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Tuesday, August 26, 2014

वेदों के विज्ञान के आगे कहीं नहीं टिकता आज का विज्ञान

आज का विज्ञान और वैदिक विज्ञान कौन है महानआज के युग को वैज्ञानिक युग कहा जाता है जहां हर दिन नए-नए खोज हो रहे हैं। मोबाइल फोन के नए-नए फीचर्स और अंतरीक्ष में भेजे जाने वाले सेटेलाइट से जुड़ी बातों को सुनकर हम हैरान होते रहते हैं।
चिकित्सकों द्वारा किसी बीमार व्यक्ति की किडनी बदलने और मृत व्यक्ति की आंखों से किसी व्यक्ति की आंखों में रोशनी देने की घटना को जानकर दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। इन सब के बावजूद आज का विज्ञान वेदों में बताए गए विज्ञान की ऊंचाइयों को नहीं छू पाया है।
यहां हम वेदों में बताए गए कुछ ऐसे वैज्ञानिक और चिकित्सकी घटनाओं को उल्लेख कर रहे हैं जिसे पढ़कर आप भी मनेंगे कि सच में आज का विज्ञान वेदों के विज्ञान के सामने कहीं नहीं ठहरता।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है हृदय का प्रत्यारोपन। विश्व का पहला मानव हृदय प्रत्यारोपण 3 दिसंबर 1967 में दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन शहर में क्रिस्टियन बर्नार्ड के द्वारा किया गया था। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में किसी व्यक्ति की किडनी फेल होने पर स्वस्थ्य व्यक्ति की किडनी से बीमार व्यक्ति को जीवनदान दिया जा सकता है।

आंखों की रोशनी गवां चुके व्यक्ति को किसी दूसरे की आंख देकर फिर से दुनिया दिखाई जा सकती है। लेकिन अभी भी आधुनिक विज्ञान के पास ऐसी तकनीक नहीं है कि सिर धड़ से अलग हो जाए तो उसे जोड़कर पुनः जीवित कर दिया जाए।

लेकिन वेदों में कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं जब सिर से धड़ अलग होने के बाद भी व्यक्ति को पुनः दूसरा सिर लगाकर नया जीवन दिया गया। इसका पहला उदाहरण दक्ष प्रजापति हैं जिनका सिर भगवान शिव ने काट दिया था। बाद में देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने बकड़े का सिर लगाकर दक्ष को पुनः जीवित कर दिया।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के लिए चुनौति है वेदों का यह विज्ञानभगवान गणेश के सिर पर हाथी का सिर भी इसी तरह के उच्चतम चिकित्सा विज्ञान का उदाहरण। वेदों में इस तरह के कई और भी उदाहरण मिलते हैं जिसमें सिर कट जाने के बाद दूसरा सिर लगाकर व्यक्ति को पुनर्जीवित कर दिया गया।

ऋग्वेद में एक उदाहरण ऐसा भी मिलता है जिसमें देवताओं के चिकित्सक अश्विनी कुमार ने एक व्यक्ति का सिर काट लिया और फिर घोड़े का सिर लगाकर उसे पुनः जीवित कर दिया। काम पूरा होने के बाद घोड़े के सिर को हटाकर उनका अपना सिर धड़ से जोड़ दिया।


वैदिक विज्ञान में सेरोगेसी
संतानहीन माता-पिता को संतान सुख दिलाने के लिए विज्ञान ने एक नई पद्घति को खोज निकाला है जिसे सेरोगेसी पद्घति कहते हैं। सरोगेसी शब्‍द लैटिन के 'सबरोगेट' से आया है जिसका अर्थ होता है अपने काम के लिए किसी और को नियुक्त करना।
सेरोगेसी दो प्रकार की होती है ट्रेडिशनल सरोगेसी और जेस्‍टेशनल सेरोगेसी। जेस्‍टेशनल सेरोगेसी पद्घति में माता-पिता के शुक्राणी और अंडाणु को एक परखनली में निषेचित करके किसी अन्य स्त्री के गर्भ में पहुंचा दिया जाता है। इस विधि से कई लोग संतानसुख पा रहे हैं।

वैदिक विज्ञान में सेरोगेसीलेकिन आधुनिक विज्ञान की इस खोज से कहीं आगे की बात वैदिक विज्ञान में मौजूद है। आपने पढ़ा होगा कि भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई हैं बलराम जी। इनके जन्म के विषय में माना जाता है कि जब देवकी गर्भवती हुई तो कंश से गर्भ की रक्षा के लिए रोहिणी ने देवकी के गर्भ से भ्रूण को निकालकर अपने गर्भ में पहुंचा दिया और देवकी वासुदेव की सातवी संतान का जन्म रोहिणी के गर्भ से हुआ।
बिना तेल और इंजान के चलने वाला विमान
बिना तेल और इंजान के चलने वाला विमानआधुनिक विज्ञान की चलाने के लिए काफी इंधन खर्च करना होता है। हवाई जहाज के इंजन में खराबी आ जाने के कारण कभी भी दुर्घटना ग्रस्त होने की आशंका रहती है।
अब हम वैदिक विज्ञान की करें तो रामायण में एक ऐसे विमान का जिक्र आया जिसे चलाने के लिए न तो इंधन की जरूरत थी और न ही इंजन में खराबी की आशंका। यह चालक के मन के अनुसार आसमान में उड़ान भरती थी। इसमें एक और खूबी यह थी कि यात्रियों की संख्या के अनुसार यह अपने आप छोटा या बड़े आकार का हो जाता था।
यह यान पहले कुबेर के पास था और फिर रावण के पास आया। रावण का वध करने के बाद जब राम अयोध्या लौटे तो उनका दल बल इसी विमान से अयोध्या आया था। इस विमान का नाम था पुष्पक विमान।

SOURCE-AMARUJALA