर युवा जाने कि रासलीला से जुड़ा व्यावहारिक सच क्या है - 

दरअसल श्रीकृष्ण की रासलीला जीवन के उमंग, उल्लास और आनंद की ओर इशारा करती है। इस रासलीला को संदेह की नजर से सोचना या विचार करना इसलिए भी गलत है, क्योंकि रासलीला के समय भगवान श्रीकृष्ण की उम्र लगभग ८ वर्ष की मानी जाती है और उनके साथ रास करने वाली गोपियों में बालिकाओं के साथ युवतियां यहां तक की बड़ी उम्र की भी गोपियां शामिल थीं। इसलिए जबकि कलयुग में भी इतनी कम उम्र में बालक के व्यवहार में यौन इच्छाएं नहीं देखी जाती तो फिर कृष्ण के काल द्वापर में कल्पना करना व्यर्थ है। इस तरह गोपियों का कान्हा के साथ रास पवित्र प्रेम था। 

एक अति महत्वपूर्ण बात और भी है जिससे बहुत कम ही लोग परिचित हैं। वह यह है कि जब कृष्ण ने हमेशा-हमेशा के लिये गोकुल-वृंदावन छोड़ा तब उनकी उम्र मात्र नौ वर्ष की थी। इससे यह तो स्पष्ट ही है कि कृष्ण जब गोप-गोपिकाओं के साथ गौकुल-वृंदावन में थे तब नौ वर्ष से भी छोटे रहे होगें। 

अति मनोहर रूप, बांसुरी बजाने में अत्यंत निपुण,अवतारी आत्मा होने के कारण जन्मजात प्रतिभाशाली आदि तमाम बातों के कारण वे आसपास के पूरे क्षेत्र में अत्यंत् लोकप्रिय थे। नौ वर्ष के बालक का गोपियों के साथ नृत्य करना एक विशुद्ध प्रेम और आनंद का ही विषय हो सकता है। 

अत: कृष्ण रास को शारीरिक धरातल पर लाकर उसमें मोजमस्ती या भोग विलास जेसा कुछ ढूंढना इंसान की स्यवं की फितरत पर निर्भर करता है। कृष्ण के प्रति कोई राय बनाने से पूर्व इंसान को गीता को समझना होगा क्योंकि उसके बिना कोई कृष्ण को वास्तविक रूप में समझ ही नहीं पाएगा।

जिस तरह रामायण में श्रीराम के साथ शबरी और केवट इच्छा और स्वार्थ से दूर प्रेम मिलता है, ठीक उसी तरह का प्रेम रासलीला में कृष्ण और गोपियों का मिलता है। 

इसलिए रासलीला के अर्थ के साथ मर्म को समझें तो यही बात सामने आती है कि भगवान श्रीकृष्ण की गोपियों के संग रासलीला काम नहीं काम विजय लीला है, जो भोग नहीं योग से जीवन को साधने का संदेश देती है।

जय श्री कृष्ण |

{ Manu }
भगवान श्रीकृष्ण लीला पुरुषोत्त्तम कहलाते हैं। क्योंकि पूरे जीवन की गई श्रीकृष्ण की लीलाओं में कोई लीला मोहित करती है तो कोई अचंभित करती है। लेकिन हर लीला जीवन से जुड़े कोई न कोई संदेश देती है।

भगवान श्रीकृष्ण की सभी लीलाओं में से रासलीला हर किसी के मन में उत्सुकता और जिज्ञासा पैदा करती है। किंतु युग के अन्तर और धर्म की गहरी समझ के अभाव से पैदा हुई मानसिकता के कारण रासलीला शब्द को लंपटता या गलत अर्थ में उपयोग किया जाता है। खासतौर पर स्त्रियों से संबंध रखने और उनके साथ रखे जाने वाले व्यवहार के लिए रासलीला के आधार पर अनेक युवा भगवान कृष्ण को आदर्श बताने का अनुचित प्रयास करते हैं।

इसलिए यहां खासतौर पर युवा जाने कि रासलीला से जुड़ा व्यावहारिक सच क्या है -

दरअसल श्रीकृष्ण की रासलीला जीवन के उमंग, उल्लास और आनंद की ओर इशारा करती है। इस रासलीला को संदेह की नजर से सोचना या विचार करना इसलिए भी गलत है, क्योंकि रासलीला के समय भगवान श्रीकृष्ण की उम्र लगभग ८ वर्ष की मानी जाती है और उनके साथ रास करने वाली गोपियों में बालिकाओं के साथ युवतियां यहां तक की बड़ी उम्र की भी गोपियां शामिल थीं। इसलिए जबकि कलयुग में भी इतनी कम उम्र में बालक के व्यवहार में यौन इच्छाएं नहीं देखी जाती तो फिर कृष्ण के काल द्वापर में कल्पना करना व्यर्थ है। इस तरह गोपियों का कान्हा के साथ रास पवित्र प्रेम था।

एक अति महत्वपूर्ण बात और भी है जिससे बहुत कम ही लोग परिचित हैं। वह यह है कि जब कृष्ण ने हमेशा-हमेशा के लिये गोकुल-वृंदावन छोड़ा तब उनकी उम्र मात्र नौ वर्ष की थी। इससे यह तो स्पष्ट ही है कि कृष्ण जब गोप-गोपिकाओं के साथ गौकुल-वृंदावन में थे तब नौ वर्ष से भी छोटे रहे होगें।

अति मनोहर रूप, बांसुरी बजाने में अत्यंत निपुण,अवतारी आत्मा होने के कारण जन्मजात प्रतिभाशाली आदि तमाम बातों के कारण वे आसपास के पूरे क्षेत्र में अत्यंत् लोकप्रिय थे। नौ वर्ष के बालक का गोपियों के साथ नृत्य करना एक विशुद्ध प्रेम और आनंद का ही विषय हो सकता है।

अत: कृष्ण रास को शारीरिक धरातल पर लाकर उसमें मोजमस्ती या भोग विलास जेसा कुछ ढूंढना इंसान की स्यवं की फितरत पर निर्भर करता है। कृष्ण के प्रति कोई राय बनाने से पूर्व इंसान को गीता को समझना होगा क्योंकि उसके बिना कोई कृष्ण को वास्तविक रूप में समझ ही नहीं पाएगा।

जिस तरह रामायण में श्रीराम के साथ शबरी और केवट इच्छा और स्वार्थ से दूर प्रेम मिलता है, ठीक उसी तरह का प्रेम रासलीला में कृष्ण और गोपियों का मिलता है।

इसलिए रासलीला के अर्थ के साथ मर्म को समझें तो यही बात सामने आती है कि भगवान श्रीकृष्ण की गोपियों के संग रासलीला काम नहीं काम विजय लीला है, जो भोग नहीं योग से जीवन को साधने का संदेश देती है।

जय श्री कृष्ण |