Wednesday, August 31, 2016

Chinese Martial art was originated from India- by Bodhidharma, A Buddhist Prince

Kalari or Kalaripayattu of ancient India is the world’s oldest martial arts. Infact, it is the mother of all martial arts in the world. Ancient buddhist monks who travelled from India to China to spread buddhism are said to have taught these martial arts to the Chinese.
For instance, one of the buddhist monks Bodhi Dharma who founded the Zen buddhism and is called Chan in China was a Kalarippayattu master himself! From his native Kancheepuram in South Indian state of Tamilnadu, he went to China in 522 AD to the court of Chinese emperor Liang Nuti. He taught Kalarippayattu at the Shaolin monastery to the buddhist monks to defend themselves from the frequent attacks by local bandits and dacoits. It has to be noted that all far eastern martial arts are taught by Buddhist monks. In China it is Kung Fu, Karate. In Japan the Samurai warriors are Zen Buddhists.
The Shaolin temple itself was founded by an Indian Dhyana master Buddhabhadra. On one of the walls of the Shaolin temple a fresco can be seen, showing south Indian dark-skinned monks, teaching the light-skinned Chinese the art of bare-handed fighting. On this painting (see image below) are inscribed: Tenjiku Naranokaku which means: the fighting techniques to train the body (which come) from India.
China-India martial arts masters meet at famed Shaolin Temple

ZHENGZHOU, June 20 (Xinhua) -- Martial arts masters from China and India met Sunday at the Shaolin Temple, which is famed as one of the holy sites of Chinese Kungfu, to commemorate the 60th anniversary of diplomatic relations between the two countries.

Twelve Indian masters the traditional Nithya Chaithanya Kalari Indian martial arts training center, which was founded in 1993 by Murugan Gurakal, performed Indian martial arts called Kalaripayattu on the same stage where monks of the Shaolin Temple performed their Kungfu Sunday morning.

"Shaolin Kungfu is the mother of Chinese martial arts and Kalari is mother of Indian martial arts, " said Murugan Gurakal, chief instructor of the Indian Kalari group.

Murugan Gurakal said he hoped his countrymen could learn a lot from Shaolin Kungfu .

Indian masters performed Kalari, or Kalarippayattu in front of the abbot with techniques including long stick fighting, knife fighting, sword, shield and flexible swords on the platform, which attracted many tourists.


Also, Shaolin monks performed many types of Kungfu including Tung Chi Gong, Er-zhi-zen and "Eighteen Weapons."

Shi Yanhao, a monk who performed Tiger Fist, said, "I am happy to see the mysterious Indian martial arts. Their performance was excellent and they were flexible in their body techniques." 


Sino-India martial arts masters meet at famed Shaolin Temple


Book of dead -is from Garud Puran

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Monday, August 29, 2016

प्राचीन भारत के रहस्य जानकर रह जाएंगे आप हैरान

भारतीय इतिहास के ऐसे कई रहस्य अभी उजागर होना बाकी हैं, जो इतिहास में नहीं पढ़ाए जाते या कि जिनके बारे में इतिहास में झूठ लिखा है। दरअसल, भारत के इतिहास को फिर से लिखे जाने की आवश्यकता है, क्योंकि वर्तमान में पाठ्यपुस्तकों में जो इतिहास पढ़ाया जाता है वह या तो अधूरा है या वह सत्य से बहुत दूर है। 


1.भारतीय इतिहास की शुरुआत को सिंधु घाटी की सभ्यता या फिर बौद्धकाल से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। कुछ इतिहासकार इसे सिकंदर के भारत आगमन से जोड़कर देखते हैं। आज जिसे हम भारतीय इतिहास का प्राचीनकाल कहते हैं, दरअसल वह मध्यकाल था और जिसे मध्यकाल कहते हैं वह राजपूत काल है। तब प्राचीन भारत के इतिहास को जानना जरूरी है।

यदि हम मेहरगढ़ संस्कृति और सभ्यता की बात करें तो वह लगभग 7000 से 3300 ईसा पूर्व अस्तित्व में थी जबकि सिंधु घाटी सभ्यता 3300 से 1700 ईसा पूर्व अस्तित्व में थी। प्राचीन भारत के इतिहास की शुरुआत 1200 ईसापूर्व से 240 ईसा पूर्व के बीच नहीं हुई थी। यदि हम धार्मिक इतिहास के लाखों वर्ष प्राचीन इतिहास को न भी मानें तो संस्कृत और कई प्राचीन भाषाओं के इतिहास के तथ्यों के अनुसार प्राचीन भारत के इतिहास की शुरुआत लगभग 13 हजार ईसापूर्व हुई थी अर्थात आज से 15 हजार वर्ष पूर्व।

उक्त 15 हजार वर्षों में भारत ने जहां एक और हिमयुग देखा है तो वहीं उसने जलप्रलय को भी झेला है। उस दौर में भारत में इतना उन्नत, विकसित और सभ्य समाज था जैसा कि आज देखने को मिलता है। इसके अलावा ऐसी कई प्राकृतिक आपदाओं का जिक्र और राजाओं की वंशावली का वर्णन है जिससे भारत के प्राचीन इतिहास की झलक मिलती है। आओ हम जानते हैं प्राचीन भारत के ऐसे 10 रहस्य जिस पर अब विज्ञान भी शोध करने लगा है और अब वह भी इसे सच मानता है। 


2. प्रथम जीव और मानव की जन्मस्थली : कुछ विद्वान मानते हैं कि जब अफ्रीका, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया एक थे तब भारत के एक हिस्से मात्र में डायनासोरों का राज था। लेकिन 50 करोड़ वर्ष पूर्व वह युग बीत गया। प्रथम जीव की उत्पत्ति धरती के पेंजिया भूखंड के काल में गोंडवाना भूमि पर हुई थी। गोंडवाना महाद्वीप एक ऐतिहासिक महाद्वीप था। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग 50 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर दो महा-महाद्वीप ही थे। उक्त दो महाद्वीपों को वैज्ञानिकों ने दो नाम दिए। एक का नाम था ‘गोंडवाना लैंड’ और दूसरे का नाम ‘लॉरेशिया लैंड’। गोंडवाना लैंड दक्षिण गोलार्ध में था और उसके टूटने से अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी अमेरिका और अफ्रीका महाद्वीप का निर्माण हुआ। गोंडवाना लैंड के कुछ हिस्से लॉरेशिया के कुछ हिस्सों से जुड़ गए जिनमें अरब प्रायद्वीप और भारतीय उपमहाद्वीप हैं। गोंडवाना लैंड का नाम भारत के गोंडवाना प्रदेश के नाम पर रखा गया है, क्योंकि यहां शुरुआती जीवन के प्रमाण मिले हैं। फिर 13 करोड़ साल पहले जब यह धरती 5 द्वीपों वाली बन गई, तब जीव-जगत का विस्तार हुआ। उसी विस्तार क्रम में आगे चलकर कुछ लाख वर्ष पूर्व मानव की उत्पत्ति हुई।

3.धरती का पहला मानव कौन था?
जीवन का विकास सर्वप्रथम भारतीय दक्षिण प्रायद्वीप में नर्मदा नदी के तट पर हुआ, जो विश्व की सर्वप्रथम नदी है। यहां डायनासोरों के सबसे प्राचीन अंडे एवं जीवाश्म प्राप्त हुए हैं। भारत के सबसे पुरातन आदिवासी गोंडवाना प्रदेश के गोंड संप्रदाय की पुराकथाओं में भी यही तथ्य वर्णित है। गोंडवाना मध्यभारत का ऐतिहासिक क्षेत्र है जिसमें मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र राज्य के हिस्से शामिल हैं। गोंड नाम की जाति आर्य धर्म की प्राचीन जातियों में से एक है, जो द्रविड़ समूह से आती है। उल्लेखनीय है कि आर्य नाम की कोई जाति नहीं होती थी। जो भी जाति आर्य धर्म का पालन करती थी उसे आर्य कहा जाता था।


पहला मानव : प्राचीन भारत के इतिहास के अनुसार मानव कई बार बना और कई बार फना हो गया। एक मन्वंतर के काल तक मानव सभ्यता जीवित रहती है और फिर वह काल बीत जाने पर संपूर्ण धरती अपनी प्रारंभिक अवस्था में पहुंच जाती है। लेकिन यह तो हुई धर्म की बात इसमें सत्य और तथ्य कितना है?

दुनिया व भारत के सभी ग्रंथ यही मानते हैं कि मानव की उत्पत्ति भारत में हुई थी। हालांकि भारतीय ग्रंथों में मानव की उत्पत्ति के दो सिद्धांत मिलते हैं- पहला मानव को ब्रह्मा ने बनाया था और दूसरा मनुष्य का जन्म क्रमविकास का परिणाम है। प्राचीनकाल में मनुष्य आज के मनुष्य जैसा नहीं था। जलवायु परिवर्तन के चलते उसमें भी बदलाव होते गए।

हालांकि ग्रंथ कहते हैं कि इस मन्वंतर के पहले मानव की उत्पत्ति वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर हुई थी। यह नदी कश्मीर में है। वेद के अनुसार प्रजापतियों के पुत्रों से ही धरती पर मानव की आबादी हुई। आज धरती पर जितने भी मनुष्य हैं सभी प्रजापतियों की संतानें हैं।

4.संस्कृत भाषा और ब्राह्मी लिपि : संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है तथा समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। ‘संस्कृत’ का शाब्दिक अर्थ है ‘परिपूर्ण भाषा’। संस्कृत से पहले दुनिया छोटी-छोटी, टूटी-फूटी बोलियों में बंटी थी जिनका कोई व्याकरण नहीं था और जिनका कोई भाषा कोष भी नहीं था। कुछ बोलियों ने संस्कृत को देखकर खुद को विकसित किया और वे भी एक भाषा बन गईं।


सभी भाषाओं की जननी संस्कृत

ब्राह्मी और देवनागरी लिपि : भाषा को लिपियों में लिखने का प्रचलन भारत में ही शुरू हुआ। भारत से इसे सुमेरियन, बेबीलोनीयन और यूनानी लोगों ने सीखा। प्राचीनकाल में ब्राह्मी और देवनागरी लिपि का प्रचलन था। ब्राह्मी और देवनागरी लिपियों से ही दुनियाभर की अन्य लिपियों का जन्म हुआ। ब्राह्मी लिपि एक प्राचीन लिपि है जिससे कई एशियाई लिपियों का विकास हुआ है। महान सम्राट अशोक ने ब्राह्मी लिपि को धम्मलिपि नाम दिया था। ब्राह्मी लिपि को देवनागरी लिपि से भी प्राचीन माना जाता है। कहा जाता है कि यह प्राचीन सिन्धु-सरस्वती लिपि से निकली लिपि है। हड़प्पा संस्कृति के लोग इस लिपि का इस्तेमाल करते थे, तब संस्कृत भाषा को भी इसी लिपि में लिखा जाता था।

शोधकर्ताओं के अनुसार देवनागरी, बांग्ला लिपि, उड़िया लिपि, गुजराती लिपि, गुरुमुखी, तमिल लिपि, मलयालम लिपि, सिंहल लिपि, कन्नड़ लिपि, तेलुगु लिपि, तिब्बती लिपि, रंजना, प्रचलित नेपाल, भुंजिमोल, कोरियाली, थाई, बर्मेली, लाओ, खमेर, जावानीज, खुदाबादी लिपि, यूनानी लिपि आदि सभी लिपियों की जननी है ब्राह्मी लिपि।

कहते हैं कि चीनी लिपि 5,000 वर्षों से ज्यादा प्राचीन है। मेसोपोटामिया में 4,000 वर्ष पूर्व क्यूनीफॉर्म लिपि प्रचलित थी। इसी तरह भारतीय लिपि ब्राह्मी के बारे में भी कहा जाता है। जैन पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि सभ्यता को मानवता तक लाने वाले पहले तीर्थंकर ऋषभदेव की एक बेटी थी जिसका नाम ब्राह्मी था और कहा जाता है कि उसी ने लेखन की खोज की। यही कारण है कि उसे ज्ञान की देवी सरस्वती के साथ जोड़ते हैं। हिन्दू धर्म में सरस्वती को शारदा भी कहा जाता है, जो ब्राह्मी से उद्भूत उस लिपि से संबंधित है, जो करीब 1500 वर्ष से अधिक पुरानी है।

केरल के एर्नाकुलम जिले में कलादी के समीप कोट्टानम थोडू के आसपास के इलाकों से मिली कुछ कलात्मक वस्तुओं पर ब्राह्मी लिपि खुदी हुई पाई गई है, जो नवपाषाणकालीन है। यह खोज इलाके में महापाषाण और नवपाषाण संस्कृति के अस्तित्व पर प्रकाश डालती है। पत्थर से बनी इन वस्तुओं का अध्ययन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के वैज्ञानिक और केरल विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पुरातत्वविद डॉ. पी. राजेन्द्रन द्वारा किया गया। ये वस्तुएं एर्नाकुलम जिले में मेक्कालादी के अंदेथ अली के संग्रह का हिस्सा हैं। राजेन्द्रन ने बताया कि मैंने कलादी में कोट्टायन के आसपास से अली द्वारा संग्रहीत कलात्मक वस्तुओं के विशाल भंडार का अध्ययन किया। इन वस्तुओं में नवपाषणकालीन और महापाषाणकालीन से संबंधित वस्तुएं भी हैं। उन्होंने बताया कि नवपाषाणकलीन कुल्हाड़ियों का अध्ययन करने के बाद पाया गया कि ऐसी 18 कुल्हाड़ियों में से 3 पर गुदी हुई लिपि ब्राह्मी लिपि है। 

5. अनिरुद्ध जोशी ‘शतायु’|
दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता सिंधु-सरस्वती : प्राचीन दुनिया में कुछ नदियां प्रमुख नदियां थीं जिनमें एक ओर सिंधु-सरस्वती और गंगा और नर्मदा थीं, तो दूसरी ओर दजला-फरात और नील नदियां थीं। दुनिया की प्रारंभिक मानव आबादी इन नदियों के पास ही बसी थीं जिसमें सिंधु और सरस्वती नदी के किनारे बसी सभ्यता सबसे समृद्ध, सभ्य और बुद्धिमान थी। इसके कई प्रमाण मौजूद हैं। दुनिया का पहला धार्मिक ग्रंथ सरस्वती नदी के किनारे बैठकर ही लिखा गया था।

क्या सचमुच भारत में बहती थी सरस्वती नदी?

सिन्धु-सरस्वती घाटी की सभ्यता का रहस्य जानिए…

एक और जहां दजला और फरात नदी के किनारे मोसोपोटामिया, सुमेरियन, असीरिया और बेबीलोन सभ्यता का विकास हुआ तो दूसरी ओर मिस्र की सभ्यता का विकास 3400 ईसा पूर्व नील नदी के किनारे हुआ। इसी तरह भारत में एक ओर सिंधु और सरस्वती नदी के किनारे सिंधु, हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि सभ्यताओं का विकास हुआ तो दूसरी ओर गंगा और नर्मदा के किनारे प्राचीन भारत का समाज निर्मित हुआ। 

प्राप्त शोधानुसार सिंधु और सरस्वती नदी के बीच जो सभ्यता बसी थी वह दुनिया की सबसे प्राचीन और समृद्ध सभ्यता थी। यह वर्तमान में अफगानिस्तान से भारत तक फैली थी। प्राचीनकाल में जितनी विशाल नदी सिंधु थी उससे कई ज्यादा विशाल नदी सरस्वती थी। 

शोधानुसार यह सभ्यता लगभग 9,000 ईसा पूर्व अस्तित्व में आई थी और 3,000 ईसापूर्व उसने स्वर्ण युग देखा और लगभग 1800 ईसा पूर्व आते-आते यह लुप्त हो गया। कहा जाता है कि 1,800 ईसा पूर्व के आसपास किसी भयानक प्राकृतिक आपदा के कारण एक और जहां सरस्वती नदी लुप्त हो गई वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र के लोगों ने पश्चिम की ओर पलायन कर दिया। पुरात्ववेत्ता मेसोपोटामिया (5000- 300 ईसापूर्व) को सबसे प्राचीन बताते हैं, लेकिन अभी सरस्वती सभ्यता पर शोध किए जाने की आवश्यकता है।

6. धर्म आधारित व्यवस्था : सैकड़ों हजार वर्ष पूर्व लोग कबीले, समुदाय, घुमंतू वनवासी आदि में रहकर जीवन-यापन करते थे और उनकी भिन्न-भिन्न विचारधाराएं थीं। उनके पास कोई स्पष्ट न तो शासन व्यवस्था थी और न ही कोई सामाजिक व्यवस्था। परिवार, संस्कार और धर्म की समझ तो बिलकुल नहीं थी। ऐसे में भारतीय हिमालयीन क्षेत्र में कुछ मुट्ठीभर लोग थे, जो इस संबंध में सोचते थे। उन्होंने ही वेद को सुना और उसे मानव समाज को सुनाया। जब कई मानव समूह 5,000 साल पहले ही घुमंतू वनवासी या जंगलवासी थे, भारतीय सिंधु घाटी में हड़प्पा संस्कृति की स्थापना हो चुकी थी। उल्लेखनीय है कि प्राचीनकाल से ही भारतीय समाज कबीले में नहीं रहा। वह एक वृहत्तर और विशेष समुदाय में ही रहा।

धर्म और सभ्यता का आविष्कारक देश भारत : दुनियाभर की प्राचीन सभ्यताओं से हिन्दू धर्म का क्या कनेक्शन था? या कि संपूर्ण धरती पर हिन्दू वैदिक धर्म ने ही लोगों को सभ्य बनाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में धार्मिक विचारधारा की नए-नए रूप में स्थापना की थी? आज दुनियाभर की धार्मिक संस्कृति और समाज में हिन्दू धर्म की झलक देखी जा सकती है चाहे वह यहूदी धर्म हो, पारसी धर्म हो या ईसाई-इस्लाम धर्म हो।

विश्व की प्राचीन सभ्यताएं और हिन्दू धर्म, जानिए रहस्य…

ईसा से 2300-2150 वर्ष पूर्व सुमेरिया, 2000-400 वर्ष पूर्व बेबिलोनिया, 2000-250 ईसा पूर्व ईरान, 2000-150 ईसा पूर्व मिस्र (इजिप्ट), 1450-500 ईसा पूर्व असीरिया, 1450-150 ईसा पूर्व ग्रीस (यूनान), 800-500 ईसा पूर्व रोम की सभ्यताएं विद्यमान थीं। उक्त सभी से पूर्व महाभारत का युद्ध लड़ा गया था इसका मतलब कि 3500 ईसा पूर्व भारत में एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी।

भारत का ‘धर्म’ दुनियाभर में अलग-अलग नामों से प्रचलित था। अरब और अफ्रीका में जहां सामी, सबाईन, मुशरिक, यजीदी, अश्शूर, तुर्क, हित्ती, कुर्द, पैगन आदि इस धर्म के मानने वाले समाज थे तो रोम, रूस, चीन व यूनान के प्राचीन समाज के लोग सभी किसी न किसी रूप में हिन्दू धर्म का पालन करते थे। ईसाई और बाद में इस्लाम के उत्थान काल में ये सभी समाज हाशिए पर धकेल दिए गए।

‘मैक्सिको’ शब्द संस्कृत के ‘मक्षिका’ शब्द से आता है और मैक्सिको में ऐसे हजारों प्रमाण मिलते हैं जिनसे यह सिद्ध होता है। जीसस क्राइस्ट्स से बहुत पहले वहां पर हिन्दू धर्म प्रचलित था- कोलंबस तो बहुत बाद में आया। सच तो यह है कि अमेरिका, विशेषकर दक्षिण-अमेरिका एक ऐसे महाद्वीप का हिस्सा था जिसमें अफ्रीका भी सम्मिलित था। भारत ठीक मध्य में था।

अफ्रीका में 6,000 वर्ष पुराना एक शिव मंदिर पाया गया और चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, लाओस, जापान में हजारों वर्ष पुरानी विष्णु, राम और हनुमान की प्रतिमाएं मिलना इस बात के सबूत हैं कि हिन्दू धर्म संपूर्ण धरती पर था।

भारत में रहते थे एलियंस : प्राचीन अंतरिक्ष विज्ञान के संबंध में खोज करने वाले एरिक वॉन डेनिकन तो यही मानते हैं कि भारत में ऐसी कई जगहें हैं, जहां एलियंस रहते थे जिन्हें वे आकाश के देवता कहते हैं।

7. भारत में ‘एलियंस’ के उतरने के सात स्थान, जानिए

हाल ही में भारत के एक खोजी दल ने कुछ गुफाओं में ऐसे भित्तिचित्र देखे हैं, जो कई हजार वर्ष पुराने हैं। प्रागैतिहासिक शैलचित्रों के शोध में जुटी एक संस्था ने रायसेन के करीब 70 किलोमीटर दूर घने जंगलों के शैलचित्रों के आधार पर अनुमान जताया है कि प्रदेश के इस हिस्से में दूसरे ग्रहों के प्राणी ‘एलियन’ आए होंगे।
प्राचीन अस्त्र-शस्त्रों के बारे में विस्तार से जानने के लिए आगे क्लिक करें… कैसे थे प्राचीन अस्त्र-शस्त्र और कौन से, जानिए…

उदाहरण के तौर पर एरिक वॉन अपनी बेस्ट सेलर पुस्तक ‘चैरियट्स ऑफ गॉड्स’ में लिखते हैं, ‘लगभग 5,000 वर्ष पुरानी महाभारत के तत्कालीन कालखंड में कोई योद्धा किसी ऐसे अस्त्र के बारे में कैसे जानता था जिसे चलाने से 12 साल तक उस धरती पर सूखा पड़ जाता, ऐसा कोई अस्त्र जो इतना शक्तिशाली हो कि वह माताओं के गर्भ में पलने वाले शिशु को भी मार सके? इसका अर्थ है कि ऐसा कुछ न कुछ तो था जिसका ज्ञान आगे नहीं बढ़ाया गया अथवा लिपिबद्ध नहीं हुआ और गुम हो गया।’

प्राचीन भारतीय खेलों की दुनिया में धूम : प्राचीन भारत बहुत ही समृद्ध और सभ्य देश था, जहां हर तरह के अत्याधुनिक हथियार थे, तो वहीं मानव के मनोरंजन के भरपूर साधन भी थे। एक ओर जहां शतरंज का आविष्कार भारत में हुआ वहीं फुटबॉल खेल का जन्म भी भारत में ही हुआ है। भगवान कृष्ण की गेंद यमुना में चली जाने का किस्सा बहुत चर्चित है तो दूसरी ओर भगवान राम के पतंग उड़ाने का उल्लेख भी मिलता है।

8. Footballकहने का तात्पर्य यह कि ऐसा कोई-सा खेल या मनोरंजन का साधन नहीं है जिसका आविष्कार भारत में न हुआ हो। भारत में प्राचीनकाल से ही ज्ञान को अत्यधिक महत्व दिया गया है। कला, विज्ञान, गणित और ऐसे अनगिनत क्षेत्र हैं जिनमें भारतीय योगदान है।

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Sunday, August 21, 2016

Kalpa Vigraha is the Oldest Hindu Idol of Lord Shiva (26450 BC)

Around 1959-60, a heavy chest containing the idol was reportedly given to CIA officials for safekeeping at Lo Monthang (called “Mustang” in CIA files) by a Tibetan monk accompanied by Khampa bodyguards. The monk apparently related to the CIA officials the importance of the chest and its contents. A curious CIA official meticulously wrote down the details of what the Buddhist monk told them about the chest and its contents. Why he thought it important to record the Buddhist monk’s story is anybody’s guess. But it also appears that the Americans were initially not quite impressed with the quaint values attached to objects of Oriental worship at that time when their priority was conducting a guerrilla war against the Chinese forces advancing into Tibet.

In the same week that the CIA officials received the chest a skirmish erupted with Chinese forces in which the Tibetan monk and his guards were killed. The CIA officials not knowing what to make of the curious chest loaded it onto an aircraft and had it sent to a secret airbase in India, later transporting it to Camp Hale, a now-abandoned Army base near Vail, Colorado. A few weeks later the chest wound up at a CIA store-room in Washington DC labeled “ST Circus Mustang-0183″.

Many months would elapse before someone in the CIA decided to take an interest in the chest and its contents. A strange manuscript found inside and the unusually age-worn chest coupled with its noticeably unique design prompted them to conduct a radiocarbon test of the timber with which the chest was made. The results given to them by the University of California Radiation Laboratory, Berkeley astounded the CIA officials. The antiquity of the worn-out wooden chest and the idol was mind-boggling to say the least. It did not belong to this “yuga” or epoch on the Hindu time scale just as the monk had claimed. That is to say, it belonged to a period called the Dwapara yuga, making it the oldest human artifact in existence. Radiocarbon (C14) dating conducted by the University of California Radiation Laboratory on the heavy 9-inch thick timber sides and lid of the chest in which it was discovered arrived at readings that indicated a period around 26,450 BCE. That would make it over 28,450 years old today, and about 23,300 years older than the legendary Hindu Kurukshetra war described in Mahabharata.
The idol was also tested by experts who concluded that it was the oldest Hindu idol in existence. None of the known ancient excavated civilizations of history – Egyptian, Mesopotamian or Indus Valley existed before 6000 years ago.

The Kalpa Vigraha idol was reportedly found placed inside this heavy metal-lined wooden chest with a socket-and-pivot hinged lid and an ancient loop-and-rod lock assembly. The chest itself presented a curiosity, as the space within the box was barely 8 X 8 X 8 inches while the timber pieces used to construct all its five sides was about 8 inches thick each! The timber of which the lid of the chest was made also measured about 6 inches in thickness. The teak-wood timber was further protected by a 1-inch thick bronze-like alloy plate on all sides which despite severe external corrosion had preserved the teak-wood of the box to a fair extent. The metal plate appears to have been riveted into the teakwood with nails of some similar metal alloy. Though many rivets were missing, the metal casing held well. The appearance of the chest suggested that it might have lain buried for a considerable period of time, though scrape-marks from attempts made to clean the corrosion on the outside were visible.

Corrosive salts or dampness had not crept into the chest despite its age, though some degree of natural oxidation and decay was noticed in the contents of the chest which included a manuscript written on wooden slats and the small brass-like crude metal idol. The old pre-Rigvedic Sanskrit-type manuscript was translated by the CIA with difficulty. In fact it reportedly took two long years to decipher, employing experts including some Indian and Nepalese. They concluded that the language belonged to the proto-historic period of Hinduism when it was thought no language existed and that the Vedas were being passed down orally. The manuscript appeared to be something akin to Sanskrit, but not quite anything any archaeologist or historian had ever encountered before. The manuscript mentioned the name of the idol – “kalpa maha-ayusham rasayana vigraha” abbreviated in CIA files to “Kalpa Vigraha.”

The Kalpa Vigraha is a small crude brass idol weighing about 47.10 gms depicting a deity resembling the Hindu god Shiva kneeling or seated on one knee, a serpant’s hood forming a canopy above the head of the idol. In the right hand of the figure was a discus or circular weapon, perhaps the “sudharshan-chakra” of Hindu mythology. Around its neck was a string of beads. The metal formed three “loops” on one side caused by the snake, an arm holding a conch-shell and the discus. It measured about 5.3 cm tall and about 4.7 cms wide, with an oval base 2.5 cms long and 1.7 cms wide. There was no doubt the small statue was of some extreme importance to have been preserved with such care in a chest of such strength and durability.

But following the translation of the manuscript, events surrounding the Kalpa Vigraha suddenly took a mysterious turn. The UCRL’s records were impounded by the CIA and a shroud of silence was cast over all matters regarding the chest and the Hindu idol. “ST Circus Mustang-0183” was removed from the inventory at the CIA storehouse records, and the whole episode was swept under the carpet for some inexplicable reason.

Kalpa Vigraha Water Experiments in USA by CIA

However, a retired CIA agent, revealed that based on the text of the manuscript found along with the idol, a series of top-secret experiments were conducted by the CIA on unsuspecting human subjects in the United States and elsewhere in the world. According to this unnamed source in Langley, Virginia, an “inner-circle” of the CIA dedicated most of their time in the early 1960s conducting experiments based on the ancient manuscript, and the Kalpa Vigraha idol itself played the most important role in this bizarre research.

The source, who was partially involved in the research, explained that one of the experiments was particularly intriguing. It required a human subject to consume a tumbler of water each day for 3 days. This water was earlier “charged” by CIA agents by simply placing the idol in a large copper vessel containing drinking water for nine days before the human subject was required to drink it. What results the “inner circle” officials expected to see by this innocuous experiment was not known to anybody at that time, but top CIA officials evinced great interest in it. The “charged” water was also sent to various laboratories under heavy security and all reports and documents received from the labs were sent directly to the CIA director, John McCone.

He also recalled that during this period a number of packages containing literature on homeopathy and ayurveda were received from various parts of the globe and often circulated in the department with markings and footnotes. Barring perhaps the inner-circle, nobody quite knew what this was all about.

A month later, the source was asked to head a nine-member team consisting mostly of women whose sole task was to feed this water to unsuspecting citizens in the US. They called themselves the “Watering Team“. It was not known to the Watering Team whether the subjects to whom the water was to be fed were randomly chosen by the inner-circle officials, but what was certain as the team met up with the target recipients of the water was that they were of all ages- some in their teens, some even past their middle-ages and many being above the age of sixty or sixty-five at least. Detail instructions were handed out as to how they were to go about the “watering“. What was also apparent to the team later was that all the subjects were born Americans, both black and white from various walks of life. Many were African American women. The “watering” had to be done without the subjects’ knowledge by befriending them or by looking for innocuous opportunities to get them to consume a glass of water for three consecutive days in a row. The team often failed, with some other members of the target recipient’s family ending up drinking the water inadvertently. The CIArequired them to report such slips also.

This went on for a few months. Some of the human test subjects chosen were in far-flung states and in remote towns and cities of the United States. Apparently the CIA had some system in place to monitor their subjects for whatever results they expected as an outcome of the experiment for the “Watering Team” was not required to hang around once the subject had consumed the water over three days. “Ease-out of the acquaintance without raising any questions”, they were told.

For the purpose of keeping a personal record, the source also made notes in his private diary – the names and addresses of the various recipients his team was required to befriend to feed the water. Maintenance of any such record was forbidden by the agency, nevertheless many agents did it and the CIA was aware of it.
The source recalls with amusement that during this time the agents in the CIA who were in-the-know about these experiments, including the members of their own “Watering Team” often doubted and double-checked their own drinking water, often leaving the office to fetch drinking water for themselves or settling for coffee, juice or soft-drinks. “It was a period of discomfort and uneasiness for reasons we could not fathom,” the source recalls.

Soon after the “watering” experiments were completed, the assignment was abruptly called off. In the subsequent years that the unnamed CIA official served in the agency not much was heard or spoken of this experiment, except as a joke. The inner-circle members were deployed to more pressing assignments around the US and the world. The reason for the bizarre experiment was never revealed, neither were the results ever known. Over time it was quite forgotten, and treated as some of the many idiosyncrasies that the CIA indulged in during the cold war years.
A recent long-distant telephone call from another state in the US on the morning of December 2008 changed all that. The source, now long retired, with great-grandchildren playing around him, was unexpectedly informed one night by another retired agent of the CIA that the Kalpa Vigraha was “missing“. The agent who made the call was once a member of the “inner circle“, a man who knew what the experiments conducted in the early 1960s was all about.

The CIA had been keeping a meticulous watch (“kalpa-tag“, they called it) over almost all test-subjects around the globe, and monitoring their lives in secrecy. There was not much to monitor, really. CIA’s kalpa vigraha cell’s job was, and still continues to be, to report back if a recipient of the charged water (wherever he or she was in the world) was alive. The Reason? All persons subjected to the Kalpa Vigraha experiment were expected to live very long lives, past the age of 100 at least, perhaps crossing 110 and even reaching the age of 120. Of course this does not include those who died unnatural deaths in road-accidents or other mishaps, murder, suicide, accidental poisoning, or dying in conflicts or war.

The Loss of the Kalpa Vigraha

Kalpa Vigraha, the CIA store-room inventory item labeled “ST Circus Mustang-0183”, was not seen or heard of for many decades. An audit conducted in 1996 revealed that the heavy metal-lined chest was very much in the store, but that the idol and the manuscript had been “misplaced“. In a search conducted over many weeks, spanning many states, and enquiries made from many retired personnel, the agency was able to trace the manuscript from the house of a microbiologist the CIA had many years ago hired for analysis of the “charged” kalpa vigraha water. The manuscript was found but the whereabouts of the Kalpa Vigraha is still a mystery. Following the discovery of the manuscript, a spate of mysterious deaths of microbiologists followed. The media and the internet were rife with conspiracy theories on the death of the rather alarming number of them, but few laid suspicion on the CIA until our above-mentioned source No 2, a serving agent of the CIA spilled the beans. However hard it will be to pin all these inexplicable deaths on the CIA, the coincidences are equally hard to rule out if source No.2 is honest regarding the facts. We would not like to go into the details revealed to us and would rather allow police and the investigation agencies to arrive at their own conclusions with regard to the deaths.

According to CIA source no.2 the Kalpa Vigraha has since been smuggled out of the United States to India. The latest information received at the CIA headquarters is that it lies in the possession of some software employees or IT professionals at Hyderabad, India or moved to some interior place in state of Andhra Pradesh.
For the first time since 1960, photographs of the Kalpa Vigraha, depicting the idol from four different directions were circulated around the world by the CIA with an enormous cash reward for its recovery.

Sudarsana Chakra was given by Siva to Vishnu

Sudarsana Chakra was given to Lord Vishnu by Lord Siva who was pleased with Vishnu’s devotion.
Vishnu who was having a torrid time as preserver god , in controlling the evil asuras , went to Mount Kailasa and began to pray to Siva.
Vishnu chanted many mantras, but there was no sign of Siva.
Lord Siva has a thousand names and Vishnu next started to chant these names.
Each day he chanted the thousand names and offered a thousand lotus flowers to Siva, who decided to litmus test Vishnu.
One day, he stole a single lotus flower from the thousand that were to be offered. When Vishnu realized that there was one lotus flower less, he gouged out his own eye and offered it in place of the missing lotus flower.
Siva was now pleased and appeared before Vishnu and presented him with the Sudarshana Chakra.
The above idol shows Siva with Snake as crown on top of his head, giving Sudarsana Chakra with his right hand to Vishnu.
Also can be seen Rudraksha Mala as garland.


The use of the Sudarshana Chakra is occasionally mentioned in the Hindu texts of Rigveda, Yajurveda and Puranas, as an ultimate weapon to eliminate the enemy of law, order and preservation.
Sudarsana Chakra is the most powerful mind controlled Scalar Weapon used multiple times by Vishnu and his avatar Krishna in war situations.

 

Source – booksfact


Saturday, August 20, 2016

Plastic surgery and cataract surgery are many surgeries were invented in India- Sushrut


surgical achievements of Sushruta and how they have influenced the medical field.  Proud of the Vedic Hindu Civilization.


Cataract surgery was invented by Indian sage Sushrut-
Sentific proof of Vedic India Surgeries in Ancient India- Flying Machines of Ancient India- Ancient Tamil Civilization - Truths Hidden by The Indian Government New 5000 year old Flying Machine discovered In Afganistan- Ancient Documentary 2015: Ancient India and the Earliest Known Civilizations HD Ancient India's Contributions to the World (Full Documentary) The Discovery of 1,750,000 Year Old Man Made Bridge -Proof of Ram God-

Thursday, August 11, 2016

अरब विजयता हिन्दू योद्धा बीसलदेव के बारे में सेक्युलर इतिहास 1 शब्द नहीं बताता



वीसलदेव (चाहमान वंश) के एक अति प्रतापी और विख्यात नरेश था, जिसने चाहमानों (चौहानों) की शक्ति में पर्याप्त वृद्धि तथा उसे एक साम्राज्य के रूप में परिणत करने का प्रयास किया । सन् 1153 में विग्रहराज चतुर्थ वीसलदेव शाकम्भरी राजसिंहासन पर बैठा और अरबों को खदेड़ा था 1153से 1164 तक राज्य किया, दिल्ली पर भी अधिकार किया था उन्होंने , 

मेवार से एक लेख प्राप्त हैं एवं मध्यकालीन इतिहास में लिखा हैं , को परास्त कर दिल्ली छीनकर अपने राज्य में मिला लिया था । डॉ. आर.सी. मजूमदार ने लिखा हैं की अपनी पराक्रम और शौर्य का परिचय देते हुये कई राज्य को जीत लिया था , अरबों को ना केवल भारत से खदेड़ा अपितु शौर्य का परचम तुर्क के शासक खुसरो शाह को परास्त कर लाहौर पर विजय पाया था । महाकवि सोमदेव ने वीसलदेव के प्रताप और शौर्य की प्रशंसा में 'ललित विग्रहराज' नमक ग्रन्थ लिखा ।

चाहमान वंश को आज नवीनतम इतिहास में चौहान कहा जाता हैं चाहमान वंश 2500 साल तक सम्पूर्ण जम्बूद्वीप के प्रहरी थे कुशल शासन द्वारा प्रजा और भारत माता के सेवा प्रदान किये, चाहमान वंश ने अरब , हूण और अस्सीरिया के अस्सूरों को धूल चटाया था ।

वीसलदेव चाहमान और अरबो के बीच कुल 8 से 10 युद्ध हुए पर दुर्भाग्यवश तीन युद्ध का वर्णन मिला बहोत खोज के बाद असल में वामपंथि इतिहासकार रोमिला थापर और भी कई वामपंथियों ने वीसलदेव को केवल एक संगीतकार बना कर पेश किया जो की पूरी तरह गलत हैं , वीसलदेव चाहमान अति पराक्रमी और प्रतापी राजा थे तुर्क, बेबीलोनिया, मिस्र , फातिमद साम्राज्य जिसमे काइरो, और मिस्र , तुर्क इत्यादि राज्य आते थे अरबो के खलीफा को परास्त कर मिस्र तुर्क एवं फातिमद साम्राज्य के कुछ राज्य पर भगवा ध्वज फहरानेवाले प्रथम वीर थे।

1)अरबो को हराया था प्रथम युद्ध सन् 1154 में अबुल-क़ासिम के साथ हुआ था यह मिस्र , तुर्क, बेबीलोनिया, सीरिया, काइरो आते थे, विग्रहराज चतुर्थ के पराक्रम के सामने क़ासिम की सेना धराशायी होगया था , विग्रहराज अपने प्रेम से और बल से आसपास के सभी राज्य जीत कर एकछत्र शासित राज्य की स्थापना किया था कासिम की सेना जाबालिपुर पर आक्रमण किया था विग्रहराज ने क़ासिम की सेना की कमर तोड़ दिया था (हमने 1971 की जंग में 94000 पाकिस्तानी सेना का आत्मसमर्पण अखबारो में आज भी देखते हैं ठीक उसी तरह इतिहासकार भी कुछ ईमानदारी भारतीय इतिहास पर तो आज हम इतिहास में यह भी पढ़ते) अरब के खलीफा क़ासिम की विशाल जिहादि की सेना को बंदी बनाकर जाबालिपुर में जुलुस निकाला था । 

2)तुर्क के साथ द्वितीय युद्ध सन् 1157 में हुआ था खुसरोशाह के साथ तुर्क तैमूर वंशज के क्रुर शासक थे जिन्होंने तलवार के बल पर एवं पैशाचिक सेना के बल पर सम्पूर्ण उज़्बेकिस्तान, मंगोलिया , कजाखस्तान को रौंध कर इस्लाम में तब्दील कर दिया था आधे से ज़्यादा मध्य एशिया के अधिकतर भू-भाग इस्लाम के क्रूरता का शिकार बन गया था , नददुल और दिल्ली को रौंधने का प्रयास खुसरो शाह की मृत्यु की वजह बन गया , 

विग्रहराज चतुर्थ की सेना 20000 से अधिक ना थी हर हर महादेव के शंखनाद से धर्मयोद्धाओं अलग सी ऊर्जा का संचय हुआ और भिड़त हुई लाखों मलेच्छों से तुर्क सेना नायक अहमद संजार की टुकड़ी सेना नायक अहनेद संजार के साथ खत्म होगया , और फिर खुसरोशाह की विग्रहराज के सेना नायक अरिवलसिन्ह तंवर द्वारा मृत्यु होने के पश्चात तुर्क की जिहादी सेना की हार हुई और वैदिक ध्वजा तुर्की तक फहराया चाहमान (चौहान) काल में अखंड जम्बूद्वीप पर मलेच्छो के कुल 64 से अधिक आक्रमण हुये थे जिसमे से केवल दो या तीन आक्रमण का ही उल्लेख मिलता हैं वह भी हारे हुए युद्ध का उल्लेख ।

3) तृतीय युद्ध सन 1155 में अतसिज़ ने किया था जो की ख्वारेज़्म के द्वितीय शाह थे सेल्जुक साम्राज्य के सुल्तान थे विग्रहराज चतुर्थ के साथ समरकन्द में युद्ध हुआ था समरकन्द (समारा+खांडा)यह एक संस्कृत नाम हैं जिसका मतलब होता हैं युद्ध क्षेत्र (region of war)जो की वर्तमान में उज़्बेकिस्तान का हिस्सा हैं यह उस समय विग्रहराज चतुर्थ (वोसलदेव चौहान) के साम्राज्य का हिस्सा था यहाँ अतसिज़ की सेना को परास्त होकर समरकन्द छौड़ कर भागना पड़ा था ।

4) चतुर्थ युद्ध को अंतिम युद्ध नहीं कह सकते क्यों की और भी युद्ध हुए जिनके वर्णन नहीं मिला खोज जारी हैं, सन् 1162 में नूर-अद-दीन के साथ युद्ध हुआ था नूर-अद-दीन जेंगीड़ साम्राज्य के सबसे क्रुर एवं हवसी राजा था जिस जगह भी गया ना केवल धन लूटता था औरतों को भी लूट में ले जाता था बैटल ऑफ़ इनाब् में यहूदियों के औरतों को लूटकर बज़ार लगाया था लाखों यहूदी नारियों के साथ नूर की सेना ने सामूहिक बलात्कार भी किया करते थे , 

नूर की क्रूरता का अंत भारत के वीर सपूत विग्रहराज के हाथो हुआ विग्रहराज चतुर्थ को पकड़ के उनके साम्राज्य एवं उनकी स्त्रीयों पर कब्ज़ा करने की योजना बनाते हुए अजमेर पर आक्रमण करने की भूल कर दिया सम्राट विग्रहराज के हाथों परास्त होकर लौटना परा मलेच्छो की सेना को ।

विग्रहराज चतुर्थ को दिग्विजय सम्राट कहना गलत नहीं होगा जम्बूद्वीप के महावीर शासक प्रजा हितेषी एवं वैदिक धर्म रक्षक वीसलदेव चौहान के साम्राज्य वर्तमान राज्य सीरिया, उज़वेकिस्तान, ताइवान, सेल्जुक साम्राज्य फातिमिद साम्राज्य को हराकर अरब तक फैल चूका था ।

निष्कर्ष-:

मुस्लिम इतिहासकारो ने जहाँ अपने जिहादी लूटेरे राजाओं की हार की वर्णन कही किसी लेख में नहीं किया वही आजके नवीन इतिहासकार जैसे विवेक आर्य ने एक किताब लिखा हैं शिवाजी और उनकी मुस्लिम निति जिसमे शिवाजी महाराज का बस खतना करवाना बाकी छौड़ दिया हैं विवेक आर्य ने आज के नवीन वामपंथी इतिहासकार जहाँ शिवाजी महाराज , महाराणा प्रताप , विग्रहराज , जडेजा राजाओं को धर्मनिरपेक्ष , 

कायर बताने में लगे हैं वही मुस्लमान इतिहासकारो ने अपने किसी इतिहास में अपने जिहादी राजाओं के हार का वर्णन नहीं किया हैं, अपितु हिन्दुओं के कत्लेआम पर गाज़ी उपाधि से नवाज़ा जाता हैं इन बातों पर गर्व करते हुए लिखा हैं। और दूसरी और हमारे इतिहासकार लगे हैं इतिहास को दूषित करने शिवाजी महाराज को मुस्लिम ह्रदय सम्राट , महाराणा प्रताप को अकबर से हारा हुआ बताते हैं , सती देवी पद्मिनी को ख़िलजी की प्रेमिका बताते हैं ।

Friday, July 29, 2016

Lost civilizations of North America

Most Americans have no idea that ancient cities with advanced architectures once dotted the ancient North American landscape. It is estimated that there once existed over 200,000 cities, structures and mounds across the continent.

Life after Life - A truth -Video - Dr Moody ,MD ,USA -A Research

Life after Life-A True story-



In Life After Life Raymond Moody investigates case studies of people who experienced clinical death and were subsequently revived. This classic exploration of life after death started a revolution in popular attitudes about the afterlife and established Dr. Moody as the world's leading authority in the field of near-death experiences.





Some children can remember exact & verifiable details of their prior life they never could have come to know in this their current child life. These details can be objectively and independently confirmed. Remarkably & quite biologically enigmatic: Some of them have birth marks and birth defects at very same locations as the lethal injury causing their often abrupt and violent past life death. Eg. Born with 5 missing fingers after a prior life accident where they were cut off... Birthmarks at the exact location where they got gunshot wounds in their prior life, which




In "Remembrances of Lives Past," an article that appeared in the New York Times this weekend, Newsweek's religion editor Lisa Miller takes a look at our nation's growing belief in reincarnation. According to data released by Pew Forum on Religion and Public Life, a quarter of Americans believe in reincarnation (interestingly, according to the Times piece, women are more likely to believe in reincarnation than men,





Sunday, July 24, 2016

सनातन धर्म का रक्षक महान सम्राट पुष्यमित्र शुंग।

सनातन धर्म का रक्षक महान सम्राट पुष्यमित्र शुंग।

मोर्य वंश के महान सम्राट चन्द्रगुप्त के पौत्र महान अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म अपना लिया। अशोक अगर राजपाठ छोड़कर बौद्ध भिक्षु बनकर धर्म प्रचार में लगता तब वह वास्तव में महान होता । परन्तु अशोक ने एक बौध सम्राट के रूप में लग भाग २० वर्ष तक शासन किया।
आचार्य चाणक्य ने भी जिस अखंड भारत के निर्माण हेतु आजीवन संघर्ष किया उसका लाभ भी सनातन धर्म को न मिल पाया, आचार्य चाणक्य जीवन भर चन्द्र्गुप्य मौर्य को संचालित करते रहे, परन्तु आचार्य चाणक्य के स्वर्गवास के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य जैन बन गया, और जैन सम्प्रदाय के प्रचार प्रसार में ही जीवन व्यतीत किया, अंत में संथारा करके मृत्यु को प्राप्त हुआ । चन्द्रगुप्त मौर्य का पुत्र बिन्दुसार हुआ जो आगे जाकर मखली गौशाल नामक व्यक्ति द्वारा स्थापित आजीविक सम्प्रदाय में दीक्षित हुआ, आजीविक सम्प्रदाय भी पूर्णतया वेद-विरोधी था, अर्थात बिन्दुसार ने भी आजीवन आजीविक सम्प्रदाय के प्रचार प्रसार हेतु ही सारा जीवन लगाया ।
बिन्दुसार के बाद उसका पुत्र चंड-अशोक गद्दी पर बैठा, जिसने वैदिक धर्म पर अधिक से अधिक प्रतिबंध लगाए, यज्ञों पर प्रतिबन्ध लगाये, गुरुकुलों को बोद्ध-विहार में परिवर्तित किया, मन्दिरों को नष्ट किया, शास्त्रों में हेर-फेर भी करवाए, अधिक से अधिक सनातन धर्मियों को बोद्ध सम्प्रदाय में तलवार के जोर पर और धन आदि का लालच देकर भी बोद्ध सम्प्रदाय की जनसंख्या बढाई । अहिंसा के पथ पर भी अशोक को वास्तविकता और आवश्यकता से कहीं अधिक बढ़ा चढ़ा कर महिमामंडित किया गया, जबकि अशोक की हिंसा और अहिंसा के सत्य का एक पहलु तो यह भी है कि अशोक के जन्मदिवस पर एक बार एक जैन आचार्य ने अशोक को एक चित्र भेंट किया जिसमे महात्मा बुद्ध को जैन महावीर के चरण स्पर्श करते हुए दिखाया गया, क्रोधवश छद्म अहिंसावादी चंड अशोक ने 3 दिन के भीतर ही 14000 जैन आचार्यों की हत्या करवाई ।
अहिंसा का पथ यह भी कैसा कि कलिंग विजय के बाद शस्त्र त्याग दिया, यह तो कुछ ऐसी बात हुई कि आपने कोई परीक्षा देते हुए सभी प्रश्नों के उत्तर लिख दिए अब आप कह रहे हैं कि मैं आगे किसी भी प्रश्न का उत्तर नही लिखूंगा… जीवनभर हिंसा करके अंतिम अविजित स्थान पर विजय पाकर आपने शस्त्र त्यागे और उसे त्याग की परिभाषा दी जाती है । अहिंसा का पथ अपनाते हुए उसने पूरे शासन तंत्र को बौद्ध धर्म के प्रचार व प्रसार में लगा दिया। अत्यधिक अहिंसा के प्रसार से भारत की वीर भूमि बौद्ध भिक्षुओ व बौद्ध मठों का गढ़ बन गई थी। उससे भी आगे जब मोर्य वंश का नौवा अन्तिम सम्राट बृहदरथ मगध की गद्दी पर बैठा ,तब उस समय तक आज का अफगानिस्तान, पंजाब व लगभग पूरा उत्तरी भारत बौद्ध बन चुका था । जब सिकंदर व सैल्युकस जैसे वीर भारत के वीरों से अपना मान मर्दन करा चुके थे, तब उसके लगभग ९० वर्ष पश्चात् जब भारत से बौद्ध धर्म की अहिंसात्मक निति के कारण वीर वृत्ति का लगभग ह्रास हो चुका था, ग्रीकों ने सिन्धु नदी को पार करने का साहस दिखा दिया।
सम्राट बृहदरथ के शासनकाल में ग्रीक शासक MENINDER जिसको बौद्ध साहित्य में मिलिंद और मनिन्द्र कहा गया है ,ने भारत वर्ष पर आक्रमण की योजना बनाई। मिनिंदर ने सबसे पहले बौद्ध धर्म के धर्म गुरुओं से संपर्क साधा,और उनसे कहा कि अगर आप भारत विजय में मेरा साथ दें तो में भारत विजय के पश्चात् में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लूँगा। बौद्ध गुरुओं ने राष्ट्र द्रोह किया तथा भारत पर आक्रमण के लिए एक विदेशी शासक का साथ दिया। सीमा पर स्थित बौद्ध मठ राष्ट्रद्रोह के अड्डे बन गए। बोद्ध भिक्षुओ का वेश धरकर मिनिंदर के सैनिक मठों में आकर रहने लगे। हजारों मठों में सैनिकों के साथ साथ हथियार भी छुपा दिए गए।(जैसे कि आजकल के मस्जिद-मदरसों में हो रहा है)
दूसरी तरफ़ सम्राट बृहदरथ की सेना का एक वीर सैनिक पुष्यमित्र शुंग अपनी वीरता व साहस के कारण मगध कि सेना का सेनापति बन चुका था । बौद्ध मठों में विदेशी सैनिको का आगमन उसकी नजरों से नही छुपा । पुष्यमित्र ने सम्राट से मठों कि तलाशी की आज्ञा मांगी। परंतु बौद्ध सम्राट बृहदरथ ने मना कर दिया (आजकल की सरकारें भी ऐसा नही होने देतीं)
किंतु राष्ट्रभक्ति की भावना से ओत प्रोत सेनापति पुष्यमित्र शुंग, सम्राट की आज्ञा का उल्लंघन करके बौद्ध मठों की तलाशी लेने पहुँच गया। मठों में स्थित सभी विदेशी सैनिको को पकड़ लिया गया,तथा उनको यमलोक पहुँचा दिया गया,और उनके हथियार कब्जे में कर लिए गए। राष्ट्रद्रोही बौद्धों को भी गिरफ्तार कर लिया गया। परन्तु वृहद्रथ को यह बात अच्छी नही लगी।
पुष्यमित्र जब मगध वापस आया तब उस समय सम्राट सैनिक परेड की जाँच कर रहा था। सैनिक परेड के स्थान पर ही सम्राट व पुष्यमित्र शुंग के बीच बौद्ध मठों को लेकर कहा सुनी हो गई। सम्राट बृहदरथ ने पुष्यमित्र पर हमला करना चाहा परंतु पुष्यमित्र ने पलटवार करते हुए सम्राट का वद्ध कर दिया। वैदिक सैनिको ने पुष्यमित्र का साथ दिया तथा पुष्यमित्र को मगध का सम्राट घोषित कर दिया। सबसे पहले मगध के नए सम्राट पुष्यमित्र ने राज्य प्रबंध को प्रभावी बनाया, तथा एक सुगठित सेना का संगठन किया। पुष्यमित्र ने अपनी सेना के साथ भारत के मध्य तक चढ़ आए मिनिंदर पर आक्रमण कर दिया। भारतीय वीर सेना के सामने ग्रीक सैनिको की एक न चली।
मिनिंदर की सेना पीछे हटती चली गई । पुष्यमित्र शुंग ने पिछले सम्राटों की तरह कोई गलती नही की तथा ग्रीक सेना का पीछा करते हुए उसे सिन्धु पार धकेल दिया। इसके पश्चात् ग्रीक कभी भी भारत पर आक्रमण नही कर पाये। सम्राट पुष्य मित्र ने सिकंदर के समय से ही भारत वर्ष को परेशानी में डालने वाले ग्रीको का समूल नाश ही कर दिया।
बौद्ध धर्म के प्रसार के कारण वैदिक सभ्यता का जो ह्रास हुआ, पुन: ऋषिओं के आशीर्वाद से जाग्रत हुआ। भय से बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले पुन: वैदिक धर्म में लौट आए। कुछ बौद्ध ग्रंथों में लिखा है की पुष्यमित्र ने बौद्दों को सताया, किंतु यह पूरा सत्य नही है। सम्राट ने उन राष्ट्रद्रोही बौद्धों को सजा दी, जो उस समय ग्रीक शासकों का साथ दे रहे थे।
उपरोक्त चित्र भारत में कई स्थानों पर पाए जाते हैं जो कि तत्कालीन वैदिक धर्मावलम्बियों द्वारा बोद्ध धर्म पर विजय के रूप में स्थापित किये गये, जिसमे बोद्ध सम्प्रदाय का प्रतीक हाथी है जिस पर सनातन धर्म का प्रतीक सिंह विजय प्राप्त करके उसे नियंत्रित करता हुआ दिखाई दे रहा है । पुष्यमित्र ने जो वैदिक धर्म की पताका फहराई उसी के आधार को सम्राट विक्रमादित्य व आगे चलकर गुप्त साम्राज्य ने इस धर्म के ज्ञान को पूरे विश्व में फैलाया। साम्राज्य के विभिन्न भागों में राजकुमार या राजकुल के लोगो को राज्यपाल नियुक्त करने की परम्परा चलती रही। पुष्यमित्र ने अपने पुत्रों को साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में सह-शासक नियुक्त कर रखा था। और उसका पुत्र अग्निमित्र विदिशा का उपराजा था। धनदेव कौशल का राज्यपाल था। राजकुमार जी सेना के संचालक भी थे। इस समय भी ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई होती थी। पुष्यमित्र का शासनकाल पूरी तरह से चुनौतियों से भरा हुआ था। उस समय भारत पर कई विदेशी आक्रान्ताओं ने आक्रमण किये, जिनका सामना पुष्यमित्र शुंग को करना पड़ा। पुष्यमित्र के राजा बन जाने पर मगध साम्राज्य को बहुत बल मिला था। जो राज्य मगध की अधीनता त्याग चुके थे, पुष्यमित्र ने उन्हें फिर से अपने अधीन कर लिया था। अपने विजय अभियानों से उसने मगध की सीमा का बहुत विस्तार किया।विदर्भ को जीतकर और यवनों को परास्त कर पुष्यमित्र शुंग मगध साम्राज्य के विलुप्त गौरव का पुनरुत्थान करने में समर्थ हुआ था। उसके साम्राज्य की सीमा पश्चिम में सिन्धु नदी तक अवश्य थी। दिव्यावदान के अनुसार ‘साकल’ (सियालकोट) उसके साम्राज्य के अंतर्गत था। अयोध्या में प्राप्त उसके शिलालेख से इस बात में कोई सन्देह नहीं रह जाता कि मध्यदेश पर उसका शासन भली-भाँति स्थिर था। विदर्भ की विजय से उसके साम्राज्य की दक्षिणी सीमा नर्मदा नदी तक पहुँच गयी थी। इस प्रकार पुष्यमित्र का साम्राज्य हिमालय से नर्मदा नदी तक और सिन्धु से प्राच्य समुद्र तक विस्तृत था। पुष्यमित्र ने जो वैदिक धर्म की पताका फहराई उसी के आधार को सम्राट विक्रमादित्य व आगे चलकर गुप्त साम्राज्य ने इस धर्म के ज्ञान को पूरे विश्व में फैलाया।पुराणों के अनुसार पुष्यमित्र ने 36 वर्ष (185-149 ई. पू.) तक राज्य किया। भारतीय इतिहासकारों ने पुष्यमित्र शुंग के साथ बहुत अन्याय किया है, महान इतिहासकार KOENRAAD ELST का कहना है कि अशोक से अधिक धर्म-निरपेक्ष पुष्यमित्र शुंग था, जिसने वैदिक धर्म का प्रचार प्रसार तो किया परन्तु शांतिप्रिय बौद्धों को भी जीवन यापन की समस्त स्वत्रंता प्रदान की और उन्हें परेशान नही किया।

Tuesday, July 5, 2016

Battle of Herat -Gurjar Vs Persian

Battle of Herat 
  Gurjar Vs Persian
World Famous Battle of Herat 
  Gurjar Vs Persian
Gurjar Samrat Khushnavaz Hoon 
Date 484
Location Herat, Afghanistan
Result Decisive Hephthalite victory.
Belligerents
Hephthalite(Hoon) Empire; Sassanid Empire
Commanders and leaders
Khushnavaz Peroz I  †
Mihran  †
Strength
Unknown 100,000 soldiers[1]
Casualties and losses
Unknown Heavy
The Battle of Herat was a large scale military confrontation that took place in 484 between an invading force of the Sassanid Empire composed of around 100,000 men[1] under the command of Peroz I and a smaller army of the Hun Empire of Gurjar under the command of Khushnavaz Hoon. The battle was a catastrophic defeat for the Sassanid forces who were almost completely wiped out. Peroz, the Sassanid king, was killed in the action.

In 459, the Hoon(Clan Of Gujjar) occupied Bactria and were confronted by the forces of the Sassanid king, Hormizd III. It was then that Peroz, in an apparent pact with the Hephthalites,[2] killed Hormizd, his brother, and established himself as the new king. He would go on to kill the majority of his family and began a persecution of various Christian sects in his territories.

Peroz quickly moved to maintain peaceful relations with the Byzantine Empire to the west. To the east, he attempted to check the Hephthalites, whose armies had begun their conquest of eastern Iran. The Romans supported the Sassanids in these efforts, sending them auxiliary units. The efforts to deter the Hephthalite expansion met with failure when Peroz chased their forces deep into Hephthalite territory and was surrounded. Peroz was taken prisoner in 481 and was made to deliver his son, Kavadh, as a hostage for three years, further paying a ransom for his release.

It was this humiliating defeat which led Peroz to launch a new campaign against the Hephthalites.

The battle::

In 484, after the liberation of his son, Peroz formed an enormous army and marched northeast to confront the Hephthalites. The king marched his forces all the way to Balkh where he established his base camp and rejected emissaries from the Hunnic king Khushnavaz. Peroz's forces advanced from Balkh to Herat. The Huns, learning of Peroz's way of advance, left troops along his path who proceeded to cut off the eventual Sassanid retreat and surround Peroz's army in the desert around the city of Herat. In the ensuing battle, almost all of the Sassanid army was wiped out. Peroz was killed in the action and most of his commanders and entourage were captured, including two of his daughters. The Gurjar forces proceeded to sack Herat before continuing on to a general invasion of the Sassanid Empire.

Aftermath 

The Huns invaded the Sassanid territories which had been left without a central government following the death of the king. Much of the Sassanid land was pillaged repeatedly for a period of two years until a Persian noble from the House of Karen, Sukhra, restored some order by establishing one of Peroz's brothers, Balash, as the new king. The Hunnic Gurjar menace to Sassanid lands continued until the reign of Khosrau I. Balash failed to take adequate measures to counter the Hephthalite incursions, and after a rule of four years, he was deposed in favor of Kavadh I, his nephew and the son of Peroz. After the death of his father, Kavadh had fled the kingdom and took refuge with his former captors, the Hephthalites, who had previously held him as a hostage. He there married one of the daughters of the Hunnic king, who gave him an army to conquer his old kingdom and take the throne.The Sassanids were made to pay tributes to the Hephthalite Gurjar Empire until 496 when Kavadh was ousted and forced to flee once again to Hephthalite territory. King Djamasp was installed on the throne for two years until Kavadh returned at the head of an army of 30,000 troop and retook his throne, reigning from 498 until his death in 531, when he was succeeded by his son, Khosrau I.

References:

^ a b c d e Heritage World Coin Auction #3010. Boston: Heritage Capital Corporation, 2010, pp. 28
^ a b Frye, 1996: 178
^ a b c Dani, 1999: 140
^ Christian, 1998: 220
Much of the information on this page was translated from its Spanish equivalent.
Bibliography 

David Christian (1998). A history of Russia, Central Asia, and Mongolia. Oxford: Wiley-Blackwell, ISBN 0-631-20814-3.
Richard Nelson Frye (1996). The heritage of Central Asia from antiquity to the Turkish expansion. Princeton: Markus Wiener Publishers, ISBN 1-55876-111-X.
Ahmad Hasan Dani (1999). History of civilizations of Central Asia: Volumen III. Delhi: Motilal Banarsidass Publ., ISBN 81-208-1540-8.

Sunday, June 26, 2016

SANSKRIT DECODES ANCIENT GLYPH FROM SOUTH AMERICA - THE SRI GANESHA CONNECT

SANSKRIT DECODES ANCIENT GLYPH FROM SOUTH AMERICA - THE SRI GANESHA CONNECT

The Elephant Pyramid Artifact, Peru.
The inscriptions have been decoded
with the help of Paleo-Sanskrit
Crespi artifact collection of Cuenca, in Peru
decoded by Kurt Schildmann

Many scholars have put forth the view that the undeciphered Indus valley inscriptions are a script of the Sanskrit language. In his work, now labeled 'Schildmann Decipherment', German linguist Kurt Schildmann (1909-2005), said that his study of ancient inscriptions discovered in the caves of Peru and the United States shows that they are similar to ancient Indus Valley'Sanskrit', suggesting that seafarers from India may have reached the Americas thousands of years ago. He called the 'language 'Paleo-Sanskrit'. Scroll down to the end to see the tables of inscriptions and the sounds each inscription represents.


Schildmann described the Indus civilization as a forerunner of other world civilizations. While doing research on the Crespi artifact collection of Cuenca, Peru, Schildmann discoveredSanskrit in inscriptions found there, as well as in the Burrows cave in southern Illinois, USA. Russel Burrows, a retired colonel of the U.S. armed forces, had accidentally discovered the cave on April 2, 1982.

Schildmann had noticed the similarity between the language of the inscriptions on the Crespi artifact in Peru and the Burrows' cave after having deciphered the inscriptions in the Indus Valley. He also said that an icon found in the Burrows' depicted the 'wisdom of the Indus Valley culture of India'. 
Sri Ganesha - the Vedic Elephant God
is also known as Pillai in Dravadian Languages.
In Sanskrit also 'pilla' (पिल्ल) means 'elephant


But first a look at the Cuenca inscription. Schildmann was struck by the drawing of an elephant on top of a 'pyramid', with three lines of a legend in the artifact found in Peru.

Schildman deciphered the first row as 'pil', which he linked to the Akkadian word for 'elephant'. Now, the Akkadian dictionary says that the exact word for 'elephant' is 'pilu', 'piru' or 'peru'. The female elephant in Sanskrit is known as 'pillaka' (पिल्लका) even today. The ancient Sanskrit word for 'elephant' is 'pilla' (पिल्ल). Also what is interesting is that a prominent name for Sri Ganesha, the Vedic elephant-god, in Tamil is 'Pillai'.
Researcher A. K. Narain states that the words pallu, pella, and pell in the Dravidian family of languages signify 'tooth or tusk', also 'elephant tooth or tusk'.

 



A variant of 'pilu' in Akkadian, as mentioned above is 'peru'. Is it possible that the country name 'Peru' is linked to the 'elephant' - assuming that it was known by the same name thousands of years back. Again, 'peru' (पेरू) also means 'golden mountain' in Sanskrit, and that it refers to the pyramid shape of the artifact is another possibility.


Schildmann decoded the second word as 'alepi' and said that 'alepi' is Semitic for 'elephant'. Though if one were to decode the second line in reverse order it still reads as 'peala'. The 'third line is decoded as 'hosti' which is the same as Sanskrit 'hasti' (हस्ती) meaning 'elephant'. 


Professor Kurt Schildmann  work called 'The Decipherment' has unfortunately disappeared from publication, however a copy of his work in his own handwriting still exists and efforts are being made to reveal this suppressed information so that recognition may be given to this profound work in the study of Paleolithic culture worldwide.

THE WORD 'ELEPHANT', ITS SANSKRIT SOURCE, AND THE CRESPI ARTIFACT COLLECTION OF PERU AND ECUADOR

English etymological dictionaries like etymonline.com trace the source of the word 'elephant' to 'ibhah' (इभ), which is a Sanskrit word meaning 'elephant'. The elephant-keeper is known as 'ibhapa' (इभप).

German linguist Kurt Schildmann (1909-2005), in his work, 'The Schildmann Decipherment', stated that his research on ancient inscriptions discovered in Peru and Ecuador had revealed that they were similar to ancient Indus Valley' inscriptions. He had deciphered the inscriptions with the help of sanskrit.

As mentioned in the previous post Schildmann was particularly struck by one artifact from the 'Crespi Artifact Collection. This ancient artifact is pyramid shaped and has the inscription of anelephant and the sun on top followed by three rows of text-characters.
Schildmann deciphered the first row as 'pil' which is the same as 'pilu' (पीलु). It is one of the many Sanskrit words for elephant.

Schildmann decoded the second word as 'alepi' and said that 'alepi' is Semitic for 'elephant'. Though if one were to decode the second line in reverse order it still reads close to 'pila' or 'pilu'. The 'third line is decoded as 'hosti' which is the same as Sanskrit 'hasti' (हस्ती) meaning 'elephant'. 

Vinay Vaidya says, "We see that the one who looks after an elephant is called piluvAn or piluvantaH (one riding a 'pilu') in Sanskrit. Then transformation of a 'piluvantaH' into the word 'elephant' is just a twist and turn of the tongue. And I am sure, this Alepi is like-wise a cognate of the same word." 

A slight tweaking of the three words 'pil', 'alepi' and 'hosti', to 'pIt' (पीत), 'Alepa' (आलेप) and 'hasti' (हस्ती), - changes the meaning to 'golden', 'smeared', 'elephant'. In Sanskrit 'pIt' (पीत) means 'yellow' or 'gold', 'alepa' means 'smeared', and 'hasti' is 'elephant'. The inscription would then read,  'gold smeared elephant' or 'the golden elephant' - which probably also explains the 'sun' inscribed on the top section of the artifact.

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