Friday, July 29, 2016

Lost civilizations of North America

Most Americans have no idea that ancient cities with advanced architectures once dotted the ancient North American landscape. It is estimated that there once existed over 200,000 cities, structures and mounds across the continent.

Life after Life - A truth -Video - Dr Moody ,MD ,USA -A Research

Life after Life-A True story-



In Life After Life Raymond Moody investigates case studies of people who experienced clinical death and were subsequently revived. This classic exploration of life after death started a revolution in popular attitudes about the afterlife and established Dr. Moody as the world's leading authority in the field of near-death experiences.





Some children can remember exact & verifiable details of their prior life they never could have come to know in this their current child life. These details can be objectively and independently confirmed. Remarkably & quite biologically enigmatic: Some of them have birth marks and birth defects at very same locations as the lethal injury causing their often abrupt and violent past life death. Eg. Born with 5 missing fingers after a prior life accident where they were cut off... Birthmarks at the exact location where they got gunshot wounds in their prior life, which




In "Remembrances of Lives Past," an article that appeared in the New York Times this weekend, Newsweek's religion editor Lisa Miller takes a look at our nation's growing belief in reincarnation. According to data released by Pew Forum on Religion and Public Life, a quarter of Americans believe in reincarnation (interestingly, according to the Times piece, women are more likely to believe in reincarnation than men,





Sunday, July 24, 2016

सनातन धर्म का रक्षक महान सम्राट पुष्यमित्र शुंग।

सनातन धर्म का रक्षक महान सम्राट पुष्यमित्र शुंग।

मोर्य वंश के महान सम्राट चन्द्रगुप्त के पौत्र महान अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म अपना लिया। अशोक अगर राजपाठ छोड़कर बौद्ध भिक्षु बनकर धर्म प्रचार में लगता तब वह वास्तव में महान होता । परन्तु अशोक ने एक बौध सम्राट के रूप में लग भाग २० वर्ष तक शासन किया।
आचार्य चाणक्य ने भी जिस अखंड भारत के निर्माण हेतु आजीवन संघर्ष किया उसका लाभ भी सनातन धर्म को न मिल पाया, आचार्य चाणक्य जीवन भर चन्द्र्गुप्य मौर्य को संचालित करते रहे, परन्तु आचार्य चाणक्य के स्वर्गवास के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य जैन बन गया, और जैन सम्प्रदाय के प्रचार प्रसार में ही जीवन व्यतीत किया, अंत में संथारा करके मृत्यु को प्राप्त हुआ । चन्द्रगुप्त मौर्य का पुत्र बिन्दुसार हुआ जो आगे जाकर मखली गौशाल नामक व्यक्ति द्वारा स्थापित आजीविक सम्प्रदाय में दीक्षित हुआ, आजीविक सम्प्रदाय भी पूर्णतया वेद-विरोधी था, अर्थात बिन्दुसार ने भी आजीवन आजीविक सम्प्रदाय के प्रचार प्रसार हेतु ही सारा जीवन लगाया ।
बिन्दुसार के बाद उसका पुत्र चंड-अशोक गद्दी पर बैठा, जिसने वैदिक धर्म पर अधिक से अधिक प्रतिबंध लगाए, यज्ञों पर प्रतिबन्ध लगाये, गुरुकुलों को बोद्ध-विहार में परिवर्तित किया, मन्दिरों को नष्ट किया, शास्त्रों में हेर-फेर भी करवाए, अधिक से अधिक सनातन धर्मियों को बोद्ध सम्प्रदाय में तलवार के जोर पर और धन आदि का लालच देकर भी बोद्ध सम्प्रदाय की जनसंख्या बढाई । अहिंसा के पथ पर भी अशोक को वास्तविकता और आवश्यकता से कहीं अधिक बढ़ा चढ़ा कर महिमामंडित किया गया, जबकि अशोक की हिंसा और अहिंसा के सत्य का एक पहलु तो यह भी है कि अशोक के जन्मदिवस पर एक बार एक जैन आचार्य ने अशोक को एक चित्र भेंट किया जिसमे महात्मा बुद्ध को जैन महावीर के चरण स्पर्श करते हुए दिखाया गया, क्रोधवश छद्म अहिंसावादी चंड अशोक ने 3 दिन के भीतर ही 14000 जैन आचार्यों की हत्या करवाई ।
अहिंसा का पथ यह भी कैसा कि कलिंग विजय के बाद शस्त्र त्याग दिया, यह तो कुछ ऐसी बात हुई कि आपने कोई परीक्षा देते हुए सभी प्रश्नों के उत्तर लिख दिए अब आप कह रहे हैं कि मैं आगे किसी भी प्रश्न का उत्तर नही लिखूंगा… जीवनभर हिंसा करके अंतिम अविजित स्थान पर विजय पाकर आपने शस्त्र त्यागे और उसे त्याग की परिभाषा दी जाती है । अहिंसा का पथ अपनाते हुए उसने पूरे शासन तंत्र को बौद्ध धर्म के प्रचार व प्रसार में लगा दिया। अत्यधिक अहिंसा के प्रसार से भारत की वीर भूमि बौद्ध भिक्षुओ व बौद्ध मठों का गढ़ बन गई थी। उससे भी आगे जब मोर्य वंश का नौवा अन्तिम सम्राट बृहदरथ मगध की गद्दी पर बैठा ,तब उस समय तक आज का अफगानिस्तान, पंजाब व लगभग पूरा उत्तरी भारत बौद्ध बन चुका था । जब सिकंदर व सैल्युकस जैसे वीर भारत के वीरों से अपना मान मर्दन करा चुके थे, तब उसके लगभग ९० वर्ष पश्चात् जब भारत से बौद्ध धर्म की अहिंसात्मक निति के कारण वीर वृत्ति का लगभग ह्रास हो चुका था, ग्रीकों ने सिन्धु नदी को पार करने का साहस दिखा दिया।
सम्राट बृहदरथ के शासनकाल में ग्रीक शासक MENINDER जिसको बौद्ध साहित्य में मिलिंद और मनिन्द्र कहा गया है ,ने भारत वर्ष पर आक्रमण की योजना बनाई। मिनिंदर ने सबसे पहले बौद्ध धर्म के धर्म गुरुओं से संपर्क साधा,और उनसे कहा कि अगर आप भारत विजय में मेरा साथ दें तो में भारत विजय के पश्चात् में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लूँगा। बौद्ध गुरुओं ने राष्ट्र द्रोह किया तथा भारत पर आक्रमण के लिए एक विदेशी शासक का साथ दिया। सीमा पर स्थित बौद्ध मठ राष्ट्रद्रोह के अड्डे बन गए। बोद्ध भिक्षुओ का वेश धरकर मिनिंदर के सैनिक मठों में आकर रहने लगे। हजारों मठों में सैनिकों के साथ साथ हथियार भी छुपा दिए गए।(जैसे कि आजकल के मस्जिद-मदरसों में हो रहा है)
दूसरी तरफ़ सम्राट बृहदरथ की सेना का एक वीर सैनिक पुष्यमित्र शुंग अपनी वीरता व साहस के कारण मगध कि सेना का सेनापति बन चुका था । बौद्ध मठों में विदेशी सैनिको का आगमन उसकी नजरों से नही छुपा । पुष्यमित्र ने सम्राट से मठों कि तलाशी की आज्ञा मांगी। परंतु बौद्ध सम्राट बृहदरथ ने मना कर दिया (आजकल की सरकारें भी ऐसा नही होने देतीं)
किंतु राष्ट्रभक्ति की भावना से ओत प्रोत सेनापति पुष्यमित्र शुंग, सम्राट की आज्ञा का उल्लंघन करके बौद्ध मठों की तलाशी लेने पहुँच गया। मठों में स्थित सभी विदेशी सैनिको को पकड़ लिया गया,तथा उनको यमलोक पहुँचा दिया गया,और उनके हथियार कब्जे में कर लिए गए। राष्ट्रद्रोही बौद्धों को भी गिरफ्तार कर लिया गया। परन्तु वृहद्रथ को यह बात अच्छी नही लगी।
पुष्यमित्र जब मगध वापस आया तब उस समय सम्राट सैनिक परेड की जाँच कर रहा था। सैनिक परेड के स्थान पर ही सम्राट व पुष्यमित्र शुंग के बीच बौद्ध मठों को लेकर कहा सुनी हो गई। सम्राट बृहदरथ ने पुष्यमित्र पर हमला करना चाहा परंतु पुष्यमित्र ने पलटवार करते हुए सम्राट का वद्ध कर दिया। वैदिक सैनिको ने पुष्यमित्र का साथ दिया तथा पुष्यमित्र को मगध का सम्राट घोषित कर दिया। सबसे पहले मगध के नए सम्राट पुष्यमित्र ने राज्य प्रबंध को प्रभावी बनाया, तथा एक सुगठित सेना का संगठन किया। पुष्यमित्र ने अपनी सेना के साथ भारत के मध्य तक चढ़ आए मिनिंदर पर आक्रमण कर दिया। भारतीय वीर सेना के सामने ग्रीक सैनिको की एक न चली।
मिनिंदर की सेना पीछे हटती चली गई । पुष्यमित्र शुंग ने पिछले सम्राटों की तरह कोई गलती नही की तथा ग्रीक सेना का पीछा करते हुए उसे सिन्धु पार धकेल दिया। इसके पश्चात् ग्रीक कभी भी भारत पर आक्रमण नही कर पाये। सम्राट पुष्य मित्र ने सिकंदर के समय से ही भारत वर्ष को परेशानी में डालने वाले ग्रीको का समूल नाश ही कर दिया।
बौद्ध धर्म के प्रसार के कारण वैदिक सभ्यता का जो ह्रास हुआ, पुन: ऋषिओं के आशीर्वाद से जाग्रत हुआ। भय से बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले पुन: वैदिक धर्म में लौट आए। कुछ बौद्ध ग्रंथों में लिखा है की पुष्यमित्र ने बौद्दों को सताया, किंतु यह पूरा सत्य नही है। सम्राट ने उन राष्ट्रद्रोही बौद्धों को सजा दी, जो उस समय ग्रीक शासकों का साथ दे रहे थे।
उपरोक्त चित्र भारत में कई स्थानों पर पाए जाते हैं जो कि तत्कालीन वैदिक धर्मावलम्बियों द्वारा बोद्ध धर्म पर विजय के रूप में स्थापित किये गये, जिसमे बोद्ध सम्प्रदाय का प्रतीक हाथी है जिस पर सनातन धर्म का प्रतीक सिंह विजय प्राप्त करके उसे नियंत्रित करता हुआ दिखाई दे रहा है । पुष्यमित्र ने जो वैदिक धर्म की पताका फहराई उसी के आधार को सम्राट विक्रमादित्य व आगे चलकर गुप्त साम्राज्य ने इस धर्म के ज्ञान को पूरे विश्व में फैलाया। साम्राज्य के विभिन्न भागों में राजकुमार या राजकुल के लोगो को राज्यपाल नियुक्त करने की परम्परा चलती रही। पुष्यमित्र ने अपने पुत्रों को साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में सह-शासक नियुक्त कर रखा था। और उसका पुत्र अग्निमित्र विदिशा का उपराजा था। धनदेव कौशल का राज्यपाल था। राजकुमार जी सेना के संचालक भी थे। इस समय भी ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई होती थी। पुष्यमित्र का शासनकाल पूरी तरह से चुनौतियों से भरा हुआ था। उस समय भारत पर कई विदेशी आक्रान्ताओं ने आक्रमण किये, जिनका सामना पुष्यमित्र शुंग को करना पड़ा। पुष्यमित्र के राजा बन जाने पर मगध साम्राज्य को बहुत बल मिला था। जो राज्य मगध की अधीनता त्याग चुके थे, पुष्यमित्र ने उन्हें फिर से अपने अधीन कर लिया था। अपने विजय अभियानों से उसने मगध की सीमा का बहुत विस्तार किया।विदर्भ को जीतकर और यवनों को परास्त कर पुष्यमित्र शुंग मगध साम्राज्य के विलुप्त गौरव का पुनरुत्थान करने में समर्थ हुआ था। उसके साम्राज्य की सीमा पश्चिम में सिन्धु नदी तक अवश्य थी। दिव्यावदान के अनुसार ‘साकल’ (सियालकोट) उसके साम्राज्य के अंतर्गत था। अयोध्या में प्राप्त उसके शिलालेख से इस बात में कोई सन्देह नहीं रह जाता कि मध्यदेश पर उसका शासन भली-भाँति स्थिर था। विदर्भ की विजय से उसके साम्राज्य की दक्षिणी सीमा नर्मदा नदी तक पहुँच गयी थी। इस प्रकार पुष्यमित्र का साम्राज्य हिमालय से नर्मदा नदी तक और सिन्धु से प्राच्य समुद्र तक विस्तृत था। पुष्यमित्र ने जो वैदिक धर्म की पताका फहराई उसी के आधार को सम्राट विक्रमादित्य व आगे चलकर गुप्त साम्राज्य ने इस धर्म के ज्ञान को पूरे विश्व में फैलाया।पुराणों के अनुसार पुष्यमित्र ने 36 वर्ष (185-149 ई. पू.) तक राज्य किया। भारतीय इतिहासकारों ने पुष्यमित्र शुंग के साथ बहुत अन्याय किया है, महान इतिहासकार KOENRAAD ELST का कहना है कि अशोक से अधिक धर्म-निरपेक्ष पुष्यमित्र शुंग था, जिसने वैदिक धर्म का प्रचार प्रसार तो किया परन्तु शांतिप्रिय बौद्धों को भी जीवन यापन की समस्त स्वत्रंता प्रदान की और उन्हें परेशान नही किया।

Tuesday, July 5, 2016

Battle of Herat -Gurjar Vs Persian

Battle of Herat 
  Gurjar Vs Persian
World Famous Battle of Herat 
  Gurjar Vs Persian
Gurjar Samrat Khushnavaz Hoon 
Date 484
Location Herat, Afghanistan
Result Decisive Hephthalite victory.
Belligerents
Hephthalite(Hoon) Empire; Sassanid Empire
Commanders and leaders
Khushnavaz Peroz I  †
Mihran  †
Strength
Unknown 100,000 soldiers[1]
Casualties and losses
Unknown Heavy
The Battle of Herat was a large scale military confrontation that took place in 484 between an invading force of the Sassanid Empire composed of around 100,000 men[1] under the command of Peroz I and a smaller army of the Hun Empire of Gurjar under the command of Khushnavaz Hoon. The battle was a catastrophic defeat for the Sassanid forces who were almost completely wiped out. Peroz, the Sassanid king, was killed in the action.

In 459, the Hoon(Clan Of Gujjar) occupied Bactria and were confronted by the forces of the Sassanid king, Hormizd III. It was then that Peroz, in an apparent pact with the Hephthalites,[2] killed Hormizd, his brother, and established himself as the new king. He would go on to kill the majority of his family and began a persecution of various Christian sects in his territories.

Peroz quickly moved to maintain peaceful relations with the Byzantine Empire to the west. To the east, he attempted to check the Hephthalites, whose armies had begun their conquest of eastern Iran. The Romans supported the Sassanids in these efforts, sending them auxiliary units. The efforts to deter the Hephthalite expansion met with failure when Peroz chased their forces deep into Hephthalite territory and was surrounded. Peroz was taken prisoner in 481 and was made to deliver his son, Kavadh, as a hostage for three years, further paying a ransom for his release.

It was this humiliating defeat which led Peroz to launch a new campaign against the Hephthalites.

The battle::

In 484, after the liberation of his son, Peroz formed an enormous army and marched northeast to confront the Hephthalites. The king marched his forces all the way to Balkh where he established his base camp and rejected emissaries from the Hunnic king Khushnavaz. Peroz's forces advanced from Balkh to Herat. The Huns, learning of Peroz's way of advance, left troops along his path who proceeded to cut off the eventual Sassanid retreat and surround Peroz's army in the desert around the city of Herat. In the ensuing battle, almost all of the Sassanid army was wiped out. Peroz was killed in the action and most of his commanders and entourage were captured, including two of his daughters. The Gurjar forces proceeded to sack Herat before continuing on to a general invasion of the Sassanid Empire.

Aftermath 

The Huns invaded the Sassanid territories which had been left without a central government following the death of the king. Much of the Sassanid land was pillaged repeatedly for a period of two years until a Persian noble from the House of Karen, Sukhra, restored some order by establishing one of Peroz's brothers, Balash, as the new king. The Hunnic Gurjar menace to Sassanid lands continued until the reign of Khosrau I. Balash failed to take adequate measures to counter the Hephthalite incursions, and after a rule of four years, he was deposed in favor of Kavadh I, his nephew and the son of Peroz. After the death of his father, Kavadh had fled the kingdom and took refuge with his former captors, the Hephthalites, who had previously held him as a hostage. He there married one of the daughters of the Hunnic king, who gave him an army to conquer his old kingdom and take the throne.The Sassanids were made to pay tributes to the Hephthalite Gurjar Empire until 496 when Kavadh was ousted and forced to flee once again to Hephthalite territory. King Djamasp was installed on the throne for two years until Kavadh returned at the head of an army of 30,000 troop and retook his throne, reigning from 498 until his death in 531, when he was succeeded by his son, Khosrau I.

References:

^ a b c d e Heritage World Coin Auction #3010. Boston: Heritage Capital Corporation, 2010, pp. 28
^ a b Frye, 1996: 178
^ a b c Dani, 1999: 140
^ Christian, 1998: 220
Much of the information on this page was translated from its Spanish equivalent.
Bibliography 

David Christian (1998). A history of Russia, Central Asia, and Mongolia. Oxford: Wiley-Blackwell, ISBN 0-631-20814-3.
Richard Nelson Frye (1996). The heritage of Central Asia from antiquity to the Turkish expansion. Princeton: Markus Wiener Publishers, ISBN 1-55876-111-X.
Ahmad Hasan Dani (1999). History of civilizations of Central Asia: Volumen III. Delhi: Motilal Banarsidass Publ., ISBN 81-208-1540-8.

Sunday, June 26, 2016

SANSKRIT DECODES ANCIENT GLYPH FROM SOUTH AMERICA - THE SRI GANESHA CONNECT

SANSKRIT DECODES ANCIENT GLYPH FROM SOUTH AMERICA - THE SRI GANESHA CONNECT

The Elephant Pyramid Artifact, Peru.
The inscriptions have been decoded
with the help of Paleo-Sanskrit
Crespi artifact collection of Cuenca, in Peru
decoded by Kurt Schildmann

Many scholars have put forth the view that the undeciphered Indus valley inscriptions are a script of the Sanskrit language. In his work, now labeled 'Schildmann Decipherment', German linguist Kurt Schildmann (1909-2005), said that his study of ancient inscriptions discovered in the caves of Peru and the United States shows that they are similar to ancient Indus Valley'Sanskrit', suggesting that seafarers from India may have reached the Americas thousands of years ago. He called the 'language 'Paleo-Sanskrit'. Scroll down to the end to see the tables of inscriptions and the sounds each inscription represents.


Schildmann described the Indus civilization as a forerunner of other world civilizations. While doing research on the Crespi artifact collection of Cuenca, Peru, Schildmann discoveredSanskrit in inscriptions found there, as well as in the Burrows cave in southern Illinois, USA. Russel Burrows, a retired colonel of the U.S. armed forces, had accidentally discovered the cave on April 2, 1982.

Schildmann had noticed the similarity between the language of the inscriptions on the Crespi artifact in Peru and the Burrows' cave after having deciphered the inscriptions in the Indus Valley. He also said that an icon found in the Burrows' depicted the 'wisdom of the Indus Valley culture of India'. 
Sri Ganesha - the Vedic Elephant God
is also known as Pillai in Dravadian Languages.
In Sanskrit also 'pilla' (पिल्ल) means 'elephant


But first a look at the Cuenca inscription. Schildmann was struck by the drawing of an elephant on top of a 'pyramid', with three lines of a legend in the artifact found in Peru.

Schildman deciphered the first row as 'pil', which he linked to the Akkadian word for 'elephant'. Now, the Akkadian dictionary says that the exact word for 'elephant' is 'pilu', 'piru' or 'peru'. The female elephant in Sanskrit is known as 'pillaka' (पिल्लका) even today. The ancient Sanskrit word for 'elephant' is 'pilla' (पिल्ल). Also what is interesting is that a prominent name for Sri Ganesha, the Vedic elephant-god, in Tamil is 'Pillai'.
Researcher A. K. Narain states that the words pallu, pella, and pell in the Dravidian family of languages signify 'tooth or tusk', also 'elephant tooth or tusk'.

 



A variant of 'pilu' in Akkadian, as mentioned above is 'peru'. Is it possible that the country name 'Peru' is linked to the 'elephant' - assuming that it was known by the same name thousands of years back. Again, 'peru' (पेरू) also means 'golden mountain' in Sanskrit, and that it refers to the pyramid shape of the artifact is another possibility.


Schildmann decoded the second word as 'alepi' and said that 'alepi' is Semitic for 'elephant'. Though if one were to decode the second line in reverse order it still reads as 'peala'. The 'third line is decoded as 'hosti' which is the same as Sanskrit 'hasti' (हस्ती) meaning 'elephant'. 


Professor Kurt Schildmann  work called 'The Decipherment' has unfortunately disappeared from publication, however a copy of his work in his own handwriting still exists and efforts are being made to reveal this suppressed information so that recognition may be given to this profound work in the study of Paleolithic culture worldwide.

THE WORD 'ELEPHANT', ITS SANSKRIT SOURCE, AND THE CRESPI ARTIFACT COLLECTION OF PERU AND ECUADOR

English etymological dictionaries like etymonline.com trace the source of the word 'elephant' to 'ibhah' (इभ), which is a Sanskrit word meaning 'elephant'. The elephant-keeper is known as 'ibhapa' (इभप).

German linguist Kurt Schildmann (1909-2005), in his work, 'The Schildmann Decipherment', stated that his research on ancient inscriptions discovered in Peru and Ecuador had revealed that they were similar to ancient Indus Valley' inscriptions. He had deciphered the inscriptions with the help of sanskrit.

As mentioned in the previous post Schildmann was particularly struck by one artifact from the 'Crespi Artifact Collection. This ancient artifact is pyramid shaped and has the inscription of anelephant and the sun on top followed by three rows of text-characters.
Schildmann deciphered the first row as 'pil' which is the same as 'pilu' (पीलु). It is one of the many Sanskrit words for elephant.

Schildmann decoded the second word as 'alepi' and said that 'alepi' is Semitic for 'elephant'. Though if one were to decode the second line in reverse order it still reads close to 'pila' or 'pilu'. The 'third line is decoded as 'hosti' which is the same as Sanskrit 'hasti' (हस्ती) meaning 'elephant'. 

Vinay Vaidya says, "We see that the one who looks after an elephant is called piluvAn or piluvantaH (one riding a 'pilu') in Sanskrit. Then transformation of a 'piluvantaH' into the word 'elephant' is just a twist and turn of the tongue. And I am sure, this Alepi is like-wise a cognate of the same word." 

A slight tweaking of the three words 'pil', 'alepi' and 'hosti', to 'pIt' (पीत), 'Alepa' (आलेप) and 'hasti' (हस्ती), - changes the meaning to 'golden', 'smeared', 'elephant'. In Sanskrit 'pIt' (पीत) means 'yellow' or 'gold', 'alepa' means 'smeared', and 'hasti' is 'elephant'. The inscription would then read,  'gold smeared elephant' or 'the golden elephant' - which probably also explains the 'sun' inscribed on the top section of the artifact.

From http://vediccafe.blogspot.com/

Friday, June 24, 2016

मैकेनिक्स (कायनेटिक्स) एवं यंत्र विज्ञान - महर्षि कणाद के वैशेषिक दर्शन

मैकेनिक्स (कायनेटिक्स) एवं यंत्र विज्ञान
महर्षि कणाद के वैशेषिक दर्शन में 'कर्म' शब्द का अर्थ motion से है। इसके पांच प्रकार हैं।
उत्क्षेपण (upward motion)
अवक्षेपण (downward motion)

आकुञ्चन (Motion due to the release of tensile stress)
प्रसारण (Shearing motion)
गमन (General Type of motion)
विभिन्न कर्म या motion को उसके कारण के आधार पर जानने का विश्लेषण वैशेषिक में किया है।
(१) नोदन के कारण-लगातार दबाव
(२) प्रयत्न के कारण- जैसे हाथ हिलाना
(३) गुरुत्व के कारण-कोई वस्तु नीचे गिरती है
(४) द्रवत्व के कारण-सूक्ष्म कणों के प्रवाह से
डा. एन.जी. डोंगरे अपनी पुस्तक 'The Physics' में वैशेषिक सूत्रों के ईसा की प्रथम शताब्दी में लिखे गए प्रशस्तपाद भाष्य में उल्लिखित वेग संस्कार और न्यूटन द्वारा १६७५ में खोजे गए गति के नियमों की तुलना करते हैं।
प्रशस्तपाद लिखते हैं ‘वेगो पञ्चसु द्रव्येषु निमित्त-विशेषापेक्षात् कर्मणो जायते नियतदिक् क्रिया प्रबंध हेतु: स्पर्शवद् द्रव्यसंयोग विशेष विरोधी क्वचित् कारण गुण पूर्ण क्रमेणोत्पद्यते।‘ अर्थात् वेग या मोशन पांचों द्रव्यों (ठोस, तरल, गैसीय) पर निमित्त व विशेष कर्म के कारण उत्पन्न होता है तथा नियमित दिशा में क्रिया होने के कारण संयोग विशेष से नष्ट होता है या उत्पन्न होता है।
उपर्युक्त प्रशस्तिपाद के भाष्य को तीन भागों में विभाजित करें तो न्यूटन के गति सम्बंधी नियमों से इसकी समानता ध्यान आती है।
(१) वेग: निमित्तविशेषात् कर्मणो जायते
The change of motion is due to impressed force (Principia)
(२) वेग निमित्तापेक्षात् कर्मणो जायते नियत्दिक् क्रिया प्रबंध हेतु
The change of motion is proportional to the motive force impressed and is made in the direction of the right line in which the force is impressed (Principia)
(३) वेग: संयोगविशेषाविरोधी
To every action there is always an equal and opposite reaction (Principia)
यहां न्यूटन के गति के नियम दिए तथा वैशेषिक की परिभाषा भी बतायी है कि वेग या क़दृद्धड़ड्ढ एक द्रव्य है, जो कर्म या motion द्वारा उत्पन्न हुआ है।
स्थिति स्थापकता (Elastic forces)
Elasticity वास्तव में किसी पदार्थ के उस गुण को दिया गया नाम है, जिस कारण छड़ें-फ्लेट आदि कंपन करते हैं और ध्वनि भी निकलती है। वैशेषिक दर्शनकार इसे जानते थे। उदयन की ‘न्याय कारिकावली‘ नामक ग्रंथ में इसका उल्लेख मिलता है।
स्थितिस्थापकसंस्कार:
क्षित: क्वचिच्चतुर्ष्वपि।
अतीन्द्रियोसौ विज्ञेय:
क्वचित् स्पन्देऽपि कारणम्॥ ५९॥
ठोस या द्रव्य के अन्य प्रकार में द्रव्यों में उत्पन्न अदृश्य बल ही स्पन्दन (vibration) का कारण है।
ई. सन् १११४ में हुए भास्कराचार्य के ग्रंथ ‘सिद्धांत शिरोमणि‘ के गोलाध्याय के यंत्राध्याय के श्लोक ५३ से ५६ तक water wheel का वर्णन है।
ताम्रादिमयस्यांकुशरूपनलस्याम्
बुपूर्णस्य। ५३
एक कुण्डजलान्तर्द्वितीयमग्रं त्वधोमुखं च बहि:
युगापन्मुक्त चेत् क नलेन कुण्डाब्दहि:
पतति ।५४
नेम्यां बद्धवा घटिकाश्च्क्रं जलयन्त्रवत् तथा धार्यम्
नलकप्रच्युतसलिलं पतित यथा तद्घटी मध्ये। ५५
भ्रमति ततस्तत् सततं पूर्णघटीभि: समाकृष्टम्
चक्रच्युतं तदुदकं कुण्डे याति
प्रणालिकया। ५६
अर्थात्-ताम्र आदि धातु से बना हुआ, अंकुश के तरह मोड़ा हुआ एवं पानी से भरा तल का एक अन्त को जल पात्र में डुबा कर और दूसरे अन्त को बाहर अधोमुख करके अगर दोनों अन्त को एक साथ छोड़ेंगे तब पात्रस्थ जल सम्पूर्ण रूप से नल के द्वारा बाहर जाएगा। चक्र की परिधि में घटिकाओं को (जल पात्रों को) बांधकर, जल यंत्र के समान चक्र के अक्ष के दोनों अन्त को उस प्रकार रखना चाहिए जैसे नल से गिरता हुआ पानी घटिका के भीतर गिरे। इससे वह चक्र पूर्ण घटियों के द्वारा खींचा हुआ निरन्तर घूमता है और चक्र से निकला हुआ पानी नाली के द्वारा कुण्ड मंर चला जाता है।
राव साहब के.वी. वझे द्वारा १९२६ में भोज द्वारा ११५० ईसवी में सम्पादित ग्रंथ ‘समरांगण सूत्रधार‘ का विश्लेषण करते हुए यंत्रशास्त्र के बारे में दी गई जानकारी एक विकसित यंत्रज्ञान की कल्पना देती है। इस ग्रंथ में सभी यंत्रों की दृष्टि से कुछ मूलभूत बातों का विचार किया है। पृथ्वी पदार्थ स्वाभाविक स्थिर है, सभी यंत्र पदार्थ की कृत्रिम साधनों से उत्पन्न गति रूप है।
प्रकृत्या पार्थिवं स्थिरं शेषेषु सहजा गति:।
अत: प्रायेण सा जन्य क्षितावेव प्रयत्नत:।
सूत्रधार समरांगण अ ३१
यंत्रों के साधन व कार्य
यंत्र के मुख्य साधनों का वर्णन ‘यंत्रार्णव‘ नामक ग्रंथ में किया गया है।
दंडैश्चक्रैच दंतैश्च सरणिभ्रमणादिभि:
शक्तेरूत्पांदनं किं वा चालानं यंत्रमुच्यते॥ यंत्रार्णव
यंत्र is is a contrivance consisting of....
दंड- Lever , चक्र- Pulley, दंत- toothed wheel, सरणि- inclined plane, भ्रमण- Screw
and is required for producing शक्ति (Power or motion) of changing its direction.
इनके मुख्य कार्य- दंड का उच्चाटन या Stirring, चक्र का वशीकरण या centraling motion, दंत का स्तंभन या stopping, सरणि का जारण या Bringing together, भ्रमण का मारण या annihilation
एक यंत्र में तीन भाग होते हैं :
(१) बीज- the producer of action (२) कीलक- the pin bringing power and work (३) शक्ति- the ability of doing the work.
इस प्रकार यंत्र अपने तीन भाग, पांच साधनों एवं उनके द्वारा होने वाली क्रियाओं से गतिमान होता है। इससे विविध प्रकार की गति उत्पन्न होती है।
तिर्यगूर्ध्वंमध: पृष्ठे पुरत: पार्श्वयोरपि
गमनं सरणं पात इति भेदा: क्रियोद्भवा:॥ समरांगण-अ ३१
विविध कार्यों की आवश्यकतानुसार विविध गति होती है जिससे कार्यसिद्धि होती है।
(१) तिर्यग्- slanting (२) ऊर्ध्व upwards (३) अध:- downwards (४) पृष्ठे- backwards (५) पुरत:-forward (६) पार्श्वयो:- sideways
किसी भी यंत्र के मुख्य गुण क्या-क्या होने चाहिए, इसका वर्णन समरांगण सूत्रधार में करते हुए पुर्जों के परस्पर सम्बंध, चलने में सहजता, चलते समय विशेष ध्यान न देना पड़े, चलने में कम ऊर्जा का लगना, चलते समय ज्यादा आवाज न करें, पुर्जे ढीले न हों, गति कम-ज्यादा न हो, विविध कामों में समय संयोजन निर्दोष हो तथा लंबे समय तक काम करना आदि प्रमुख २० गुणों की चर्चा करते हुए ग्रंथ में कहा गया है-
चिरकालसहत्वं च यंत्रस्यैते महागुणा: स्मृता:। समरांगण-अ ३
हाइड्रोलिक मशीन (Turbine)-जलधारा के शक्ति उत्पादन में उपयोग के संदर्भ में ‘समरांगण सूत्रधार‘ ग्रंथ के ३१वें अध्याय में कहा है-
धारा च जलभारश्च पयसो भ्रमणं तथा॥
यथोच्छ्रायो यथाधिक्यं यथा नीरंध्रतापि च।
एवमादीनि भूजस्य जलजानि प्रचक्षते॥
बहती हुई जलधारा का भार तथा वेग का शक्ति उत्पादन हेतु हाइड्रोलिक मशीन में उपयोग किया जाता है। जलधारा वस्तु को घुमाती है और ऊंचाई से धारा गिरे तो उसका प्रभाव बहुत होता है और उसके भार व वेग के अनुपात में धूमती है। इससे शक्ति उत्पन्न होती है।
सङ्गृहीतश्च दत्तश्च पूरित: प्रतनोदित:।
मरुद् बीजत्वमायाति यंत्रेषु जलजन्मसु। समरांगण-३१
पानी को संग्रहित किया जाए, उसे प्रभावित और पुन: क्रिया हेतु उपयोग किया जाए, यह मार्ग है जिससे बल का शक्ति के रूप में उपयोग किया जाता है। इसकी प्रक्रिया का विस्तार से इसी अध्याय में वर्णन है।
कुछ अन्य संदर्भ भी यंत्र विज्ञान के बारे में मिलते हैं।
चालुक्य वंश के राज्य के समय एक बगीचे के टैंक में पानी निकासी की स्वयं संचालित व्यवस्था का वर्णन जर्नल ऑफ अनन्ताचार्य इन्डोलॉजीकल इन्स्टीट्यूट बाम्बे में आया है।
महर्षि भारद्वाज रचित ‘विमान शास्त्र‘ में भी अनेक यंत्रों का वर्णन है, जिसका उल्लेख विमान शास्त्र अध्याय के प्रसंग में करेंगे।
राजा भोज के समरांगण सूत्रधार का ३१ वां अध्याय यंत्र विज्ञान के क्षेत्र में एक सीमा बिन्दु है। इस अध्याय में अनेक यंत्रों का वर्णन है। लकड़ी के वायुयान यांत्रिक दरबान तथा सिपाही, इनमें Robot की एक झलक देख सकते हैं।

प्रकाश की गति : ऋग्वेद में मोजूद हे | Speed of light in Rigveda-Post in HINDI

सनातन धर्म की विश्व् को देंन

प्रकाश की गति : ऋग्वेद में मोजूद हे | Speed of light in Rigveda
माना जाता है की आधुनिक काल में प्रकाश की गति की गणना Scotland के एक भोतिक विज्ञानी James Clerk Maxwell (13 June 1831 – 5 November 1879) ने की थी ।
जबकि आधुनिक समय में महर्षि सायण , जो वेदों के महान भाष्यकार थे , ने १४वीं सदी में प्रकाश की गति की गणना कर डाली थी जिसका आधार ऋग्वेद के प्रथम मंडल के ५ ० वें सूक्त का चोथा श्लोक था ।
तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य ।
विश्वमा भासि रोचनम् ॥ ...ऋग्वेद १. ५ ० .४
अर्थात् हे सूर्य, तुम तीव्रगामी एवं सर्वसुन्दर तथा प्रकाश के दाता और जगत् को प्रकाशित करने वाले हो।
Swift and all beautiful art thou, O Surya (Surya=Sun), maker of the light, Illuming all the radiant realm.
उपरोक्त श्लोक पर टिप्पणी/भाष्य करते हुए महर्षि सायण ने निम्न श्लोक प्रस्तुत किया
तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते॥
-सायण ऋग्वेद भाष्य १. ५ ० .४
अर्थात् आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है
[O light,] bow to you, you who traverse 2,202 yojanas in half a nimesha..
-Sage Sayana 14th AD
yojana and nimesha are ancient unit of distance and time respectively.
उपरोक्त श्लोक से हमें प्रकाश के आधे निमिष में 2202 योजन चलने का पता चलता है अब समय की ईकाई निमिष तथा दुरी की ईकाई योजन को आधुनिक ईकाईयों में परिवर्तित कर सकते है ।
किन्तु उससे पूर्व प्राचीन समय व् दुरी की इन ईकाईयों के मान जानने होंगे .
निमेषे दश चाष्टौ च काष्ठा त्रिंशत्तु ताः कलाः |
त्रिंशत्कला मुहूर्तः स्यात् अहोरात्रं तु तावतः || ........मनुस्मृति 1-64
मनुस्मृति 1-64 के अनुसार :
पलक झपकने के समय को 1 निमिष कहा जाता है !
18 निमीष = 1 काष्ठ;
30 काष्ठ = 1 कला;
30 कला = 1 मुहूर्त;
30 मुहूर्त = 1 दिन व् रात (लगभग 24 घंटे )
As per Manusmriti 1/64 18 nimisha equals 1 kashta, 30 kashta equals 1 kala, 30 kala equals 1 muhurta, 30 muhurta equals 1 day+night
अतः एक दिन (24 घंटे) में निमिष हुए :
24 घंटे = 30*30*30*18= 486000 निमिष
hence, in 24 hours there are 486000 nimishas.
24 घंटे में सेकंड हुए = 24*60*60 = 86400 सेकंड
86400 सेकंड =486000 निमिष
अतः 1 सेकंड में निमिष हुए :
1 निमिष = 86400 /486000 = .17778 सेकंड
1/2 निमिष =.08889 सेकंड
in 1/2 nimisha approx .08889 seconds
अब योजन ज्ञान करना है , श्रीमद्भागवतम 3.30.24, 5.1.33, 5.20.43 आदि के अनुसार
1 योजन = 8 मील लगभग
2202 योजन = 8 * 2202 = 17616 मील
As per Shrimadbhagwatam 1 yojana equals to approx 8 miles.
सूर्य प्रकाश 1/2 (आधे) निमिष में 2202 योजन चलता है अर्थात
.08889 सेकंड में 17616 मील चलता है ।
.08889 सेकंड में प्रकाश की गति = 17616 मील
1 सेक में = 17616 / .08889 = 198177 मील लगभग
Speed of light in vedas 198177 miles per second approximately .
आज की प्रकाश गति गणना 186000 मील प्रति सेकंड लगभग
In morden science , its 186000 miles per second approximately.

Wednesday, June 22, 2016

Sanskrit is the Mother of Phoenician, Hebrew, Aramaic, Greek, Latin, English.

Sir William Jones – the English Philologist who for the first time in 1786 suggested in his book “The Sanscrit Language” that Greek and Latin were related to Sanskrit and perhaps even Gothic, Celtic and Persian languages were related to Sanskrit.
It was this work which later gave birth to the so called Proto-Indo-European theory which instead of looking into Sanskrit being the root language of all Indo-European languages, suggests that all Indo-European languages including Sanskrit came from another so far unheard of language called PIE or Proto-Indo-European language.

The World’s Oldest Known Literary work - the Vedas – the root source of the Indian and Hindu Philosophy and Spirituality – are written in Sanskrit.
Be it Greek Latin English Hindi Lithuanian – Sanskrit is the mother of all Languages. Even Scholars like Voltaire, Immanuel Kant etc believed that Sanskrit was the root of all Indo-European languages.
“I am convinced that everything has come down to us from the banks of the Ganges” said Voltaire. He believed that the “Dynasty of Brahmins taught the rest of the world”.
“Mankind together with all science must have originated on the roof of the world ie the Himalayas” declared Immanuel Kant.
Jeffrey Armstrong (also known as Kavindra Rishi), the founder of Vedic Academy of Science & Arts (VASA) and a well-known teacher of Yoga, Ayurveda and Bhagavad Gita.This is not the first time in recent history that Yoga and Vedic knowledge have left Bharat and are having a profound effect upon world culture. It is only we, who are unaware of the true history of the spread of language, knowledge, and culture on a global scale. Those who colonize other cultures and those who have founded the three Abrahamic religions have not been inclined to mention the sources of those from whom they have “borrowed” the knowledge and practice. This is the third time in the last 5000 years that Yogic wisdom has become a mass movement and reshaped the world.
The first was during the Persian Empire in Babylon from 1500-700 BCE during which time thinkers like Pythagoras (“Pitta Gurus”) were trained in Yoga and Vedic philosophy. The second was just before, during, and after the supposed time of Christ. It is a well-known historical fact that at least 150 ships per year were traveling back and forth between Rome and Bharat at that time. The ships were filled with products from both cultures on both legs of the arduous journey. They also carried language and culture and of course Yoga in all its forms.
or example, Sanskrit is definitely the Mother of Phoenician, Hebrew, Aramaic, Greek, Latin and numerous European languages, concluding with English. World culture of the time was abundantly present at the great university in Alexandria, just down the road from where Jesus was supposedly in exile. This means that all three Abrahamic religions were formed surrounded by yogic knowledge. As a note, religion means re-ligare or bound by rules. So only these three qualify as religions. Vedic culture including the Buddhist version are properly called “Dharma Cultures”, since neither are bound by a single “rule book”. Buddha was a reformer of the Vedic culture and not the founder of a religion; the same is true for the Jain Dharma and Mahavira. You could think of the three Abrahamic religions as “people of a book”, whereas the Vedic people are the “people of a library”.
SPIRITUALITY IS A CONFUSING ENGLISH WORD BORROWED FROM THE GREEK LANGUAGE. THE FIRST PROBLEM IS THE USE OF THE WORD GOD AND MANY GODS AS ALSO THE WORD SPIRITUAL. THE WORD “SPIRITUAL’’ IS ORIGINATED FROM THE GREEK WORD “SPIRITUS” WHICH MEANS “TO BREATHE”. THE ENGLISH TERM GOD WAS ORIGINALLY A SANSKRIT WORD TAKEN FROM THE VEDAS AND MENTIONED SEVERAL TIMES IN THE BHAGAVAD-GITA: “HUTAM” OR THE SMOKE ARISING FROM AN OFFERING PLACED INTO A SACRED FIRE CEREMONY.HUTAM BECAME “GUTAM” IN GERMAN, “GOOT” IN DUTCH, AND “GOD” IN ENGLISH.
Now the “God” word is the one and only cover word for the Supreme Reality in English. It does not have a specific meaning in English. What is mistakenly called Hindu religion should be referred to as Vedic Sanatan Dharma culture, meaning basically that they are involved with a body of learning which attempts to describe things that are always true. It is not just a book of rules, a blind-faith based club to join or an aggressive conversion based.
Pannini did not receive the phonemes of Sanskrit, they were given to him in a specific order as 14 combinations which facilitated arranging the 4000 rules of Sanskrit grammar in the best possible arrangement to produce concise sutras. Sanskrit should be seen as the residence of the Devas who are really the various laws of nature. The Vedic idea of creation is that matter was “downloaded” from the realm of Brahman by sound vibration. Pannini said that he was the last scholar in the 50 generations of linguists working on perfecting the written rules of Sanskrit Grammar. That does not mean the letters, which are considered timeless and originated with Pannini.
The point of Deva Bhasa or Sanskritam was to use it as a programming language that does not “drift” or change over time. This would have allowed teachings to be passed on without loss or distortion over very long periods of time.
The historical truth is that Bharat was the wealthiest country in the world when the British arrived. At that time, public education in Sanskrit and regional languages was free for all. That Sanskrit education was purposely destroyed by the British so they could enslave the people of Bharat and steal their wealth. It also explains why the British strategy to destroy India was to stop Sanskrit education of the masses.
he historical truth is that God began His journey as a part of the process of Vedic Yajna, wherein there are various components: the Kratur or Vrat – the vow or intention for the lighting of the fire; then there is the Svadhaa – Sva means “one’s own” and Dha means “intention or offering”; then there is Aushadam or the herbs and medicines which create a healing effect upon the environment including one’s own body. This word is rooted in two Sanskrit words, Ayus and Prashadam; next is the mantra which must be intoned correctly, and then of course comes the Aajyam or the all-important Ghee to be placed into the mouth of Agni, the Deva of fire into whose mouth all this is being placed; and finally, the Hutam or oblation poured into the fire and arising as smoke skyward towards Svarga loka, the realm of the Devas. This Hutam travelled via German as Guta (which it still is in Dutch) and then into English as God stinging the eyes as a minor irritant in the larger atmosphere of theological discourse. Therefore, God is the smoke arising from the offering in a Vedic Yajna.

Mainstream English words with Sanskrit Roots

Prati Shat (meaning for every hundred i.e percent)per centum (L)percent
Root Sanskrit WordMedian Word in Latin(L) / Greek(G) / Arabic(A)Derived English Word
Gau (meaning Cow)Bous (G)Cow
Matr (meaning Mother)Mater (L)Mother
Jan (meaning Generation)Genea (G)Gene
Aksha (meaning Axis)Axon (G)Axis
Navagatha (meaning Navigation)Navigationem (L)Navigation
Sarpa (meaning Snake)Serpentem (L)Serpent
Naas (means Nose)Nasus (L)Nose
Anamika (means Anonymous)Anonymos (G)Anonymous
Naama (means Name)Nomen (L)Name
Manu (means First Human)??Man/Men/Human
Ashta (meaning Eight)Octo (L)Eight
Barbara (meaning Foreign)Barbaria (L)Barbarian
Dhama (meaning House)Domus (L)Domicile
Danta (meaning Teeth)Dentis (L)Dental
Dwar (meaning Door)DoruDoor
Dasha (meaning Ten)Deca (G)Deca
Madhyam (meaning Medium)Medium (L)Medium
Kaal (meaning Time)Kalendae (L)Calendar
Kri (meaning To Do)Creatus (L)Create
Mishra (meaning Mix)Mixtus (L)Mix
Ma (meaning Me/My)Me (L)Me
Pithr (meaning Father)Pater (L)Father
Bhrathr (meaning Brother)Phrater (G)Brother
Loka (meaning Place)Locus (L)Locale
Maha (meaning Great)Magnus (L)Mega
Mala (meaning Dirt/Bad)Malus (L)Mal as in Malicious, Malnutrition, Malformed etc
Makshikaa (meaning Bee)Musca (L) (Meaning Fly)Mosquito
Mrta (meaning Dead)Mortis (L)Murder
Na (meaning No)NeNo
Nakta (meaning Night)Nocturnalis (L)Nocturnal
Paad (meaning Foot)Pedis (L)Ped as in Pedestrial, Pedal etc
Pancha (meaning Five)Pente (G)Penta, Five
Parah (meaning Remote)Pera (G)Far
Patha (meaning Path)Pathes (G)Path
Raja / Raya (meaning King)Regalis (L)Royal
Sama (meaning Similar)Similis (L)Similar
Sapta (meaning Seven)Septum (L)Seven
Sharkara (meaning Sugar)SuccarumSugar / Sucrose
Smi (meaning Smile)Smilen (L)Smile
SthaH (meaning Situated)Stare (L) (meaning To Stand)Stay
Svaad (meaning Tasty)Suavis (L)Sweet
Tha (meaning That)Talis (L)That
Tva (meaning Thee)DihThee
Vachas (meaning Speech)Vocem (L)Voice
Vahaami (meaning Carry)Vehere (meaning to Carry) (L)Vehicle
Vama / Vamati (meaning Vomit)Vomere (L)Vomit
Vastr (meaning Cloth)Vestire (L)Vest
Yauvana (meaning Youth)Juvenilis (L)Juvenile
Narangi (meaning Orange)NaranjOrange
Pippali (meaning Pepper)Piperi (G)Pepper
Chandana (meaning Sandalwood)Santalon (G)Sandalwood
Chandra (meaning Moon)Candela (L) (meaning light / torch)Candle
Chatur (meaning Four)Quartus (L)Quarter
Shunya (meaning Zero)Cipher (A)Zero
a (prefix meaning “not” ex: gochara – agochara)a (L)(G) (prefix meaning “not”)a (prefix meaning “not” ex: theiest-atheist
an (prefix meaning “not” ex: avashya – anavashya)un (L)(G) (prefix meaning “not”)un (prefix meaning “not” ex: do-undo
Arjuna (meaning Charm of Silver)Argentinum (L)Argentinum – Scientific Name of Silver
Nava (meaning New)Novus (L)Nova – New
Kafa (meaning Mucus)CoughenCough
Mithya (meaning Lie)Mythos (G)Myth
Thri (meaning Three)Treis (G)Three
Mush (meaning Mouse)Mus (L)Mouse
Maragadum (meaning Emerald)Smaragdus (L)Emerald
Ghritam (meaning Ghee)??Ghee
Srgalah (meaning Jackal)Shagal (Persian)Jackal
Nila (meaning Dark Blue)Nilak (Persian)Lilac
SrgalahShagal (Persian)Jackal
Man (Ma as in Malaysia) (meaning Mind)Mens (L)Mind
Upalah (meaning Precious Stone)Opalus (L)Opal
Vrihis (meaning Rice)Oriza (L)Rice
Upalah (meaning Precious Stone)Opalus (L)Opal
Barbar (meaning stammering)Barbaros (G)Barbarian
Jaanu (meaning knee)Genu (L)Knee
Sunu (meaning Son or Offspring)Sunu (German)Son
Ghas (meaning eat)Grasa (German)Grass
Samiti (meaning Committee)committere (L)Committee
Sama (meaning Same)Samaz (Proto Germanic)Same
Lubh (meaning Desire)Lubo (Latin and Proto Germanic)Love
Agni (meaning Fire)Ignis (L)Ignite
Hrt (meaning Heart)Herto (Proto Germanic)Heart
Yaana (meaning journey, wagon)Wagen (German)Van, Wagon
Nara (meaning Nerve)Nervus (L)Nerve, Nervous
They (th pronounced as in thunder, meaning they)Dei (Germanic)They
Pratiper (L)per
Prati Shat (meaning for every hundred, i.e percent)per centum (L)percent

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