Saturday, February 8, 2014

महाराणा प्रताप

Rana Pratap
मुगल काल में पैदा हुआ वो बालक कहलाया राणा
होते जौहर चित्तौड़ दुर्ग फिर बरसा मेघ बन के राणा
हरमों में जाती थीं ललना बना कृष्ण द्रौपदी का राणा
रौंदी भूमि ज्यों कंस मुग़ल बना कंस को अरिसूदन राणा
छोड़ा था साथियों ने भी साथ चल पड़ा युद्ध इकला राणा
चेतक का पग हाथी मस्तक ज्यों नभ से कूद पड़ा राणा
मानसिंह भयभीत हुआ जब भाला फैंक दिया राणा
देखी शक्ति तप वीर व्रती हाथी भी कांप गया राणा
चहुँ ओर रहे रिपु घेर देख सोचा बलिदान करूँ राणा
शत्रु को मृगों का झुण्ड जान सिंहों सा टूट पड़ा राणा
देखा झाला यह दृश्य कहा अब सूर्यास्त होने को है
सब ओर अँधेरा बरस रहा लो डूबा आर्य भानु राणा
गरजा झाला के भी होते रिपु कैसे छुएगा तन राणा
ले लिया छत्र अपने सिर पर अविलम्ब निकल जाओ राणा
हुंकार भरी शत्रु को यह मैं हूँ राणा मैं हूँ राणा
नृप भेज सुरक्षित बाहर खुद बलि दे दी कह जय हो राणा
कह नमस्कार भारत भूमि रक्षित करना रक्षक राणा!
चेतक था दौड़ रहा सरपट जंगल में लिए हुए राणा
आ रहा शत्रुदल पीछे ही नहीं छुए शत्रु स्वामी राणा
आगे आकर एक नाले पर हो गया पार लेकर राणा
रह गए शत्रु हाथों मलते चेतक बलवान बली राणा
Chetak
ले पार गया पर अब हारा चेतक गिर पड़ा लिए राणा
थे अश्रु भरे नयनों में जब देखा चेतक प्यारा राणा
अश्रु लिए आँखों में सिर रख दिया अश्व गोदी राणा
स्वामी रोते मेरे चेतक! चेतक कहता मेरे राणा!
हो गया विदा स्वामी से अब इकला छोड़ गया राणा
परताप कहे बिन चेतक अब राणा है नहीं रहा राणा
सुन चेतक मेरे साथी सुन जब तक ये नाम रहे राणा
मेरा परिचय अब तू होगा कि वो है चेतक का राणा!
अब वन में भटकता राजा है पत्थर पे सोता है राणा
दो टिक्कड़ सूखे खिला रहा बच्चों को पत्नी को राणा
थे अकलमंद आते कहते अकबर से संधि करो राणा
है यही तरीका नहीं तो फिर वन वन भटको भूखे राणा
हर बार यही उत्तर होता झाला का ऋण ऊपर राणा
प्राणों से प्यारे चेतक का अपमान करे कैसे राणा
एक दिन बच्चे की रोटी पर झपटा बिलाव देखा राणा
हृदय पर ज्यों बिजली टूटी अंदर से टूट गया राणा
ले कागज़ लिख बैठा, अकबर! संधि स्वीकार करे राणा
भेजा है दूत अकबर के द्वार ज्यों पिंजरे में नाहर राणा
देखा अकबर वह संधि पत्र वह बोला आज झुका राणा
रह रह के दंग उन्मत्त हुआ कह आज झुका है नभ राणा
विश्व विजय तो आज हुई बोलो कब आएगा राणा
कब मेरे चरणों को झुकने कब झुक कर आएगा राणा
पर इतने में ही बोल उठा पृथ्वी यह लेख नहीं राणा
अकबर बोला लिख कर पूछो लगता है यह लिखा राणा
पृथ्वी ने लिखा राणा को क्या बात है क्यों पिघला राणा?
पश्चिम से सूरज क्यों निकला सरका कैसे पर्वत राणा?
चातक ने कैसे पिया नदी का पानी बता बता राणा?
मेवाड़ भूमि का पूत आज क्यों रण से डरा डरा राणा?
भारत भूमि का सिंह बंधेगा अकबर के पिंजरे राणा?
दुर्योधन बाँधे कृष्ण तो क्या होगी कृष्णा रक्षित राणा?
अब कौन बचायेगा सतीत्व अबला का बता बता राणा?
अब कौन बचाए पद्मिनियाँ जौहर से तेरे बिन राणा?
यह पत्र मिला राणा को जब धिक्कार मुझे धिक्कार मुझे
कहकर ऐसा वह बैठ गया अब पश्चाताप हुआ राणा
चेतक झाला को याद किया फिर फूट फूट रोया राणा
बोला इस पापकर्म पर तुम अब क्षमा करो अपना राणा
और लिख भेजा पृथ्वी को कि नहीं पिघल सके ऐसा राणा
सूरज निकलेगा पूरब से, नहीं सरक सके पर्वत राणा
चातक है प्रतीक्षारत कि कब होगी वर्षा पहली राणा
भारत भूमि का पुत्र हूँ फिर रण से डरने का प्रश्न कहाँ?
भारत भूमि का सिंह नहीं अकबर के पिंजरे में राणा
दुर्योधन बाँध सके कृष्ण ऐसा कोई कृष्ण नहीं राणा
जब तक जीवन है इस तन में तब तक कृष्णा रक्षित राणा
अब और नहीं होने देगा जौहर पद्मिनियों का राणा!

अकबर महान ? नपुंसक इतिहासकारों की नजरों में

हमारे पाठकों को अपने विद्यालय के दिनों में पढ़े इतिहास में अकबर का नाम और काम बखूबी याद होगा. रियासतों के रूप में टुकड़ों टुकड़ों में टूटे हुए भारत को एक बनाने की बात हो, या हिन्दू मुस्लिम झगडे मिटाने को दीन ए इलाही चलाने की बात, सब मजहब की दीवारें तोड़कर हिन्दू लड़कियों को अपने साथ शादी करने का सम्मान देने की बात हो, या हिन्दुओं के पवित्र स्थानों पर जाकर सजदा करने की, हिन्दुओं पर से जजिया कर हटाने की बात हो या फिर हिन्दुओं को अपने दरबार में जगह देने की, अकबर ही अकबर सब ओर दिखाई देता है. सच है कि हमारे इतिहासकार किसी को महान यूँ ही नहीं कह देते. इस महानता को पाने के लिए, विक्रमादित्य, पृथ्वीराज, राणा प्रताप, शिवाजी और न जाने ऐसे कितने ही महापुरुषों के नाम तरसते रहे, पर इनके साथ “महान” शब्द न लग सका.
हमें याद है कि इतिहास की किताबों में अकबर पर पूरे अध्याय के अन्दर दो पंक्तियाँ महाराणा प्रताप पर भी होती थीं. मसलन वो कब पैदा हुए, कब मरे, कैसे विद्रोह किया, और कैसे उनके ही राजपूत उनके खिलाफ थे. इतिहासकार महाराणा प्रताप को कभी महान न कह सके. ठीक ही तो है! अकबर और राणा का मुकाबला क्या है? कहाँ अकबर पूरे भारत का सम्राट, अपने हरम में पांच हज़ार से भी ज्यादा औरतों की जिन्दगी रोशन करने वाला, उनसे दिल्लगी कर उन्हें शान बख्शने वाला, बीसियों राजपूत राजाओं को अपने दरबार में रखने वाला, और कहाँ राणा प्रताप, क्षुद्र क्षत्रिय, अपने राज्य के लिए लड़ने वाला, सत्ता का भूखा, सत्ता के लिए वन वन भटककर पत्तलों पर घास की रोटियाँ खाने वाला, जिसका कोई हरम ही नहीं इस तरह का छोटा और निष्ठुर हृदय, सब राजपूतों से केवल इसलिए लड़ने वाला कि उन्होंने अपनी लड़कियां, पत्नियाँ, बहनें अकबर को भेजीं, अकबर “महान” का संधि प्रस्ताव कई बार ठुकराने वाला घमंडी, और मुसलमान राजाओं से रोटी बेटी का सम्बन्ध भी न रखने वाला दकियानूसी, इत्यादि. कहाँ अकबर जैसा त्यागी जो अपने देश को उसके हाल पर छोड़ कर दूसरे देश भारत का भला करने पूरा जीवन यहीं पर रहा, और कहाँ राणा प्रताप जो अपनी जमीन भी ऐसे त्यागी के लिए खाली न कर पाया और इस आशा में कि एक दिन फिर से अपने राज्य पर कब्ज़ा कर लेगा, वनों में धूल फांकता, पत्नी और बच्चों को जंगलों के कष्ट देता सत्ता का भूखा!
अकबर “महान” की महानता बताने से पहले उसके महान पूर्वजों के बारे में थोड़ा जान लेना जरूरी है. भारत में पिछले तेरह सौ सालों से इस्लाम के मानने वालों ने लगातार आक्रमण किये. मुहम्मद बिन कासिम और उसके बाद आने वाले गाजियों ने एक के बाद एक हमला करके, यहाँ लूटमार, बलात्कार, नरसंहार और इन सबसे बढ़कर यहाँ रहने वाले काफिरों को अल्लाह और उसके रसूल की इच्छानुसार मुसलमान बनाने का पवित्र किया. आज के अफगानिस्तान तक पश्चिम में फैला उस समय का भारत धीरे धीरे इस्लाम के शिकंजे में आने लगा. आज के अफगानिस्तान में उस समय अहिंसक बौद्धों की निष्क्रियता ने बहुत नुकसान पहुंचाया क्योंकि इसी के चलते मुहम्मद के गाजियों के लश्कर भारत के अंदर घुस पाए. जहाँ जहाँ तक बौद्धों का प्रभाव था, वहाँ पूरी की पूरी आबादी या तो मुसलमान बना दी गयी या काट दी गयी. जहां हिंदुओं ने प्रतिरोध किया, वहाँ न तो गाजियों की अधिक चली और न अल्लाह की. यही कारण है कि सिंध के पूर्व भाग में आज भी हिंदू बहुसंख्यक हैं क्योंकि सिंध के पूर्व में राजपूत, जाट, आदि वीर जातियों ने इस्लाम को उस रूप में बढ़ने से रोक दिया जिस रूप में वह इराक, ईरान, मिस्र, अफगानिस्तान और सिंध के पश्चिम तक फैला था अर्थात वहाँ की पुरानी संस्कृति को मिटा कर केवल इस्लाम में ही रंग दिया गया पर भारत में ऐसा नहीं हो सका.
पर बीच बीच में लुटेरे आते गए और देश को लूटते गए. तैमूरलंग ने कत्लेआम करने के नए आयाम स्थापित किये और अपनी इस पशुता को बड़ी ढिटाई से अपनी डायरी में भी लिखता गया. इसके बाद मुग़ल आये जो हमारे इतिहास में इस देश से प्यार करने वाले लिखे गए हैं! बताते चलें कि ये देशभक्त और प्रेमपुजारी मुग़ल, तैमूर और चंगेज खान के कुलों के आपस के विवाह संबंधों का ही परिणाम थे. इनमें बाबर हुआ जो अकबर “महान” का दादा था. यह वही बाबर है जिसने अपने काल में न जानेकितने मंदिर तोड़े, कितने ही हिंदुओं को मुसलमान बनाया, कितने ही हिंदुओं के सिर उतारे और उनसे मीनारें बनायीं. यह सब पवित्र कर्म करके वह उनको अपनी डायरी में लिखता भी रहता था ताकि आने वाली उसकी नस्ल इमान की पक्की हो और इसी नेक राह पर चले. क्योंकि मूर्तिपूजा दुनिया की सबसे बड़ी बुराई है और अल्लाह को वह बर्दाश्त नहीं. इस देशभक्त प्रेमपुजारी बाबर ने प्रसिद्ध राम मंदिर भी तुडवाया और उस जगह पर अपने नाम की मस्जिद बनवाई. यह बात अलग है किवह अपने समय का प्रसिद्ध नशाखोर, शराबी, हत्यारा, समलैंगिक (पुरुषों से भोग करने वाला), छोटे बच्चों के साथ भी बिस्मिल्लाह पढकर भोग करने वाला था. पर वह था पक्का मुसलमान! तभी तो हमारे देश के मुसलमान भाई अपने असली पूर्वजों को भुला कर इस सच्चे मुसलमान के नाम की मस्जिद बनवाने के लिए दिन रात एक किये हुए हैं. खैर यह वो “महान” अकबर का महान दादा था जो अपने पोते के कारनामों से इस्लामी इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों से लिखवा गया.
ऐसे महान दादा के पोते स्वनामधन्य अकबर “महान” के जीवन के कुछ दृश्य आपके सामने रखते हैं. इस काम में हम किसी हिन्दुवादी इतिहासकार के प्रमाण नहीं देंगे क्योंकि वे तो खामखाह अकबर “महान” से चिढ़ते हैं! हम देंगे प्रमाण अबुल फज़ल (अकबर का खास दरबारी) की आइन ए अकबरी और अकबरनामा से. और साथ ही अकबर के जीवन पर सबसे ज्यादा प्रामाणिक इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ की अंग्रेजी की किताब “अकबर- द ग्रेट मुग़ल” से. हम दोनों किताबों के प्रमाणों को हिंदी में देंगे ताकि सबको पढ़ने में आसानी रहे. यहाँ याद रहे कि ये दोनों लेखक सदा इस बात के लिए निशाने पर रहे हैं कि इन्होने अकबर की प्रशंसा करते करते बहुत झूठ बातें लिखी हैं, इन्होने बहुत सी उसकी कमियां छुपाई हैं. पर हम यहाँ यह दिखाएँगे कि अकबर के कर्मों का प्रताप ही कुछ ऐसा था कि सच्चाई सौ परदे फाड़ कर उसी तरह सामने आ जाती है जैसे कि अँधेरे को चीर कर उजाला.
तो अब नजर डालते हैं अकबर महान से जुडी कुछ बातों पर-

अकबर महान का आगाज़

१. विन्सेंट स्मिथ ने किताब यहाँ से शुरू की है कि “अकबर भारत में एक विदेशी था. उसकी नसों में एक बूँद खून भी भारतीय नहीं था…. अकबर मुग़ल से ज्यादा एक तुर्क था” पर देखिये! हमारे इतिहासकारों और कहानीकारों ने अकबर को एक भारतीय के रूप में पेश किया है. जबकि हकीकत यह है कि अकबर के सभी पूर्वज बाबर, हुमायूं, से लेकर तैमूर तक सब भारत में लूट, बलात्कार, धर्म परिवर्तन, मंदिर विध्वंस, आदि कामों में लगे रहे. वे कभी एक भारतीय नहीं थे और इसी तरह अकबर भी नहीं था. और इस पर भी हमारी हिंदू जाति अकबर को हिन्दुस्तान की शान समझती रही!

अकबर महान की सुंदरता और अच्छी आदतें

२. बाबर शराब का शौक़ीन था, इतना कि अधिकतर समय धुत रहता था [बाबरनामा]. हुमायूं अफीम का शौक़ीन था और इस वजह से बहुत लाचार भी हो गया. अकबर ने ये दोनों आदतें अपने पिता और दादा से विरासत में लीं. अकबर के दो बच्चे नशाखोरी की आदत के चलते अल्लाह को प्यारे हुए. पर इतने पर भी इस बात पर तो किसी मुसलमान भाई को शक ही नहीं कि ये सब सच्चे मुसलमान थे.
३. कई इतिहासकार अकबर को सबसे सुन्दर आदमी घोषित करते हैं. विन्सेंट स्मिथ इस सुंदरता का वर्णन यूँ करते हैं-
“अकबर एक औसत दर्जे की लम्बाई का था. उसके बाएं पैर में लंगड़ापन था. उसका सिर अपने दायें कंधे की तरफ झुका रहता था. उसकी नाक छोटी थी जिसकी हड्डी बाहर को निकली हुई थी. उसके नाक के नथुने ऐसे दीखते थे जैसे वो गुस्से में हो. आधे मटर के दाने के बराबर एक मस्सा उसके होंठ और नथुनों को मिलाता था. वह गहरे रंग का था”
४. जहाँगीर ने लिखा है कि अकबर उसे सदा शेख ही बुलाता था भले ही वह नशे की हालत में हो या चुस्ती की हालत में. इसका मतलब यह है कि अकबर काफी बार नशे की हालत में रहता था.
५. अकबर का दरबारी लिखता है कि अकबर ने इतनी ज्यादा पीनी शुरू कर दी थी कि वह मेहमानों से बात करता करता भी नींद में गिर पड़ता था. वह अक्सर ताड़ी पीता था. वह जब ज्यादा पी लेता था तो आपे से बाहर हो जाता था और पागलो के जैसे हरकत करने लगता.

अकबर महान की शिक्षा

६. जहाँगीर ने लिखा है कि अकबर कुछ भी लिखना पढ़ना नहीं जानता था पर यह दिखाता था कि वह बड़ा भारी विद्वान है.

अकबर महान का मातृशक्ति (स्त्रियों) के लिए आदर

७. अबुल फज़ल ने लिखा है कि अपने राजा बनने के शुरूआती सालों में अकबर परदे के पीछे ही रहा! परदे के पीछे वो किस बेशर्मी को बेपर्दा कर रहा था उसकी जानकारी आगे पढ़िए.
८. अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है- “अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं और हर एक का अपना अलग घर था.” ये पांच हजार औरतें उसकी ३६ पत्नियों से अलग थीं.
९. आइन ए अकबरी में अबुल फजल ने लिखा है- “शहंशाह के महल के पास ही एक शराबखाना बनाया गया था. वहाँ इतनी वेश्याएं इकट्ठी हो गयीं कि उनकी गिनती करनी भी मुश्किल हो गयी. दरबारी नर्तकियों को अपने घर ले जाते थे. अगर कोई दरबारी किसी नयी लड़की को घर ले जाना चाहे तो उसको अकबर से आज्ञा लेनी पड़ती थी. कई बार जवान लोगों में लड़ाई झगडा भी हो जाता था. एक बार अकबर ने खुद कुछ वेश्याओं को बुलाया और उनसे पूछा कि उनसे सबसे पहले भोग किसने किया”.
अब यहाँ सवाल पैदा होता है कि ये वेश्याएं इतनी बड़ी संख्या में कहाँ से आयीं और कौन थीं? आप सब जानते ही होंगे कि इस्लाम में स्त्रियाँ परदे में रहती हैं, बाहर नहीं. और फिर अकबर जैसे नेक मुसलमान को इतना तो ख्याल होगा ही कि मुसलमान औरतों से वेश्यावृत्ति कराना गलत है. तो अब यह सोचना कठिन नहीं है कि ये स्त्रियां कौन थीं. ये वो स्त्रियाँ थीं जो लूट के माल में अल्लाह द्वारा मोमिनों के भोगने के लिए दी जाती हैं, अर्थात काफिरों की हत्या करके उनकी लड़कियां, पत्नियाँ आदि. अकबर की सेनाओं के हाथ युद्ध में जो भी हिंदू स्त्रियाँ लगती थीं, ये उसी की भीड़ मदिरालय में लगती थी.
१०. अबुल फजल ने अकबरनामा में लिखा है- “जब भी कभी कोई रानी, दरबारियों की पत्नियाँ, या नयी लडकियां शहंशाह की सेवा (यह साधारण सेवा नहीं है) में जाना चाहती थी तो पहले उसे अपना आवेदन पत्र हरम प्रबंधक के पास भेजना पड़ता था. फिर यह पत्र महल के अधिकारियों तक पहुँचता था और फिर जाकर उन्हें हरम के अंदर जाने दिया जाता जहां वे एक महीने तक रखी जाती थीं.”
अब यहाँ देखना चाहिए कि चाटुकार अबुल फजल भी इस बात को छुपा नहीं सका कि अकबर अपने हरम में दरबारियों, राजाओं और लड़कियों तक को भी महीने के लिए रख लेता था. पूरी प्रक्रिया को संवैधानिक बनाने के लिए इस धूर्त चाटुकार ने चाल चली है कि स्त्रियाँ खुद अकबर की सेवा में पत्र भेज कर जाती थीं! इस मूर्ख को इतनी बुद्धि भी नहीं थी कि ऐसी कौन सी स्त्री होगी जो पति के सामने ही खुल्लम खुल्ला किसी और पुरुष की सेवा में जाने का आवेदन पत्र दे दे? मतलब यह है कि वास्तव में अकबर महान खुद ही आदेश देकर जबरदस्ती किसी को भी अपने हरम में रख लेता था और उनका सतीत्व नष्ट करता था.
११. रणथंभोर की संधि में अकबर महान की पहली शर्त यह थी कि राजपूत अपनी स्त्रियों की डोलियों को अकबर के शाही हरम के लिए रवाना कर दें यदि वे अपने सिपाही वापस चाहते हैं.
१२. बैरम खान जो अकबर के पिता तुल्य और संरक्षक था, उसकी हत्या करके इसने उसकी पत्नी अर्थात अपनी माता के तुल्य स्त्री से शादी की.
१३. ग्रीमन के अनुसार अकबर अपनी रखैलों को अपने दरबारियों में बाँट देता था. औरतों को एक वस्तु की तरह बांटना और खरीदना अकबर महान बखूबी करता था.
१४. मीना बाजार जो हर नए साल की पहली शाम को लगता था, इसमें सब स्त्रियों को सज धज कर आने के आदेश दिए जाते थे और फिर अकबर महान उनमें से किसी को चुन लेते थे.

नेक दिल अकबर महान

१५. ६ नवम्बर १५५६ को १४ साल की आयु में अकबर महान पानीपत की लड़ाई में भाग ले रहा था. हिंदू राजा हेमू की सेना मुग़ल सेना को खदेड़ रही थी कि अचानक हेमू को आँख में तीर लगा और वह बेहोश हो गया. उसे मरा सोचकर उसकी सेना में भगदड़ मच गयी. तब हेमू को बेहोशी की हालत में अकबर महान के सामने लाया गया और इसने बहादुरी से हेमू का सिर काट लिया और तब इसे गाजी के खिताब से नवाजा गया. (गाजी की पदवी इस्लाम में उसे मिलती है जिसने किसी काफिर को कतल किया हो. ऐसे गाजी को जन्नत नसीब होती है और वहाँ सबसे सुन्दर हूरें इनके लिए बुक होती हैं). हेमू के सिर को काबुल भिजा दिया गया एवं उसके धड को दिल्ली के दरवाजे से लटका दिया गया ताकि नए आतंकवादी बादशाह की रहमदिली सब को पता चल सके.
१६. इसके तुरंत बाद जब अकबर महान की सेना दिल्ली आई तो कटे हुए काफिरों के सिरों से मीनार बनायी गयी जो जीत के जश्न का प्रतीक है और यह तरीका अकबर महान के पूर्वजों से ही चला आ रहा है.
१७. हेमू के बूढ़े पिता को भी अकबर महान ने कटवा डाला. और औरतों को उनकी सही जगह अर्थात शाही हरम में भिजवा दिया गया.
१८. अबुल फजल लिखता है कि खान जमन के विद्रोह को दबाने के लिए उसके साथी मोहम्मद मिराक को हथकडियां लगा कर हाथी के सामने छोड़ दिया गया. हाथी ने उसे सूंड से उठाकर फैंक दिया. ऐसा पांच दिनों तक चला और उसके बाद उसको मार डाला गया.
१९. चित्तौड़ पर कब्ज़ा करने के बाद अकबर महान ने तीस हजार नागरिकों का क़त्ल करवाया.
२०. अकबर ने मुजफ्फर शाह को हाथी से कुचलवाया. हमजबान की जबान ही कटवा डाली. मसूद हुसैन मिर्ज़ा की आँखें सीकर बंद कर दी गयीं. उसके ३०० साथी उसके सामने लाये गए और उनके चेहरे पर गधों, भेड़ों और कुत्तों की खालें डाल कर काट डाला गया. विन्सेंट स्मिथ ने यह लिखा है कि अकबर महान फांसी देना, सिर कटवाना, शरीर के अंग कटवाना, आदि सजाएं भी देते थे.
२१. २ सितम्बर १५७३ के दिन अहमदाबाद में उसने २००० दुश्मनों के सिर काटकर अब तक की सबसे ऊंची सिरों की मीनार बनायी. वैसे इसके पहले सबसे ऊंची मीनार बनाने का सौभाग्य भी अकबर महान के दादा बाबर का ही था. अर्थात कीर्तिमान घर के घर में ही रहा!
२२. अकबरनामा के अनुसार जब बंगाल का दाउद खान हारा, तो कटे सिरों के आठ मीनार बनाए गए थे. यह फिर से एक नया कीर्तिमान था. जब दाउद खान ने मरते समय पानी माँगा तो उसे जूतों में पानी पीने को दिया गया.

न्यायकारी अकबर महान

२३. थानेश्वर में दो संप्रदायों कुरु और पुरी के बीच पूजा की जगह को लेकर विवाद चल रहा था. अकबर ने आदेश दिया कि दोनों आपस में लड़ें और जीतने वाला जगह पर कब्ज़ा कर ले. उन मूर्ख आत्मघाती लोगों ने आपस में ही अस्त्र शस्त्रों से लड़ाई शुरू कर दी. जब पुरी पक्ष जीतने लगा तो अकबर ने अपने सैनकों को कुरु पक्ष की तरफ से लड़ने का आदेश दिया. और अंत में इसने दोनों तरफ के लोगों को ही अपने सैनिकों से मरवा डाला. और फिर अकबर महान जोर से हंसा.
२४. हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की नीति यही थी कि राजपूत ही राजपूतों के विरोध में लड़ें. बादायुनी ने अकबर के सेनापति से बीच युद्ध में पूछा कि प्रताप के राजपूतों को हमारी तरफ से लड़ रहे राजपूतों से कैसे अलग पहचानेंगे? तब उसने कहा कि इसकी जरूरत नहीं है क्योंकि किसी भी हालत में मरेंगे तो राजपूत ही और फायदा इस्लाम का होगा.
२५. कर्नल टोड लिखते हैं कि अकबर ने एकलिंग की मूर्ति तोड़ी और उस स्थान पर नमाज पढ़ी.
२६. एक बार अकबर शाम के समय जल्दी सोकर उठ गया तो उसने देखा कि एक नौकर उसके बिस्तर के पास सो रहा है. इससे उसको इतना गुस्सा आया कि नौकर को इस बात के लिए एक मीनार से नीचे फिंकवा दिया.
२७. अगस्त १६०० में अकबर की सेना ने असीरगढ़ का किला घेर लिया पर मामला बराबरी का था. न तो वह किला टोड पाया और न ही किले की सेना अकबर को हरा सकी. विन्सेंट स्मिथ ने लिखा है कि अकबर ने एक अद्भुत तरीका सोचा. उसने किले के राजा मीरां बहादुर को आमंत्रित किया और अपने सिर की कसम खाई कि उसे सुरक्षित वापस जाने देगा. तब मीरां शान्ति के नाम पर बाहर आया और अकबर के सामने सम्मान दिखाने के लिए तीन बार झुका. पर अचानक उसे जमीन पर धक्का दिया गया ताकि वह पूरा सजदा कर सके क्योंकि अकबर महान को यही पसंद था.
उसको अब पकड़ लिया गया और आज्ञा दी गयी कि अपने सेनापति को कहकर आत्मसमर्पण करवा दे. सेनापति ने मानने से मना कर दिया और अपने लड़के को अकबर के पास यह पूछने भेजा कि उसने अपनी प्रतिज्ञा क्यों तोड़ी? अकबर ने बच्चे से पूछा कि क्या तेरा पिता आत्मसमर्पण के लिए तैयार है? तब बालक ने कहा कि उसका पिता समर्पण नहीं करेगा चाहे राजा को मार ही क्यों न डाला जाए. यह सुनकर अकबर महान ने उस बालक को मार डालने का आदेश दिया. इस तरह झूठ के बल पर अकबर महान ने यह किला जीता.
यहाँ ध्यान देना चाहिए कि यह घटना अकबर की मृत्यु से पांच साल पहले की ही है. अतः कई लोगों का यह कहना कि अकबर बाद में बदल गया था, एक झूठ बात है.
२८. इसी तरह अपने ताकत के नशे में चूर अकबर ने बुंदेलखंड की प्रतिष्ठित रानी दुर्गावती से लड़ाई की और लोगों का क़त्ल किया.

अकबर महान और महाराणा प्रताप

२९. ऐसे इतिहासकार जिनका अकबर दुलारा और चहेता है, एक बात नहीं बताते कि कैसे एक ही समय पर राणा प्रताप और अकबर महान हो सकते थे जबकि दोनों एक दूसरे के घोर विरोधी थे?
३०. यहाँ तक कि विन्सेंट स्मिथ जैसे अकबर प्रेमी को भी यह बात माननी पड़ी कि चित्तौड़ पर हमले के पीछे केवल उसकी सब कुछ जीतने की हवस ही काम कर रही थी. वहीँ दूसरी तरफ महाराणा प्रताप अपने देश के लिए लड़ रहे थे और कोशिश की कि राजपूतों की इज्जत उनकी स्त्रियां मुगलों के हरम में न जा सकें. शायद इसी लिए अकबर प्रेमी इतिहासकारों ने राणा को लड़ाकू और अकबर को देश निर्माता के खिताब से नवाजा है!
अकबर महान अगर, राणा शैतान तो
शूकर है राजा, नहीं शेर वनराज है
अकबर आबाद और राणा बर्बाद है तो
हिजड़ों की झोली पुत्र, पौरुष बेकार है
अकबर महाबली और राणा बलहीन तो
कुत्ता चढ़ा है जैसे मस्तक गजराज है
अकबर सम्राट, राणा छिपता भयभीत तो
हिरण सोचे, सिंह दल उसका शिकार है
अकबर निर्माता, देश भारत है उसकी देन
कहना यह जिनका शत बार धिक्कार है
अकबर है प्यारा जिसे राणा स्वीकार नहीं
रगों में पिता का जैसे खून अस्वीकार है.

अकबर और इस्लाम

३१. हिन्दुस्तानी मुसलमानों को यह कह कर बेवकूफ बनाया जाता है कि अकबर ने इस्लाम की अच्छाइयों को पेश किया. असलियत यह है कि कुरआन के खिलाफ जाकर ३६ शादियाँ करना, शराब पीना, नशा करना, दूसरों से अपने आगे सजदा करवाना आदि करके भी इस्लाम को अपने दामन से बाँधे रखा ताकि राजनैतिक फायदा मिल सके. और सबसे मजेदार बात यह है कि वंदे मातरम में शिर्क दिखाने वाले मुल्ला मौलवी अकबर की शराब, अफीम, ३६ बीवियों, और अपने लिए करवाए सजदों में भी इस्लाम को महफूज़ पाते हैं! किसी मौलवी ने आज तक यह फतवा नहीं दिया कि अकबर या बाबर जैसे शराबी और समलैंगिक मुसलमान नहीं हैं और इनके नाम की मस्जिद हराम है.
३२. अकबर ने खुद को दिव्य आदमी के रूप में पेश किया. उसने लोगों को आदेश दिए कि आपस में “अल्लाह ओ अकबर” कह कर अभिवादन किया जाए. भोले भाले मुसलमान सोचते हैं कि वे यह कह कर अल्लाह को बड़ा बता रहे हैं पर अकबर ने अल्लाह के साथ अपना नाम जोड़कर अपनी दिव्यता फैलानी चाही. अबुल फज़ल के अनुसार अकबर खुद को सर्वज्ञ (सब कुछ जानने वाला) की तरह पेश करता था. ऐसा ही इसके लड़के जहांगीर ने लिखा है.
३३. अकबर ने अपना नया पंथ दीन ए इलाही चलाया जिसका केवल एक मकसद खुद की बडाई करवाना था. उसके चाटुकारों ने इस धूर्तता को भी उसकी उदारता की तरह पेश किया!
३४. अकबर को इतना महान बताए जाने का एक कारण ईसाई इतिहासकारों का यह था कि क्योंकि इसने हिंदू धर्म और इस्लाम दोनों का ही जम कर अपमान किया और इस तरह भारत में अंग्रेजों के इसाईयत फैलाने के उद्देश्य में बड़ा कारण बना. विन्सेंट स्मिथ ने भी इस विषय पर अपनी राय दी है.
३५. अकबर भाषा बोलने में बड़ा चतुर था. विन्सेंट स्मिथ लिखता है कि मीठी भाषा के अलावा उसकी सबसे बड़ी खूबी अपने जीवन में दिखाई बर्बरता है!
३६. अकबर ने अपने को रूहानी ताकतों से भरपूर साबित करने के लिए कितने ही झूठ बोले. जैसे कि उसके पैरों की धुलाई करने से निकले गंदे पानी में अद्भुत ताकत है जो रोगों का इलाज कर सकता है. ये वैसे ही दावे हैं जैसे मुहम्मद साहब के बारे में हदीसों में किये गए हैं. अकबर के पैरों का पानी लेने के लिए लोगों की भीड़ लगवाई जाती थी. उसके दरबारियों को तो यह अकबर के नापाक पैर का चरणामृत पीना पड़ता था ताकि वह नाराज न हो जाए.

अकबर महान और जजिया कर

३७. इस्लामिक शरीयत के अनुसार किसी भी इस्लामी राज्य में रहने वाले गैर मुस्लिमों को अगर अपनी संपत्ति और स्त्रियों को छिनने से सुरक्षित रखना होता था तो उनको इसकी कीमत देनी पड़ती थी जिसे जजिया कहते थे. यानी इसे देकर फिर कोई अल्लाह व रसूल का गाजी आपकी संपत्ति, बेटी, बहन, पत्नी आदि को नहीं उठाएगा. कुछ अकबर प्रेमी कहते हैं कि अकबर ने जजिया खत्म कर दिया था. लेकिन इस बात का इतिहास में एक जगह भी उल्लेख नहीं! केवल इतना है कि यह जजिया रणथम्भौर के लिए माफ करने की शर्त राखी गयी थी जिसके बदले वहाँ के हिंदुओं को अपनी स्त्रियों को अकबर के हरम में भिजवाना था! यही कारण बना की इन मुस्लिम सुल्तानों के काल में हिन्दू स्त्रियाँ जौहर में जलना अधिक पसंद करती थी.
३८. यह एक सफ़ेद झूठ है कि उसने जजिया खत्म कर दिया. आखिरकार अकबर जैसा सच्चा मुसलमान जजिया जैसे कुरआन के आदेश को कैसे हटा सकता था? इतिहास में कोई प्रमाण नहीं की उसने अपने राज्य में कभी जजिया बंद करवाया हो.

अकबर महान और उसका सपूत

३९. भारत में महान इस्लामिक शासन की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि बादशाह के अपने बच्चे ही उसके खिलाफ बगावत कर बैठते थे! हुमायूं बाबर से दुखी था और जहांगीर अकबर से, शाहजहां जहांगीर से दुखी था तो औरंगजेब शाहजहाँ से. जहांगीर (सलीम) ने १६०२ में खुद को बादशाह घोषित कर दिया और अपना दरबार इलाहबाद में लगाया. कुछ इतिहासकार कहते हैं की जोधा अकबर की पत्नी थी या जहाँगीर की, इस पर विवाद है. संभवतः यही इनकी दुश्मनी का कारण बना, क्योंकि सल्तनत के तख़्त के लिए तो जहाँगीर के आलावा कोई और दावेदार था ही नहीं!
४०. ध्यान रहे कि इतिहासकारों के लाडले और सबसे उदारवादी राजा अकबर ने ही सबसे पहले “प्रयागराज” जैसे काफिर शब्द को बदल कर इलाहबाद कर दिया था.
४१. जहांगीर अपने अब्बूजान अकबर महान की मौत की ही दुआएं करने लगा. स्मिथ लिखता है कि अगर जहांगीर का विद्रोह कामयाब हो जाता तो वह अकबर को मार डालता. बाप को मारने की यह कोशिश यहाँ तो परवान न चढी लेकिन आगे जाकर आखिरकार यह सफलता औरंगजेब को मिली जिसने अपने अब्बू को कष्ट दे दे कर मारा. वैसे कई इतिहासकार यह कहते हैं कि अकबर को जहांगीर ने ही जहर देकर मारा.

अकबर महान और उसका शक्की दिमाग

४२. अकबर ने एक आदमी को केवल इसी काम पर रखा था कि वह उनको जहर दे सके जो लोग अकबर को पसंद नहीं!
४३. अकबर महान ने न केवल कम भरोसेमंद लोगों का कतल कराया बल्कि उनका भी कराया जो उसके भरोसे के आदमी थे जैसे- बैरम खान (अकबर का गुरु जिसे मारकर अकबर ने उसकी बीवी से निकाह कर लिया), जमन, असफ खान (इसका वित्त मंत्री), शाह मंसूर, मानसिंह, कामरान का बेटा, शेख अब्दुरनबी, मुइजुल मुल्क, हाजी इब्राहिम और बाकी सब मुल्ला जो इसे नापसंद थे. पूरी सूची स्मिथ की किताब में दी हुई है. और फिर जयमल जिसे मारने के बाद उसकी पत्नी को अपने हरम के लिए खींच लाया और लोगों से कहा कि उसने इसे सती होने से बचा लिया!

समाज सेवक अकबर महान

४४. अकबर के शासन में मरने वाले की संपत्ति बादशाह के नाम पर जब्त कर ली जाती थी और मृतक के घर वालों का उस पर कोई अधिकार नहीं होता था.
४५. अपनी माँ के मरने पर उसकी भी संपत्ति अपने कब्जे में ले ली जबकि उसकी माँ उसे सब परिवार में बांटना चाहती थी.

अकबर महान और उसके नवरत्न

४६. अकबर के चाटुकारों ने राजा विक्रमादित्य के दरबार की कहानियों के आधार पर उसके दरबार और नौ रत्नों की कहानी घड़ी है. असलियत यह है कि अकबर अपने सब दरबारियों को मूर्ख समझता था. उसने कहा था कि वह अल्लाह का शुक्रगुजार है कि इसको योग्य दरबारी नहीं मिले वरना लोग सोचते कि अकबर का राज उसके दरबारी चलाते हैं वह खुद नहीं.
४७. प्रसिद्ध नवरत्न टोडरमल अकबर की लूट का हिसाब करता था. इसका काम था जजिया न देने वालों की औरतों को हरम का रास्ता दिखाना.
४८. एक और नवरत्न अबुल फजल अकबर का अव्वल दर्जे का चाटुकार था. बाद में जहाँगीर ने इसे मार डाला.
४९. फैजी नामक रत्न असल में एक साधारण सा कवि था जिसकी कलम अपने शहंशाह को प्रसन्न करने के लिए ही चलती थी. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि वह अपने समय का भारत का सबसे बड़ा कवि था. आश्चर्य इस बात का है कि यह सर्वश्रेष्ठ कवि एक अनपढ़ और जाहिल शहंशाह की प्रशंसा का पात्र था! यह ऐसी ही बात है जैसे कोई अरब का मनुष्य किसी संस्कृत के कवि के भाषा सौंदर्य का गुणगान करता हो!
५०. बुद्धिमान बीरबल शर्मनाक तरीके से एक लड़ाई में मारा गया. बीरबल अकबर के किस्से असल में मन बहलाव की बातें हैं जिनका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं. ध्यान रहे कि ऐसी कहानियाँ दक्षिण भारत में तेनालीराम के नाम से भी प्रचलित हैं.
५१. अगले रत्न शाह मंसूर दूसरे रत्न अबुल फजल के हाथों सबसे बड़े रत्न अकबर के आदेश पर मार डाले गए!
५२. मान सिंह जो देश में पैदा हुआ सबसे नीच गद्दार था, ने अपनी बहन जहांगीर को दी. और बाद में इसी जहांगीर ने मान सिंह की पोती को भी अपने हरम में खींच लिया. यही मानसिंह अकबर के आदेश पर जहर देकर मार डाला गया और इसके पिता भगवान दास ने आत्महत्या कर ली.
५३. इन नवरत्नों को अपनी बीवियां, लडकियां, बहनें तो अकबर की खिदमत में भेजनी पड़ती ही थीं ताकि बादशाह सलामत उनको भी सलामत रखें. और साथ ही अकबर महान के पैरों पर डाला गया पानी भी इनको पीना पड़ता था जैसा कि ऊपर बताया गया है.
५४. रत्न टोडरमल अकबर का वफादार था तो भी उसकी पूजा की मूर्तियां अकबर ने तुडवा दीं. इससे टोडरमल को दुःख हुआ और इसने इस्तीफ़ा दे दिया और वाराणसी चला गया.

अकबर और उसके गुलाम

५५. अकबर ने एक ईसाई पुजारी को एक रूसी गुलाम का पूरा परिवार भेंट में दिया. इससे पता चलता है कि अकबर गुलाम रखता था और उन्हें वस्तु की तरह भेंट में दिया और लिया करता था.
५६. कंधार में एक बार अकबर ने बहुत से लोगों को गुलाम बनाया क्योंकि उन्होंने १५८१-८२ में इसकी किसी नीति का विरोध किया था. बाद में इन गुलामों को मंडी में बेच कर घोड़े खरीदे गए.
५७. जब शाही दस्ते शहर से बाहर जाते थे तो अकबर के हरम की औरतें जानवरों की तरह सोने के पिंजरों में बंद कर दी जाती थीं.
५८. वैसे भी इस्लाम के नियमों के अनुसार युद्ध में पकडे गए लोग और उनके बीवी बच्चे गुलाम समझे जाते हैं जिनको अपनी हवस मिटाने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है. अल्लाह ने कुरान में यह व्यवस्था दे रखी है.
५९. अकबर बहुत नए तरीकों से गुलाम बनाता था. उसके आदमी किसी भी घोड़े के सिर पर एक फूल रख देते थे. फिर बादशाह की आज्ञा से उस घोड़े के मालिक के सामने दो विकल्प रखे जाते थे, या तो वह अपने घोड़े को भूल जाये, या अकबर की वित्तीय गुलामी क़ुबूल करे.

कुछ और तथ्य

६०. जब अकबर मरा था तो उसके पास दो करोड़ से ज्यादा अशर्फियाँ केवल आगरे के किले में थीं. इसी तरह के और खजाने छह और जगह पर भी थे. इसके बावजूद भी उसने १५९५-१५९९ की भयानक भुखमरी के समय एक सिक्का भी देश की सहायता में खर्च नहीं किया.
६१. अकबर ने प्रयागराज (जिसे बाद में इसी धर्म निरपेक्ष महात्मा ने इलाहबाद नाम दिया था) में गंगा के तटों पर रहने वाली सारी आबादी का क़त्ल करवा दिया और सब इमारतें गिरा दीं क्योंकि जब उसने इस शहर को जीता तो लोग उसके इस्तकबाल करने की जगह घरों में छिप गए. यही कारण है कि प्रयागराज के तटों पर कोई पुरानी इमारत नहीं है.
६२. एक बहुत बड़ा झूठ यह है कि फतेहपुर सीकरी अकबर ने बनवाया था. इसका कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है. बाकी दरिंदे लुटेरों की तरह इसने भी पहले सीकरी पर आक्रमण किया और फिर प्रचारित कर दिया कि यह मेरा है. इसी तरह इसके पोते और इसी की तरह दरिंदे शाहजहाँ ने यह ढोल पिटवाया था कि ताज महल इसने बनवाया है वह भी अपनी चौथी पत्नी की याद में जो इसके और अपने सत्रहवें बच्चे को पैदा करने के समय चल बसी थी!
तो ये कुछ उदाहरण थे अकबर “महान” के जीवन से ताकि आपको पता चले कि हमारे नपुंसक इतिहासकारों की नजरों में महान बनना क्यों हर किसी के बस की बात नहीं. क्या इतिहासकार और क्या फिल्मकार और क्या कलाकार, सब एक से एक मक्कार, देशद्रोही, कुल कलंक, नपुंसक हैं जिन्हें फिल्म बनाते हुए अकबर तो दीखता है पर महाराणा प्रताप कहीं नहीं दीखता. अब देखिये कि अकबर पर बनी फिल्मों में इस शराबी, नशाखोर, बलात्कारी, और लाखों हिंदुओं के हत्यारे अकबर के बारे में क्या दिखाया गया है और क्या छुपाया. बैरम खान की पत्नी, जो इसकी माता के सामान थी, से इसकी शादी का जिक्र किसी ने नहीं किया. इस जानवर को इस तरह पेश किया गया है कि जैसे फरिश्ता! जोधाबाई से इसकी शादी की कहानी दिखा दी पर यह नहीं बताया कि जोधा असल में जहांगीर की पत्नी थी और शायद दोनों उसका उपभोग कर रहे थे. दिखाया यह गया कि इसने हिंदू लड़की से शादी करके उसका धर्म नहीं बदला, यहाँ तक कि उसके लिए उसके महल में मंदिर बनवाया! असलियत यह है कि बरसों पुराने वफादार टोडरमल की पूजा की मूर्ति भी जिस अकबर से सहन न हो सकी और उसे झट तोड़ दिया, ऐसे अकबर ने लाचार लड़की के लिए मंदिर बनवाया, यह दिखाना धूर्तता की पराकाष्ठा है. पूरी की पूरी कहानियाँ जैसे मुगलों ने हिन्दुस्तान को अपना घर समझा और इसे प्यार दिया, हेमू का सिर काटने से अकबर का इनकार, देश की शान्ति और सलामती के लिए जोधा से शादी, उसका धर्म परिवर्तन न करना, हिंदू रीति से शादी में आग के चारों तरफ फेरे लेना, राज महल में जोधा का कृष्ण मंदिर और अकबर का उसके साथ पूजा में खड़े होकर तिलक लगवाना, अकबर को हिंदुओं को जबरन इस्लाम क़ुबूल करवाने का विरोधी बताना, हिंदुओं पर से कर हटाना, उसके राज्य में हिंदुओं को भी उसका प्रशंसक बताना, आदि ऐसी हैं जो असलियत से कोसों दूर हैं जैसा कि अब आपको पता चल गयी होंगी. “हिन्दुस्तान मेरी जान तू जान ए हिन्दोस्तां” जैसे गाने अकबर जैसे बलात्कारी, और हत्यारे के लिए लिखने वालों और उन्हें दिखाने वालों को उसी के सामान झूठा और दरिंदा समझा जाना चाहिए.
चित्तौड़ में तीस हजार लोगों का कत्लेआम करने वाला, हिंदू स्त्रियों को एक के बाद एक अपनी पत्नी या रखैल बनने पर विवश करने वाला, नगरों और गाँवों में जाकर नरसंहार कराकर लोगों के कटे सिरों से मीनार बनाने वाला, जिस देश के इतिहास में महान, सम्राट, “शान ए हिन्दोस्तां” लिखा जाए और उसे देश का निर्माता कहा जाए कि भारत को एक छत्र के नीचे उसने खड़ा कर दिया, उस देश का विनाश ही होना चाहिए. वहीं दूसरी तरफ जो ऐसे दरिंदे, नपुंसक के विरुद्ध धर्म और देश की रक्षा करता हुआ अपने से कई गुना अधिक सेनाओं से लड़ा, जंगल जंगल मारा मारा फिरता रहा, अपना राज्य छोड़ा, सब साथियों को छोड़ा, पत्तल पर घास की रोटी खाकर भी जिसने वैदिक धर्म की अग्नि को तुर्की आंधी से कभी बुझने नहीं दिया, वह महाराणा प्रताप इन इतिहासकारों और फिल्मकारों की दृष्टि में “जान ए हिन्दुस्तान” तो दूर “जान ए राजस्थान” भी नहीं था! उसे सदा अपने राज्य मेवाड़ की सत्ता के  लिए लड़ने वाला एक लड़ाका ही बताया गया जिसके लिए इतिहास की किताबों में चार पंक्तियाँ ही पर्याप्त हैं. ऐसी मानसिकता और विचारधारा, जिसने हमें अपने असली गौरवशाली इतिहास को आज तक नहीं पढ़ने दिया, हमारे कातिलों और लुटेरों को महापुरुष बताया और शिवाजी और राणा प्रताप जैसे धर्म रक्षकों को लुटेरा और स्वार्थी बताया, को आज अपने पैरों तले रौंदना है. संकल्प कीजिये कि अब आपके घर में अकबर की जगह राणा प्रताप की चर्चा होगी. क्योंकि इतना सब पता होने पर यदि अब भी कोई अकबर के गीत गाना चाहता है तो उस देशद्रोही और धर्मद्रोही को कम से कम इस देश में रहने का अधिकार नहीं होना चाहिए.
अब तो न अकबर न बाबर से वहशी
दरिन्दे कभी पुज न पायें धरा पर
जो नाम इनका ले कोई अपनी जबाँ से
बता देना राणा की तलवार का बल
इस धूर्त दरिन्दे के पर्दाफाश के बाद, भारत के सच्चे सपूत को अग्निवीर का शत शत नमन :
कोई पूछे कितना था राणा का भाला
तो कहना कि अकबर के जितना था भाला
जो पूछे कोई कैसे उठता था भाला
बता देना हाथों में ज्यों नाचे माला
चलाता था राणा जब रण में ये भाला
उठा देता पांवों को मुग़लों के भाला
जो पूछे कभी क्यों न अकबर लड़ा तो
बता देना कारण था राणा का भाला.
उपरलिखित तथ्यों का विस्तार जानने के लिए पढ़ें:
1. Akbar – the Great Mogul by Vincent Smith
2. Akbarnama by Abul Fazl
3. Ain-e-Akbari by Abul Fazl
4. Who says Akbar is Great by PN Oak

Mukti or Moksha?

Photo: Q: What are spiritual benefits of Om?

A: Meditation upon Om is the best spiritual exercise on earth.

a. It helps you develop emotional connect with Ishwar and realize your relation with Ishwar.

b. It helps you realize your purpose in life and how Ishwar is helping you.

c. It helps you realize your identity beyond this temporary hustle-bustle of the world around and develops a sense of how to make best use of this world for the bigger goal.

d. It provides a sense of security that is unmatched. You realize how you are constantly under protection of Ishwar every moment.

e. It helps you feel the Law of Karma and how each thought of yours is shaping the next moment of life and how Ishwar is managing this Law of Karma meticulously for your benefit alone. You understand why and how Ishwar is just and compassionate at the same time. How in his justice alone lies his pardon! How he loves you! How he is caring for you! How he is pampering you!

What is Mukti or Moksha? means Freedom,that all souls desire for. In other words, freedom from sorrow and miseries.
After this freedom, the soul experiences ultimate bliss and lives under inspiration of Ishwar. This is the most satisfying and enjoyable state one can have. Also note that contrary to what many wrongly believe in, Mukti is not state similar to sleep or Sushupti. It is the OPPOSITE of sleep – a state of highest possible level of consciousness.
Part of Ishwar is already within us. So we are already living under inspiration of Ishwar. Then what is so special about Mukti?
If you recall the discussions on Ishwar and soul, we concluded that soul has a freedom of ‘will’ and has limited knowledge. As and when the soul dispels ignorance through right use of ‘will‘, it gains more and more bliss and acts in harmony with the purpose of creation. That is why it is recommended for soul to emulate Ishwar in whatever way it can, and also work in a manner that cooperates with the overall purpose of creation.

The purpose of life is to enable the soul to conduct such actions that help it get in harmony with purpose of creation. When the harmony reaches a threshold level, there remains no further reason why a soul should take birth. It thus gets freedom from cycle of birth and death, sorrow and happiness and obtains ultimate bliss.

Thus, Mukti means conducting all actions in sync or harmony with purpose of creation. Ishwar is always inspiring us and is all around us and within us as well. But when we realize this and act accordingly, we obtain Mukti.

Q: What is preventing us from Mukti at this very moment? Why Ishwar does not grant us Mukti right now?

A: Answering the second question first: Ishwar does only what is best. It does not act arbitrarily.

Our nature is such that the only way we can obtain Mukti is by dispelling ignorance. And the only way to dispel ignorance is by conducting actions. The only way we can keep practicing doing the right actions is by having an opportunity to take birth and obtain an environment which is best suited to our current level of competence. And Ishwar keeps doing so until we gain mastery and reach Mukti. So He is acting in best possible manner for us to obtain Mukti asap.

Coming to first question, let us review the properties of soul compared to Ishwar and Prakriti (Nature).
Prakriti is Sat – it exists
Soul is Sat and Chit – it exists and it is conscious (living, animate etc)
Ishwar is Sat, Chit and Anand – it exists, is conscious as well as possess bliss.

Now soul DOES NOT possess Anand or bliss intrinsically. It has to move towards bliss through efforts. Since Ishwar has bliss, it implies that it has to move towards Ishwar.

Now let us come to another foundation of Vedic philosophy, “Knowledge = Bliss”.

Since Ishwar has infinite knowledge, it has infinite bliss.

But soul has LIMITED potential and LIMITED knowledge. This LIMIT keeps varying as per its deeds as per the Law of Karma managed by Ishwar.

Thus the ONLY way soul can possess Bliss is by increasing its knowledge through right acts that remove the limits.

The modus operandi of this process is as follows:

1. Actions create Sanskaars (tendencies or habits) and Sanskaars determine Limits of potential of soul. The catch is that the moment you conduct an action, it creates a Sanskaar. Sanskaar implies that the probability of you conducting the same action in similar situation increases.

Thus, if you do wrong acts – like cheating, hating etc – the probability of you doing the same again and again increases. This reduces the limits of your potentials and hence you have reduced knowledge resulting in reduced bliss. Thus you get a step away from Mukti.

But when you do good acts – like compassion, analyzing and accepting only truth, high character etc – the probability of you doing more of such good acts also increases. This leads to greater potential of seeking knowledge and hence bliss. Thus you get a step closer to Mukti.

2. Now EACH AND EVERY ACTION (including thoughts and feelings) count in this process. Also remember that even if you do something even once, its probability of happening again and making you dumber or intelligent increases.

3. A typical soul keeps oscillating between good and bad deeds every moment, going few steps back and few steps forth like a drunkard, resulting in the delay in Mukti.

4. But a yogi uses his will-power to refuse to conduct bad actions and proactively conducts noble actions. This gradually weakens the Sanskaars of old bad actions and replaces them with good Sanskaars. Gradually the seeds of all bad sanskaars are destroyed by a yogi. This results in a situation that bad actions are not repeated under any circumstance by the yogi. He thus has burnt the seeds of bad Sanskaars (dagdhbeej) or has got free of the trap of bad Sanskaars forcing bad actions. He moves straight towards Mukti like an armyman without stepping back.

He surrenders completely to Ishwar’s will and achieves ultimate bliss of Ishwar.

This process of destruction of seeds of sanskaars demands constant practice with full enthusiasm, confidence and faith on Ishwar for a period of time.

THE ONLY CONTROLLING BUTTON WE HAVE IN THIS PROCESS IS OUR WILL-POWER.

Majority of people ignore to use this WILL-POWER in right direction and hence basically act as puppets responding to strings of situations. They thus themselves stifle their progress. Yogis act in opposite manner.

That is why Geeta says that what is day for the world is night for Yogi and vice verse.

The more powerfully you use your WILL-POWER, faster you reach Mukti.

इस्लामी जन्नत की हकीकत



इस्लामी जन्नत की हकीकत

आपको मालूम है कि जन्नत की हकीकत क्या है ?

विश्व के लगभग सभी धर्मों में स्वर्ग और न र्कके बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है.इन में सभी धर्मों की बातों में काफी समानता पायी जाती है.

लेकिन स्वर्ग या जन्नत के बारे में जो बातें लिखी गयी हैं वह सिर्फ पुरुषों को रिझाने वाली बातें लिखी गयी हैं.जैसे मरने के बाद जन्नत में खूबसूरत जवान हूरें मिलेंगी ,जो कभी बूढ़ी नहीं होंगी .उनकी उम्र हमेशा १४-१५ साल की रहेगी.जन्नत वाले किसी भी हूर से शारीरिक सम्बन्ध बना सकेंगे.कुरआन में एक और ख़ास बात बतायी गयी है कि जन्नत में हूरों के अलावा सुन्दर लडके भी होंगे ,जिन्हें गिलमा कहा गया है .

शायद ऐसा इसलिए कहा गया होगा कि अरब और ईरान में समलैंगिक सेक्स आम बात है. आज भी पाकिस्तान में पुरुष वेश्यावृत्ति होती है .

इसलिए अक्सर जन्नत के मजे लूटने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं.लोगों ने जन्नत के लालच में दुनिया को जहन्नुम बना रखा है .इस जन्नत के लालच और जहन्नुम का दर दिखा कर सभी धर्म गुरुओं की दुकानें चल रही हैं .भोले भाले लोग जन्नत के लालच में मरान्ने मारने को तैयार हो जाते हैं ,यहाँ तक खुद आत्मघाती बम भी बन जाते हैं.

पाहिले शुरुआती दौर में तो मुसलमान हमलावर लोगों को तलवार के जोर पर मुसलमान बनाते थे.लेकिन जब खुद मुसलाम्मानों में आपस में युद्ध होने लगे तो मुआसलामानों के एक गिरोह इस्माइली लोगों ने नया रास्ता अख्तियार किया .जिस से बिना खून खराबा के आसानी से आसपास के लोगोंको मुसलमान बनाता जा सके.

नाजिरी इस्मायीलिओं के मुजाहिद और धर्म गुरु “हसन बिन सब्बाह “सन-१०९०–११२४ ने जब मिस्र में अपनी धार्मिक शिक्षा पुरीकर चकी तो वह सन १०८१ में इरान के इस्फ़हान शहर चला गया .और इरान के कजवीन प्रान्त में प्रचार करने लगा.वहां एक किला था जिसे अलामुंत कहा जाता है.यह किला तेहरान से १०० कि मी दूर,केस्पियन सागर के पास है .उस समय किले का मालिक सुलतान मालिक शाह था.उनदिनों चारों तरफ युद्ध होते रहते थे.कभी सल्जूकी कभी फातमी आपस में लड़ते थे.इसलिए सुलतान ने किले की रक्षा के लिए अलवीखानदान के एक व्यक्ती कमरुद्दीन खुराशाह को नियुक्त कर दिया था.उनदिन किला खाली पडा था..हसन बिन सब्बाह ने किला तीन हजार दीनार में खरीद लिया.

हसन को वह किला उपयोगी लगा ,क्यों कि किला सीरिया और तेहरान के मार्ग पर था .जिसपर काफिलों से व्यापार होता था.

किला एक सपाट फिसलन वाली पहाडी पर है .किले की ऊंचाई ८४० मीटर है .लेकिन वहां पानी के सोते हैं.किले की लम्बाई ४०० मीटर और चौडाई ३० मीटर है..इसके बाब हसन ने अपने लोगों और कुछ गाँव के लोगों के साथ मिलकर काफिले वालों से टेक्स लेना शुरू करदिया. इससे हसन को काफी दौलत मिली.उसके बाद हसन ने किले में तहखाने और सुरंगें भी बनवा लीं.जब किला हराभरा हो गया तो ,हसन ने किले में एक नकली जन्नत भी बनाली.जैसा कुरआन में कहा गया है,हसन आसपास के गाँव से अपने आदमियों द्वारा सुन्दर ,और कुंवारी जवान लडकियां उठावा लेताथा. और लड़किओं को अपनी जन्नत के तहखानों में कैद कर लेता था.हसन ने इस नकली जन्नत में एक नहर भी बनवाई थी ,जिसमे हमेशा शराब बहती रहती थी.किले वह सब सामान थे जो कुरआनमें जन्नत के बारे में लिखे हैं.

फिरजब हसन के लोग आसपास के गाँव में धर्म प्रचार करने जाते तो लोगों को विश्वास में लेकर उन्हें हशीस पिलाकर बेहोश कर देते थे.और जब लोग बेहोश हो जाते तो उनको उठाकर किले में ले जाते थे .उनसे कहते कि अल्लाह तुम से खुश है ,अब तुम जन्नत में रहो.लोग कुछ दिनों तक यह नादान लोग खूब अय्याशी करते और समझते थे कि वे जन्नत में हैं.फिर कुछ दिनों मौजा मस्ती करवाने के बाद लोगों दोबारा हशीश पिलाकर वापिस गाँव छोड़ दिया जाता .एक बार जन्नत का चस्का लग जाने के बाद लोग फिर से जन्नत की इच्छा करने लगते तो ,उनसे कहा जाता कि अगर फिर से जन्नत में जाना चाहते हो तो हमारा हुक्म मानो .लोग कुछ भी करने को तैयार हो जाते थे.ऐसे लोगों को हसिसीन कहा जाता है .मार्को पोलो ने इसका अपने विवरणों में उल्लेख किया है आज भी लोग जन्नत के लालच में निर्दोषों की हत्याएं कर रहे हैं.

यह जन्नत बहुत समय तक बनी रही.जब हलाकू खान ने १५ दिसंबर १२५६ को इस किले पर हमला किया तो किले के सूबे दार ने बिना युद्ध के किला हलाकू के हवाले कर दिया.जब हलाकू किले के अन्दर गया तो देखा वहां सिर्फ अधनंगी औरतें ही थी.हलाकू ने उन लडाकिन से पूछा तुम कौन हो ,तो वह वह बोलीं “अना मलाकुन”यानी हम हूरें हैं

यह किला आज भी सीरिया और ईरान की सीमा के पास है .सन २००४ के भूकंप में किले को थोडासा नुकसान हो गया .लेकिन आज बी लोग इस किले को देखने जाते हैं .और जन्नत की हकीकत समाज जाते हैं कि जैसे यह जन्नत झूठी है वैसे ही कुरआन में बतायी गयी जन्नत भी झूठ होगी

यह लेख पाकिस्तान से प्रकाशित पुस्तक “इस्माईली मुशाहीर “के आधार पर लिखा गया है.प्रकाशक अब्बासी लीथो आर्ट .लयाकत रोड -कराची
ISLAMOPHOBIA AS GERMANY,CANADA ALL SHOUTING.

Friday, February 7, 2014

A virtual tour of famous Buddhist archeological sites in Gujarat:


Vadnagar: In 2009, Gujarat State Archeological Department had discovered remains of a Buddhist monastery in Vadnagar which is the home town of Shri Narendra Modi. Hieun-Tsang, a famous Chinese Buddhist Pilgrim had visited Vadnagar in 640 A. D and noted existence of 1000 Buddhist Monks, and 10 Buddhist Monasteries in Vadnagar. He also found important Buddhist center with Viharas. The idea of archeological excavation in Vadnagar was moved by Shri Modi, he had judged Vadnagar as a prolific site for archeological excavation in early days of his life when he was resident of Vadnagar.

Vallabhi: Ancient references indicate that in the 7th Century A. D., Vallabhi was one of the significant Hinayana Buddhist universities and was comparable to Nalanda’s Mahayana Buddhist University. In Vallabhi, Hieun-Tsang had confirmed presence of about 100 monasteries accounting for around 6000 Buddhist monks and also found foreign students in Vallabhi University.

Devni Mori (Sabarkantha): Devnimori was an important Buddhist monastic center 1600 years ago. A huge site consisting of Stupa, Chaitya and Vihara is found on the river Meshwo near Shamlaji. The relics consisting of stone casket having original names of Gautam Buddha with detailed inscription were found from Devni Modi.

Junagadh: One of the best examples of the Buddhist ideologies is found at Ashokan Rock edicts. It contains inscriptions of three dynasties which speak the great popular faith and its healing power to convert the King. Khapra-kodia caves are datable to 3rd-4th century A. D., it is a group of 10 shelters made in rock cut style, used by Monks as a monsoon shelter. Apart from these Upperkot caves and Baba Pyara caves are known as Buddhist archeological sites in Jungadh.

Khambhalida Caves: Located near Gondal in Rajkot, Khambhalida caves is the only site with perfectly identifiable carvings of Boddhistava. It was probably a worshiping site for all surrounding people having faith in Buddhism and therefore, it is one of the rarest sites, as most of the monasteries were residential quarters.

Talaja Caves: About 32 kms from Palitana (famous pilgrimage for Jains), lies Talaja. The most impressive structure in Talaja is, the Ebhala Mandapa – a large hall fronted by four octagonal pillars. A group of 30 caves is nestled in the middle of hillock that was primarily used during monsoons for 4 months resting period.

Sana Caves: The remains of Buddhist establishment of Sana, is located in Amreli District near Rajula. Believed to be among the earliest caves of Western India dating from 2nd century B. C., the most interesting group has Ornate Carvings and Stupas, Rock Cut pillows, Benches and Chaityas. There is a hill in Sana that has 62 rock shelters scattered at different levels.

Siyot Caves: Located in Lakhpat Taluka of Kutch, Siyot must have been one of the 80 monastic sites that the 7th century Chinese travelers reported at the mouth of Indus River. It is believed to be a Shiva Temple before the Buddhist Monks occupied the caves.

Kadia Dunger Caves: 7 caves and monolithic lion pillars are presently found in Kadia Dungar in Bharuch District. The caves are located at the highest altitude having the figures of elephants and monkeys inscribed in it, also, some inscriptions in Brahmi language are found in the caves.

Shri Modi himself has taken keen interest in the activities and has made the Government machinery work, to develop these Buddhist sites as a tourism circuit in par with international standards and promote them globally.
 — in Gujarat, India.

Thursday, February 6, 2014

पुनर्जन्म का रहस्य(REBIRTH)

Photo: पुनर्जन्म का रहस्य...

जीवन अनन्त रहस्यों से भरा हुआ है, लेकिन मृत्यु उससे भी बड़ी पहेली है। मृत्यु को लेकर विज्ञान और दर्शन में अनेक प्रश्न है - क्या मृत्यु के बाद मनुष्य पूरा का पूरा समाप्त हो जाता है? या मृत्यु केवल शरीर पर ही घटित होती है? प्राण या आत्मतत्व मृत्यु के साथ ही मुक्त हो जाता है? 

यह आत्मतत्व कहां चला जाता है? अगर कहीं जाता है तो कहीं से आता भी होगा? इससे अलग एक और मौलिक प्रश्न उत्पन्न होता है - क्या आत्मा सदा से है? या आत्मा का भी जन्म होता है? यदि आत्मा का जन्म होता है तो इसका भी अवसान होता है क्या? क्या मनुष्य की आत्मा या प्राण बार-बार जन्म लेता है? पुनर्जन्म का विचार वास्तव में है क्या?

ऐसे अनेक प्रश्न जिज्ञासु चित्त को मथते हैं। विज्ञान के पास इन प्रश्नों के उत्तर नहीं हैं। दुनिया के तमाम देशों में मृत्यु बाद के जीवन पर सोच-विचार हुआ था। लेकिन प्रकृति विज्ञान के पास इन प्रश्नों के उत्तर नहीं थे। भारतीय ऋषियों ने प्रकृति रहस्यों के साथ ही मनुष्य के अन्तर्जगत पर भी शोध किये थे। इसलिए भारत की अनुभूति ने आत्मा को अमर माना और शरीर को नाशवान।

यम-नचिकेता संवाद-
यह बहस पुरानी है। विश्व स्तर पर इसका विज्ञान सम्मत और निर्णायक समाधान होना शेष है। लेकिन भारत में वैदिक काल से ही आत्मा का अमरत्व और देहान्तरण तर्क और अनुभूति का विषय रहे हैं। 

कठोपनिषद् प्राचीन उपनिषद् है। यहां यम और नचिकेता का प्रश्नोत्तर है। नचिकेता ने अग्नि रहस्य पूछा, यम का उत्तर मिला। वह संतुष्ट हुआ। अंतिम प्रश्न चुनौतीपूर्ण था- 'मृत मनुष्यों के बारे में संशय है कि कुछ लोग कहते हैं कि मृत्यु के बाद यह आत्मा शेष रहती है और कुछ लोग कहते हैं कि नहीं रहती। आप सही बात का उपदेश दें।' (1.1.20) 

भारत का उत्तर वैदिक काल रोमांचकारी है। तब नचिकेता जैसे युवा-बालक भी मृत्यु रहस्यों के प्रति जिज्ञासु थे। यम ने पते की बात की 'प्राचीन काल में भी इस विषय पर संदेह रहा है। यह विषय अति सूक्ष्म है- हि एष: धर्म अणु:। तुम कोई दूसरा वर मांगो। 

उपनिषद् के रचना काल के पहले से ही यह विषय भारतीयों की जिज्ञासा था। यम के उत्तर में आत्मा की अमरता का उल्लेख है, 'यह आत्मा न जन्मती है, न मरती है, न किसी से हुआ है। यह किसी कारण नहीं है और न किसी का कार्य। यह शाश्वत है, अजन्मा है।'

अथर्ववेद में इस अजन्मा को 'अग्नि और ज्योति-प्रकाश' बताया गया है -अजो अग्निरजमु ज्योति। (9.5.7) कहते हैं 'हे अज! आप अजन्मा और स्वर्ग रूप हैं-अजो इस्यज स्वर्गो असि। (वही, 15) 

पुनर्जन्म और श्रीकृष्ण...
पुनर्जन्म का भारतीय विचार आधुनिक विज्ञान की बड़ी चुनौती है। पुनर्जन्म से जुड़ी तमाम घटनाएं विश्व स्तर पर अक्सर घटित होती हैं। 

श्रीकृष्ण ने गीता (4.1) में कहा कि 'योग का यह ज्ञान मैंने विवस्वान को बताया था, उन्होंने मनु को और मनु ने इक्ष्वाकु को बताया था।' अर्जुन ने प्रति प्रश्न किया 'आपका जन्म बाद का है और विवस्वान का बहुत प्राचीन है।' (वही 4) श्रीकृष्ण ने कहा, 'अर्जुन! मेरे तेरे बहुत जन्म हो चुके। मैं जानता हूं तू नहीं जानता।' (वही 5)

पुनर्जन्म बेशक भारतीय अनुभूति है, लेकिन ईसा ने भी श्रीकृष्ण की ही तर्ज पर कहा था 'जब अब्राहम हुआ था मैं उसके भी पहले था।' (जौन, 8.58) 

जैसे कृष्ण ने स्वयं को पूर्व हुए लोगों के भी पहले विद्यमान बताया वैसे ही ईसा ने स्वयं को पूर्व हुए अब्राहम के भी पहले विद्यमान बताया। 

श्रीकृष्ण ने ज्ञान-संन्यास का मर्म समझाते हुए अध्याय 5(17) में कहा, 'अपनी सम्पूर्ण चेतना को परमसत्ता की ओर लगाने वाले वहां पहुंचते हैं, जहां से यहां लौटना नहीं होता।' ऋग्वेद (9.113.10) में ऐसे लोक का प्यारा वर्णन है, 'यत्र कामा निकामाश्च, यत्र ब्रध्नस्य विष्टपम् - जहां सारी कामनाएं पूरी हो जाती हैं, आप हमें वहां अमरत्व दें।' फिर वहां की विशेषता का वर्णन और भी प्यारा है 'यत्रानन्दाश्च मोदाश्य, मुद: प्रमोद आसते - जहां आनंद हैं, मोद, हैं प्रमोद हैं, आमोद हैं, वहां आप मुझे अमरत्व दें।' (वही, 11)

ऋग्वेद में पुनर्जन्म-
वैदिक साहित्य पुनर्जन्म की मान्यता से भरा हुआ है। ऋग्वेद के ऋषि वामदेव कहते हैं 'अहं मनुरभवं सूर्यश्चाहं, कक्षीवां - मैं मनु हुआ, मैं सूर्य हुआ, मैं ही कक्षीवान ऋषि हूं, मैं ही अर्जुनी पुत्र 'कुत्स' हूं और मैं ही उशना कवि हूं। मुझे ठीक से देखो - पश्यतां मा'। (ऋ0 4.26.1) ऋग्वेद में स्वतंत्र विवेक और गहन अनुभूति है। 

वामदेव कहते हैं 'मैंने गर्भ (ज्ञान गर्भ) में रहकर इन्द्रादि सभी देवताओं के जन्म का रहस्य जाना है।' (वही 4.27.1) ऋग्वेद (1.164.30) में कहते हैं 'मरणशील शरीरों के साथ जुड़ा जीव अविनाशी है।

मृत्यु के बाद यह जीव अपनी धारण शक्ति से सम्पन्न रहता है और निर्बाध विचरण करता है।' यहां 'मृत्यु के बाद भी निर्बाध विचरण' की स्थापना ध्यान देने योग्य है। ऋग्वेद (1.164.38) में कहते हैं 'अर्मत्य जीव मरणधर्मा शरीर से मिलते हुए विभिन्न योनियों में जाता है। अधिकांश लोग शरीर को ही जानते हैं, पर दूसरे (जीव) को नहीं जानते।'

ऋग्वेद के एक देवता सर्वव्यापी अदिति हैं। वे अंतरिक्ष हैं, आकाश हैं, पृथ्वी हैं, भूत हैं, भविष्य हैं। अदिति ही मृत मां-पिता के दर्शन कराने में सक्षम है। ऋषि कहते हैं 'हम किस देव का स्मरण करें? जो हमें अदिति से मिलवाएं, जिससे हम अपने मृत मां-पिता को देख सकें?' (1.24.1) 

उत्तर है 'हम अग्नि का स्मरण करें। वे हमें अदिति से मिलवाएंगे, अदिति के माध्यम से हम मां-पिता को देख सकेंगे।' (वही, 2)। मृत माता-पिता से मिलवाने की अनुभूति ध्यान देने योग्य है। जीवन मृत्यु के बाद भी प्रवाहमान रहता है। ऋग्वेद (10.14) के देवता यम हैं 'वे पुण्यवानों को सुखद धाम ले जाते हैं।' (10.14.1) मृत्यु सारा खेल खत्म नहीं करती। 

कहते हैं, 'जिस मार्ग से पूर्वज गये हैं, उसी मार्ग से सभी मनुष्य 'स्व-स्व' (कर्म) अनुसार जाएंगे।' (वही, 2) कहते हैं 'हे पिता! पुण्यकर्मों के कारण पितरों के साथ उच्च लोक में रहे। पाप कर्मों के क्षीण हो जाने के बाद पुन: शरीर धारण करें- सं गच्छस्व तन्वा सुवर्चा'। (वही,  यहां मृत पिता के पुनर्जन्म की कामना है। अथर्ववेद के ऋषि कहते हैं 'वह पहले था। वही गर्भ में आता है, वही पिता, वही माता, वही पुत्र होता है। वह नए जन्म लेता है। (अथर्व 10.8.13) अथर्ववेद भी ऐसी स्थापनाओं से भरा पूरा है। 

पुनर्जन्म का विचार मिस्र में भी था। अलेक्जेन्ड्रिया के यहूदियों में था। 
कार्क हेकेल कहते हैं - मुझे निश्चय हो चुका कि जितनी अधिक गम्भीरता से हम मिस्री धर्म का अध्ययन करते हैं, उतना ही अधिक स्पष्ट हमें यह दिखता है कि लोकप्रचलित मिस्री धर्म के लिए आत्मा की देहान्तर प्राप्ति का सिद्धांत बिल्कुल अज्ञात था और जिस किसी गुह्य समाज में वह मिलता है, वह 'ओसाइरिस' उपदेशों में अन्तनिर्हित न होकर हिन्दू उद्गम से प्राप्त हुआ है।' 

हिब्रू लोगों में भी ऐसा ही विचार है। हिब्रुओं को यह विचार मिस्र से मिला और मिस्रियों को भारत से। यूनानी चिन्तन की शुरुआत (थेल्स ई. पूर्व 600) में पुनर्जन्म जैसा विचार नहीं था। प्रथम यूनानी पाइथागोरस ने यूनान देशवासियों को पुनर्जन्म का सिद्धांत सिखाया। अपूलियस के अनुसार पाइथागोरस भारत आये थे।

बुद्ध दर्शन में भी पुनर्जन्म की स्थापना है। कहते हैं 'भिक्षुओं चार सत्यों का बोध न होने से ही मेरा, तुम्हारा संसार में बार-बार जन्म ग्रहण करना हुआ है। वे चार बाते हैं - आर्य शील, आर्य समाधि, आर्य प्रज्ञा और आर्य विमुक्ति।' (अंगुत्तरनिकाय, भाग 2) 

बुद्ध के चार सत्य आर्य सत्य हैं। बुद्धदर्शन में पुनर्जन्म का कारण अज्ञान है, उपनिषद् दर्शन में अविद्या है। पुनर्जन्म दोनों में है। अविद्या और विद्या का मूलस्रोत उपनिषद् हैं। बुद्ध को इसकी अनुभूति हैं। उन्होंने शिष्य आनंद को बताया 'आनंद! क्या जरा और मृत्यु सकारण है? कहना चाहिए -मां है। किस कारण से है? कहना चाहिए - 'भव' (आवागमन) के कारण। तब भव किस कारण है? कहना चाहिए - उपादान (आसक्ति) के कारण। तो उपादान क्यों है? उत्तर है तृष्णा के कारण। यहां मुख्य बात तृष्णा है। तृष्णा शून्यता निर्वाण है। उपनिषदों में तृष्णा की जगह इच्छा, कामना या अभिलाषा है। 

बौद्ध प्रचारको का कार्य ही क्षेत्र एलेक्जेन्ड्रिया व एशिया में रहा है। स्पष्ट ही पुनर्जन्म का भारतीय विचार विभिन्न स्रोतों से विश्वव्यापी हुआ।

सुप्रभात मित्रों |

साभार : - ह्रदय नारायण दीक्षित (भाजपा सांसद)

पुनर्जन्म का रहस्य...

जीवन अनन्त रहस्यों से भरा हुआ है, लेकिन मृत्यु उससे भी बड़ी पहेली है। मृत्यु को लेकर विज्ञान और दर्शन में अनेक प्रश्न है - क्या मृत्यु के बाद मनुष्य पूरा का पूरा समाप्त हो जाता है? या मृत्यु केवल शरीर पर ही घटित होती ह...ै? प्राण या आत्मतत्व मृत्यु के साथ ही मुक्त हो जाता है?

यह आत्मतत्व कहां चला जाता है? अगर कहीं जाता है तो कहीं से आता भी होगा? इससे अलग एक और मौलिक प्रश्न उत्पन्न होता है - क्या आत्मा सदा से है? या आत्मा का भी जन्म होता है? यदि आत्मा का जन्म होता है तो इसका भी अवसान होता है क्या? क्या मनुष्य की आत्मा या प्राण बार-बार जन्म लेता है? पुनर्जन्म का विचार वास्तव में है क्या?

ऐसे अनेक प्रश्न जिज्ञासु चित्त को मथते हैं। विज्ञान के पास इन प्रश्नों के उत्तर नहीं हैं। दुनिया के तमाम देशों में मृत्यु बाद के जीवन पर सोच-विचार हुआ था। लेकिन प्रकृति विज्ञान के पास इन प्रश्नों के उत्तर नहीं थे। भारतीय ऋषियों ने प्रकृति रहस्यों के साथ ही मनुष्य के अन्तर्जगत पर भी शोध किये थे। इसलिए भारत की अनुभूति ने आत्मा को अमर माना और शरीर को नाशवान।

यम-नचिकेता संवाद-
यह बहस पुरानी है। विश्व स्तर पर इसका विज्ञान सम्मत और निर्णायक समाधान होना शेष है। लेकिन भारत में वैदिक काल से ही आत्मा का अमरत्व और देहान्तरण तर्क और अनुभूति का विषय रहे हैं।

कठोपनिषद् प्राचीन उपनिषद् है। यहां यम और नचिकेता का प्रश्नोत्तर है। नचिकेता ने अग्नि रहस्य पूछा, यम का उत्तर मिला। वह संतुष्ट हुआ। अंतिम प्रश्न चुनौतीपूर्ण था- 'मृत मनुष्यों के बारे में संशय है कि कुछ लोग कहते हैं कि मृत्यु के बाद यह आत्मा शेष रहती है और कुछ लोग कहते हैं कि नहीं रहती। आप सही बात का उपदेश दें।' (1.1.20)

भारत का उत्तर वैदिक काल रोमांचकारी है। तब नचिकेता जैसे युवा-बालक भी मृत्यु रहस्यों के प्रति जिज्ञासु थे। यम ने पते की बात की 'प्राचीन काल में भी इस विषय पर संदेह रहा है। यह विषय अति सूक्ष्म है- हि एष: धर्म अणु:। तुम कोई दूसरा वर मांगो।

उपनिषद् के रचना काल के पहले से ही यह विषय भारतीयों की जिज्ञासा था। यम के उत्तर में आत्मा की अमरता का उल्लेख है, 'यह आत्मा न जन्मती है, न मरती है, न किसी से हुआ है। यह किसी कारण नहीं है और न किसी का कार्य। यह शाश्वत है, अजन्मा है।'

अथर्ववेद में इस अजन्मा को 'अग्नि और ज्योति-प्रकाश' बताया गया है -अजो अग्निरजमु ज्योति। (9.5.7) कहते हैं 'हे अज! आप अजन्मा और स्वर्ग रूप हैं-अजो इस्यज स्वर्गो असि। (वही, 15)

पुनर्जन्म और श्रीकृष्ण...
पुनर्जन्म का भारतीय विचार आधुनिक विज्ञान की बड़ी चुनौती है। पुनर्जन्म से जुड़ी तमाम घटनाएं विश्व स्तर पर अक्सर घटित होती हैं।

श्रीकृष्ण ने गीता (4.1) में कहा कि 'योग का यह ज्ञान मैंने विवस्वान को बताया था, उन्होंने मनु को और मनु ने इक्ष्वाकु को बताया था।' अर्जुन ने प्रति प्रश्न किया 'आपका जन्म बाद का है और विवस्वान का बहुत प्राचीन है।' (वही 4) श्रीकृष्ण ने कहा, 'अर्जुन! मेरे तेरे बहुत जन्म हो चुके। मैं जानता हूं तू नहीं जानता।' (वही 5)

पुनर्जन्म बेशक भारतीय अनुभूति है, लेकिन ईसा ने भी श्रीकृष्ण की ही तर्ज पर कहा था 'जब अब्राहम हुआ था मैं उसके भी पहले था।' (जौन, 8.58)

जैसे कृष्ण ने स्वयं को पूर्व हुए लोगों के भी पहले विद्यमान बताया वैसे ही ईसा ने स्वयं को पूर्व हुए अब्राहम के भी पहले विद्यमान बताया।

श्रीकृष्ण ने ज्ञान-संन्यास का मर्म समझाते हुए अध्याय 5(17) में कहा, 'अपनी सम्पूर्ण चेतना को परमसत्ता की ओर लगाने वाले वहां पहुंचते हैं, जहां से यहां लौटना नहीं होता।' ऋग्वेद (9.113.10) में ऐसे लोक का प्यारा वर्णन है, 'यत्र कामा निकामाश्च, यत्र ब्रध्नस्य विष्टपम् - जहां सारी कामनाएं पूरी हो जाती हैं, आप हमें वहां अमरत्व दें।' फिर वहां की विशेषता का वर्णन और भी प्यारा है 'यत्रानन्दाश्च मोदाश्य, मुद: प्रमोद आसते - जहां आनंद हैं, मोद, हैं प्रमोद हैं, आमोद हैं, वहां आप मुझे अमरत्व दें।' (वही, 11)

ऋग्वेद में पुनर्जन्म-
वैदिक साहित्य पुनर्जन्म की मान्यता से भरा हुआ है। ऋग्वेद के ऋषि वामदेव कहते हैं 'अहं मनुरभवं सूर्यश्चाहं, कक्षीवां - मैं मनु हुआ, मैं सूर्य हुआ, मैं ही कक्षीवान ऋषि हूं, मैं ही अर्जुनी पुत्र 'कुत्स' हूं और मैं ही उशना कवि हूं। मुझे ठीक से देखो - पश्यतां मा'। (ऋ0 4.26.1) ऋग्वेद में स्वतंत्र विवेक और गहन अनुभूति है।

वामदेव कहते हैं 'मैंने गर्भ (ज्ञान गर्भ) में रहकर इन्द्रादि सभी देवताओं के जन्म का रहस्य जाना है।' (वही 4.27.1) ऋग्वेद (1.164.30) में कहते हैं 'मरणशील शरीरों के साथ जुड़ा जीव अविनाशी है।

मृत्यु के बाद यह जीव अपनी धारण शक्ति से सम्पन्न रहता है और निर्बाध विचरण करता है।' यहां 'मृत्यु के बाद भी निर्बाध विचरण' की स्थापना ध्यान देने योग्य है। ऋग्वेद (1.164.38) में कहते हैं 'अर्मत्य जीव मरणधर्मा शरीर से मिलते हुए विभिन्न योनियों में जाता है। अधिकांश लोग शरीर को ही जानते हैं, पर दूसरे (जीव) को नहीं जानते।'

ऋग्वेद के एक देवता सर्वव्यापी अदिति हैं। वे अंतरिक्ष हैं, आकाश हैं, पृथ्वी हैं, भूत हैं, भविष्य हैं। अदिति ही मृत मां-पिता के दर्शन कराने में सक्षम है। ऋषि कहते हैं 'हम किस देव का स्मरण करें? जो हमें अदिति से मिलवाएं, जिससे हम अपने मृत मां-पिता को देख सकें?' (1.24.1)

उत्तर है 'हम अग्नि का स्मरण करें। वे हमें अदिति से मिलवाएंगे, अदिति के माध्यम से हम मां-पिता को देख सकेंगे।' (वही, 2)। मृत माता-पिता से मिलवाने की अनुभूति ध्यान देने योग्य है। जीवन मृत्यु के बाद भी प्रवाहमान रहता है। ऋग्वेद (10.14) के देवता यम हैं 'वे पुण्यवानों को सुखद धाम ले जाते हैं।' (10.14.1) मृत्यु सारा खेल खत्म नहीं करती।

कहते हैं, 'जिस मार्ग से पूर्वज गये हैं, उसी मार्ग से सभी मनुष्य 'स्व-स्व' (कर्म) अनुसार जाएंगे।' (वही, 2) कहते हैं 'हे पिता! पुण्यकर्मों के कारण पितरों के साथ उच्च लोक में रहे। पाप कर्मों के क्षीण हो जाने के बाद पुन: शरीर धारण करें- सं गच्छस्व तन्वा सुवर्चा'। (वही, यहां मृत पिता के पुनर्जन्म की कामना है। अथर्ववेद के ऋषि कहते हैं 'वह पहले था। वही गर्भ में आता है, वही पिता, वही माता, वही पुत्र होता है। वह नए जन्म लेता है। (अथर्व 10.8.13) अथर्ववेद भी ऐसी स्थापनाओं से भरा पूरा है।

पुनर्जन्म का विचार मिस्र में भी था। अलेक्जेन्ड्रिया के यहूदियों में था।
कार्क हेकेल कहते हैं - मुझे निश्चय हो चुका कि जितनी अधिक गम्भीरता से हम मिस्री धर्म का अध्ययन करते हैं, उतना ही अधिक स्पष्ट हमें यह दिखता है कि लोकप्रचलित मिस्री धर्म के लिए आत्मा की देहान्तर प्राप्ति का सिद्धांत बिल्कुल अज्ञात था और जिस किसी गुह्य समाज में वह मिलता है, वह 'ओसाइरिस' उपदेशों में अन्तनिर्हित न होकर हिन्दू उद्गम से प्राप्त हुआ है।'

हिब्रू लोगों में भी ऐसा ही विचार है। हिब्रुओं को यह विचार मिस्र से मिला और मिस्रियों को भारत से। यूनानी चिन्तन की शुरुआत (थेल्स ई. पूर्व 600) में पुनर्जन्म जैसा विचार नहीं था। प्रथम यूनानी पाइथागोरस ने यूनान देशवासियों को पुनर्जन्म का सिद्धांत सिखाया। अपूलियस के अनुसार पाइथागोरस भारत आये थे।

बुद्ध दर्शन में भी पुनर्जन्म की स्थापना है। कहते हैं 'भिक्षुओं चार सत्यों का बोध न होने से ही मेरा, तुम्हारा संसार में बार-बार जन्म ग्रहण करना हुआ है। वे चार बाते हैं - आर्य शील, आर्य समाधि, आर्य प्रज्ञा और आर्य विमुक्ति।' (अंगुत्तरनिकाय, भाग 2)

बुद्ध के चार सत्य आर्य सत्य हैं। बुद्धदर्शन में पुनर्जन्म का कारण अज्ञान है, उपनिषद् दर्शन में अविद्या है। पुनर्जन्म दोनों में है। अविद्या और विद्या का मूलस्रोत उपनिषद् हैं। बुद्ध को इसकी अनुभूति हैं। उन्होंने शिष्य आनंद को बताया 'आनंद! क्या जरा और मृत्यु सकारण है? कहना चाहिए -मां है। किस कारण से है? कहना चाहिए - 'भव' (आवागमन) के कारण। तब भव किस कारण है? कहना चाहिए - उपादान (आसक्ति) के कारण। तो उपादान क्यों है? उत्तर है तृष्णा के कारण। यहां मुख्य बात तृष्णा है। तृष्णा शून्यता निर्वाण है। उपनिषदों में तृष्णा की जगह इच्छा, कामना या अभिलाषा है।

बौद्ध प्रचारको का कार्य ही क्षेत्र एलेक्जेन्ड्रिया व एशिया में रहा है। स्पष्ट ही पुनर्जन्म का भारतीय विचार विभिन्न स्रोतों से विश्वव्यापी हुआ।

विवेक चूडामणि

Photo: ब्रह्मभूतस्तु संसृत्यै विद्वान्नावर्तते पुनः |
विज्ञातव्यमत: सम्यग्ब्रह्माभिन्नत्वमात्मन: ||

आदि शंकराचार्य कृत विवेक चूडामणि

अर्थ : ब्रह्मभूत हो जानेपर विद्वान पुनः जन्म-मरण रूपी संसारचक्रमें नहीं पडता; इसलिए आत्माका ब्रह्मसे अभिन्नत्व भली प्रकार जान लेना चाहिए |

भावार्थ : जिस ब्रह्मसे हमारी निर्मिति हुई, उसी ब्रह्मसे जब तक हमारा साक्षात्कार नहीं हो जाता तब जन्म-मरणका क्रम चलता रहता है | हम ब्रह्मसे भिन्न है यह हमारी अज्ञानता है |
ब्रह्मभूतस्तु संसृत्यै विद्वान्नावर्तते पुनः |
विज्ञातव्यमत: सम्यग्ब्रह्माभिन्नत्वमात्मन: ||

आदि शंकराचार्य कृत विवेक चूडामणि

अर्थ : ब्रह्मभूत हो जानेपर विद्वान पुनः जन्म-मरण रूपी संसारचक्रमें नहीं पडता; इसलिए आत्माका ब्रह्मसे अभिन्नत्व भ...ली प्रकार जान लेना चाहिए |

भावार्थ : जिस ब्रह्मसे हमारी निर्मिति हुई, उसी ब्रह्मसे जब तक हमारा साक्षात्कार नहीं हो जाता तब जन्म-मरणका क्रम चलता रहता है | हम ब्रह्मसे भिन्न है यह हमारी अज्ञानता है